सूर्यग्रहण 21 जून – धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण
सूर्यग्रहण पर क्या-क्या करना चाहिए तथा किस उपाय के करने से क्या फल होते हैं |
आइये जानते हैं कि शास्त्रों में इसके बारे में क्या लिखा है –
सूर्यग्रहण के बारे में गर्ग ऋषि का मत है-
स्पर्शे स्नाने भवेद्भोमो ग्रस्तयोर्मुच्यमानयोः |
दानं स्यान्मुक्तये स्नानं ग्रहे चन्द्रार्कयोर्विधिः || ज्यो.नि.
अर्थात्- स्पर्श काल के समय स्नान, ग्रसित होने पर हवन, मोक्ष की तरफ होने पर दान और मोक्ष होने पर स्नान करना चाहिए |
आइये जानते हैं की सूर्यग्रहण में दान करने से क्या फल होता है-
सर्वं भूमिसमं दानं सर्वे ब्रह्मसमा द्विजाः |
सर्वं गङ्गासमं तोयं ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः || ज्यो.नि.
अर्थात्- सूर्यग्रहण पर सभी दान भूमि दान के तुल्य है क्योंकि सूर्यग्रहण पर सभी ब्राह्मण ब्रह्म के समान होते हैं तथा सभी जल गंगा जल के समान होता है |
मत्स्यपुराण में सूर्यग्रहण के पश्चात् गंगासागर में स्नान का फल इसप्रकार बताया गया है –
दशजन्मकृतं पापं गङ्गासागरसङ्गमे |
जन्मान्तरसहस्रेषु यत्पापं समुपार्जितम् || श्लोक.29
तत्तन्नश्येत्सन्निहत्यां राहुग्रस्ते दिवाकरे || श्लोक.30
अर्थात्- गंगासागर के संगम में स्नान करने से दस जन्म का किया हुआ पाप और और हजारों जन्म में समुपार्जित पाप सूर्यग्रहण पर गंगासागर के संगम में स्नान करने से नष्ट होता है |
सूर्यग्रहण में क्या-क्या करना चाहिए, उनको न करने पर क्या दोष होता है ?
चन्द्र-सूर्यग्रहे यस्तु स्नानं दानं सुरार्चनम् |
न करोति पितुः श्राद्धं स नरः पतितो भवेत् || ज्यो.नि.
अर्थात्- जो मनुष्य सूर्यग्रहण में स्नान, दान, देवपूजन और पितरों का श्राद्ध आदि नहीं करता है, वह पतित होता है |
विष्णुस्मृति में ग्रहण के दौरान श्राद्ध का महत्त्व इस प्रकार बतलाया गया है-
सर्वस्वेनापि कर्तव्यं श्राद्धं वै राहुदर्शने |
अकुर्वाणस्तु तच्छ्राद्धं पङ्के गौरिव सीदति ||
सर्वेषां स्वेन जीवनेन जलेनापीत्यर्थः |
अर्थात्- ग्रहण के समय सभी लोगों को अपने जीवन में जल से भी श्राद्ध करना चाहिए न करने से जैस गाय कीचड में दुःख पाती है उसी प्रकार दुःख होता है |
21 जून को पड़ने वाला सूर्यग्रहण रविवार को पड़ रहा है, तो आइये जानते हैं कि रविवार को सूर्यग्रहण होने पर कौन सा योग होता है !
इस सन्दर्भ में सूर्यपुराण नामक ग्रन्थ का प्रमाण वाक्य प्रस्तुत है –
सूर्यग्रहः सुर्यवारे यदा स्यात्पाण्डुनन्दन |
चूडामणिरिति ख्यातं सोमे सोमग्रहस्तथा ||
अर्थात्- जब रविवार को सूर्यग्रहण तथा सोमवार को चन्द्रग्रहण होने पर चूड़ामणि योग होता है |
अब आइये चूड़ामणि ग्रहण योग के महत्त्व को जानते हैं-
अन्यवारे यदाभानोरिन्दोर्वा ग्रहणं भवेत् |
तत्फलं कोटिगुणितं ज्ञेयं चूड़ामणौ ग्रहे ||
अर्थात्- रविवार को तथा सोमवार के अतिरिक्त किसी अन्य वार पर सूर्य-चन्द्रग्रहण होते हैं उस वार में स्नान-दानादि का जो फल मिलता है उससे करोड़ गुना फल चूड़ामणि योग में पड़ने वाले सूर्यग्रहण पर मिलता है |
ऊपर हम सबने जाना कि सूर्यग्रहण पर दान करने से क्या फल होता है परन्तु क्या दान करना चाहिए और क्यों दान करना चाहिए इसके बारे में जानने के लिए महाभारत का यह वाक्य देखिये-
भूमिर्ग्रामः सुवर्णं च धान्यं च यद्यदीप्सितम् |
तत्सर्वं ग्रहणे देयमात्मानः श्रेयमिच्छता ||
अर्थात्- महाभारत में कहा है कि भूमि, गाँव, सोना, धान्य और अभीष्ट सभी वस्तुओं को अपने आत्मजन के कल्याण चाहने वालों को दान अवश्य करने चाहिए |
दान निर्णय में बताया है कि वशीकरण के लिए चन्दन का औए सुगन्धित पदार्थ का, चांदी के दान से सुन्दर स्वरुप का, वस्त्र दान से बड़े यश की, अन्न दान से सम्पन्नता, गोदान से अभीष्ट फल का, घोड़े के दान से शिवलोक में सुख व धन, फल दान से पुत्र-प्राप्ति, घी के दान से सौभाग्य की वृद्धि, नामक दान से शत्रु का नाश, सोने के दान से सभी अभीष्ट सिद्धि, भूमि दान से तथा हाथी के दान से भूमि के स्वामित्व की प्राप्ति, घोड़े के दान से स्वर्ग सुख और निरोगता के लिए धन का दान किसी भी ग्रहण में करना चाहिए |
सूर्यग्रहण अथवा चन्द्रग्रहण में क्या-क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में चिन्तामणि नामक ग्रन्थ में विस्तार से बताया है | आचार्य कहते हैं-
छेद्यं न पत्रं तृणदारुपुष्पं कार्यं न केशाम्बरपीडनं च |
दन्ता न शोध्या पुरुषं न वाच्यं भोज्यं च वर्ज्यं मदनो न सेव्यः ||
वाह्यं न् वाजी द्विरदादि किञ्चिद्योह्यं न गावो महिषीसमाजम् |
यात्रां न कुर्याच्छयनं च तद्वद ग्रहे निशाभर्तुरहर्पतेश्च ||
अर्थात्- पत्ते को छेदन नहीं करना, तथा तिनका, काठ और पुष्प नहीं तोडना, बाल व वस्त्रों का पीडन, दांतों की सफाई, कठोर वाणी, भोजन, मैथुन, घोडा-हाथी पर सवारी, गाय-भैंस का दूध दोहन, यात्रा, शयन आदि नहीं करने चाहिए |
उक्त बातों का फल भी वहीँ बताया गया है –
निद्रायां जायते अन्धः विण्मूत्रे ग्रामसूकरः |
मैथुने च भवेत्कुष्ठी वधूर्वन्ध्या द्विभोजने ||
अर्थात्- ग्रहण में शयन करने पर अंधत्व की प्राप्ति, मल-मूत्र के करने से गाँव का सूअर, मैथुन से कोढ़ और भोजन से स्त्री वन्ध्या होती है |
जन्मराशि या जन्मनक्षत्र में ग्रहण का क्या फल होता है
जिसके जन्म नक्षत्र पर सूर्य या चन्द्रग्रहण होता है तो उसको रोगभय और धनक्षय होता है |
कहा गया है –
यस्यैव जन्मनक्षत्रे ग्रस्येते शशिभास्करौ |
तस्य व्याधिभयं घोरं जन्मराशौ धनक्षयः ||
विभिन्न राशियों में ग्रहण का फल
दैवज्ञ मनोहर नामक ग्रन्थ में कहा है कि –
घातं हानिमथ श्रियं जननभाद्ध्वस्तिं च चिन्तां क्रमात्
सौख्यं दारवियोजनं च कुरुते व्याधिं च मानक्षयम् |
सिद्धिं लाभमपायमर्कशशिनोः षण्मासमध्यग्रहे
दुष्टं सुष्ठुतरं ददाति च फलं गर्गादिभिः कीर्तितम् ||
अर्थात् – जन्म राशि में ग्रहण हो तो घात, दूसरी में हानि, तीसरी राशि में धनागम, चौथी में ध्वंस, पांचवी में पुत्र-चिन्ता, छठी में सुख, सातवीं में स्त्री वियोग, आठवीं में रोग, नवीं में सन्मान नाश, दशवीं में सिद्धि, ग्यारहवीं में लाभ, बारहवीं में अपाय विश्लेष होता है |
गर्गादि मुनियों ने यह भी निर्देश दिया है की 6 मास में जब दूसरा ग्रहण होता है, तो पहले ग्रहण के अशुभ फल (दूषित फल) शुभ हो जाते हैं |
- इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है, पूर्व ग्रहण 26 दिसम्बर 2019 के प्रभाव से जो जो आपदाएँ (कोरोना महामारी, देशों के बीच अंतर्कलह, गृहयुद्ध जैसी स्थितियाँ आदि) आईं हैं, उनका प्रभाव इस ग्रहण के बाद से कम हो जायगा |
अशुभ ग्रहण के उपाय
अरिष्टप्रद ग्रहण से होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के लिए निम्नलिखित औषधियों से स्नान करें-
दुर्वाङ्गकुरोशीरसमाशीलाजित्सिद्धार्थसर्वौषधिदारुलोध्रैः |
स्नानं विदध्याद्ग्रहणे रवीन्द्वोः पीडाहरं राशिगते शुभे चेत् ||
अर्थात्- भृगु ऋषि का कहना है कि अनिष्ट ग्रहण होने पर दूर्वा, खस, शिलाजीत सिद्धार्थ, सर्वौषधि, दारु लोध्र से स्नान पर राशि जन्म अरिष्ट फल नष्ट होता है |
वस्त्रपट्टे लिखेन्मन्त्रं रवे राहोस्तमो विधोः |
वेदोक्तं च ततो वस्त्रमाच्छाद्य स्नानमाचरेत् ||
अर्थात्- वस्त्र के आसन पर वेदोक्त राहु, सूर्य-चन्द्र के मन्त्रों को लिखकर वस्त्र से आच्छादित करके स्नान करना चाहिये |
मुहूर्त-चिन्तामणि ग्रन्थ के पीयूषधारा नामक टीका में ग्रहण दोष के उपाय सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होते हैं, जिनका विवरण प्रस्तुत है –
- सुवर्णनिर्मितं नागं सतिलं ताम्रभाजनम् |
सदक्षिणं सवस्त्रं च श्रोत्रियाय निवेदयेत् ||
अर्थात्- सोने का साँप, ताम्बे के बर्तन में तिल, दक्षिणा और वस्त्र श्रोत्रिय ब्राह्मण को देना चाहिए |
अनिष्ट ग्रहण के दोष के उपाय–
- सौवर्ण राजतं वापि बिम्बं कृत्वा स्वशक्तितः |
उपरोगाद्भवक्लेशच्छिदे विप्राय कल्पयेत् ||
अर्थात्- स्वराशि से दूषित राशि में ग्रहण होने पर अपनी शक्ति के अनुसार सोने का या चाँदी का बिम्ब समान सर्प बनाकर ब्राह्मण को देने से अनिष्ट ग्रहण का दोष दूर होता है |
दान करते वक्त इस मंत्र का पाठ करें-
- तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन |
हेमनागप्रदानेन मम शन्तिप्रदो भव ||
अर्थात्- हे अन्धकारमय, बड़ी आकृति वाले, सूर्य-चंद्र के मर्दन कर्ता इस सुवर्ण के सर्प दान से मेरे लिये शान्ति प्रदान करने वाले बनो |
इस सूर्य ग्रहण का देश दुनिया पर क्या प्रभाव पडेगा ? जानने के लिए यह लेख पढ़ें –
https://grahrasi.com/21-जून-2020-के-सूर्यग्रहण/
स्कन्दपुराण के आधार पर सूर्यग्रहण में कौन-कौन से दान ज्योतिषी ब्राह्मण को देना चाहिए, आइये जानते हैं –
गोदानं भूमिदानं च स्वर्णदानं विशेषतः |
ग्रहणे क्लेशनाशाय दैवज्ञाय निवेदयेत् ||
अर्थात्- गाय, भूमि, सोना विशेषकर, ग्रहण के दुष्ट फल दूर करने के लिए ज्योतिषी ब्राह्मण को देना चाहिए |
सूर्य ग्रहण से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यह लेख अवश्य पढ़ें –
https://grahrasi.com/सूर्यग्रहण-21-जून/
ग्रहण दोष निवारक स्तुति
योऽसौ वज्रधरो देव आदित्यानां प्रयत्नतः।
सहस्रनयनः शक्रो ग्रहपीडां व्यपोहतु।।
चतुः शृङ्गः सप्तहस्तः त्रिपादो मेषवाहनः।
अग्निश्चन्द्रोपरागोत्थां ग्रहपीडां व्यपोहतु।।
यः कर्मसाक्षी लोकानां धर्मो महिषवाहनः।
यमश्चन्द्रोपरागोत्थां ग्रहपीडां व्यपोहतु।।
रक्षोगणाधिपः साक्षात्प्रलयानलसन्निभः।
खड्गचर्मातिकायश्च रक्षःपीडां व्यपोहतु।।
नागपाशधरो देवः सदा मकरवाहनः।
वरूणोम्बुपतिः साक्षाद्ग्रहपीडां व्यपोहतु।।
प्राणरूपो हि लोकानां चारूकृष्णमृगप्रियः।
वायुश्चन्द्रोपरागोत्थग्रहपीडां व्यपोहतु।।
योऽसौ निधिपतिर्देवः खड्गशूलगदाधरः।
चन्द्रोपरागकलुषं धनदोऽत्र व्यपोहतु।।
योऽसाविन्दुधरो देवःपिनाकी वृषवाहनः।
चन्द्रोपरागजां पीडां स नाशयतु शंकरः।।
त्रैलोक्ये यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
ब्रह्माविष्ण्वर्कयुक्तानि तानि पापं दहन्तु मे।।
प्रयोग विधिः-
एवमामन्त्रितैः कुम्भैरभिषिक्तो गुणान्वितः |
ऋग्यजुःसाममन्त्रैश्च शुद्धमाल्यानुलेपनैः ||
पूजयेद्वस्त्रगोदानैर्ब्राह्मणानिष्टदेवताः |
एतेनैव ततो मन्त्रान्विलिख्य कनकान्वितान् ||
वस्त्रे पट्टे तथा भूर्जे पञ्चरत्नसमन्वितान् |
यजमानस्य शिरसि निदध्युस्ते द्विजोत्तमाः ||
अर्थात्- इन ६ मन्त्रों से ऋक्, यजुः और सामवेद के मन्त्रों से कलशों के जल से अभिषिक्त होने पर गुणों से युक्त होकर शुद्ध माला, चन्दन, वस्त्र, गोदान आदि से ब्राह्मणों और इष्ट देवताओं का पूजन करना चाहिए |
स्मृति निर्णय नामक ग्रन्थ में कहा है कि-
सूर्यग्रहे रवेर्जाप्यं दानं कुर्याद्यथाविधिः |
चन्द्रग्रहे तु यज्जाप्यं राहुदानं तथा जपः ||
अर्थात्- सूर्यग्रहण में सूर्य का जप व दान और चन्द्रग्रहण में चन्द्र तथा राहु का जप व दान करना चाहिए |
- ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य