मित्रों, अपने दैनिक जीवन में कभी हम किसी अनुभवी व्यक्ति के द्वारा कोई ऐसी घटना का जिक्र सुनते हैं जिस पर हमें सहसा विश्वास नहीं होता। बहुत बार तो हम उस घटना और घटना सुनाने वाले व्यक्ति का मजाक तक उड़ाने लगते हैं। लेकिन आपको यह सलाह देना चाहूँगा कि ऐसा करके हम उनका नहीं अपनी अज्ञानता का मजाक उड़ा रहे होते हैं। इस तरह की बातों पर गम्भीरता से विचार करें और अपने स्तर पर यदि पड़ताल करें तो न केवल हम उसकी सत्यता जान पायेंगे बल्कि हमारा ज्ञानवर्धन होगा और हम अपने राष्ट्र के ज्ञान विज्ञान को कहीं बेहतर तरीके से जान समझ पायेंगे।
ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ हुआ, जब श्रीभागवतानंद गुरु जी से चर्चा के दौरान उन्होंने एक कहानी सुनाई जो उन्होंने भी किसी और से सुनी थी। उस कहानी में एक वैद्य का जिक्र था जो हकीक (एक प्रकार का रत्नीय पत्थर) की सब्जी बनाकर खाता था । हम दोनों ही इस बात से आश्चर्यचकित थे। मुझे रत्नों की थोड़ी बहुत पहचान भी है और ज्योतिष ज्ञान से जुड़े होने के कारण उसका अध्ययन भी करना पड़ता है, इसलिए इस घटना को एकबारगी मैं पचा नहीं पा रहा था। रत्नों के भस्म सेवन करने और रत्नों को घीसकर विभिन्न रोगों के निवारण के लिए अंगों में लेपित करने आदि के बारे में पढ़ा था जरुर पर सब्जी बनाकर खाने वाली बात…. I was left shocked.
फिर मैंने गूगल गुरु से हकीक की सब्जी के बारे में पूछा पर उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए।
खैर… बात आई गई चली गई। पर यह प्रश्न कहीं न कहीं मेरे दिमाग में बैठा हुआ था।
होली के दिन मैं घर पर था। कुछ समय पहले ही मरणाशौच समाप्त होने की वजह से हमलोग होली नहीं खेल रहे थे। तो मैंने खाली समय का सदुपयोग करने के उद्देश्य से अपना ट्रंक खोला और पुस्तकें देखने लगा। वहाँ पहले ही मुझे “भावप्रकाश निघण्टु” मिल गई, मैंने निर्णय किया आज इसी को पढ़ा जाएगा। उस किताब में मुझे हकीक की जानकारी मिली, जिसमें उसके स्वाद आदि का जिक्र था। उसे देखकर मैं स्तब्ध सा रह गया । बाप रे…. ऐसे वैद्य भी हैं हमारे भारत में वो भी आज के समय में भी। अद्भुत….
शाम को अपने गुरुजी वैद्यनाथ मिश्र गुरुजी से मुलाकात हुई तो मैंने अपना ये अनुभव उनसे साझा किया। उन्होंने बताया कि अपने गाँव में उन्होंने कई आदिवासी जनजाति के लोगों को विभिन्न प्रकार के पहाड़ी पत्थर चुन कर लाते और उन्हें सब्जी बनाकर खाते देखा है।
यह सुनकर मैं और भी रोमांचित हो उठा।
सत्यवाक् सत्यवाक् सत्यवाक्….
बहुत बडी सीख मिली, हमारे द्वारा सुनी गई घटना हमें असंभव या हास्यास्पद सी लग सकती है इसका मतलब ये नहीं हम बुद्धिमान हैं, इसका मतलब ये है कि हम अज्ञानी हैं, हमें उस विधा का ज्ञान नहीं है।
नोट- पत्थर को बिल्कुल आम सब्जी की तरह छोंका लगाया जाता है। मसाले, टमाटर, नमक, पानी आदि ड़ालकर खौलाया व पकाया जाता है। फिर सावधानी पुर्वक सभी पत्थरों को सब्जी से छानकर बाहर निकाल दिया जाता है। फिर सब्जी का सेवन करते हैं।
(भावप्रकाश निघण्टु का सम्बद्ध पृष्ठ)
आपका भी कुछ ऐसा अनुभव हो तो जरूर साझा करें। इस घटना या चर्चा से संबंधित कोई बात आपको ज्ञात हो तो जरूर हमारा ज्ञानवर्धन करें।
© पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
B.H.U., वाराणसी।