सूर्यग्रहण का सांहितिक फलादेश
मैं अब तक अक्सर सांहितिक फलादेश से बचता रहता था । लेकिन अनधिकारियों द्वारा बहुत ऊलजूलूल अशास्त्रीय, दिग्भ्रमित करने वाले फलादेशों से परेशान मेरे प्रशंसकों ने मुझसे इस सूर्यग्रहण का वैश्विक फलादेश करने का आग्रह किया । उनके स्नेह से अभिभूत मैं शास्त्र मर्यादा व उनके मान की रक्षा रुपी उद्देश्यद्वय की पूर्ति के लिए आगामी 21 जून को होने वाले सूर्यग्रहण का वैश्विक फलादेश करने का साहस कर रहा हूँ। इस कार्य में प्रयुक्त गुरुजनों का आशीर्वाद और उनकी चरणसेवा व शास्त्रनिष्ठा से प्राप्त जो भी अल्प शास्त्रज्ञान है वह समाज के लिए हितकारी सिद्ध हो यही कामना है ।
21 जून 2020 को पड़ने वाले सूर्यग्रहण के बारे में विस्तार से जानने के लिए आपको मेरा ये लेख पढना चाहिए –
https://grahrasi.com/सूर्यग्रहण-21-जून/
इन्द्र पर्व में ग्रहणफल
21 जून 2020 को होने वाला सूर्यग्रहण सांहितिक गणना से इन्द्र पर्व में हो रहा है | इन्द्रपर्व में होने वाले ग्रहण का फल बृहत्संहिता अध्याय 5 श्लोक 21 में इस प्रकार बताया गया है –
ऐन्द्रे भूपविरोधः शारदसस्यक्षयो न च क्षेमम् |
अर्थात् -ऐन्द्रपर्व मे ग्रहण होने से शासकों में परस्पर वैमनस्य, युद्ध की स्थितियां, शासन की अस्थिरता, सर्दी में तैयार होने वाली फसलों की हानि, अकुशलता व शान्ति व्यवस्था में कमी रहती है |
पापदृष्ट ग्रहण का फल
बृहत्संहिता अ.5 श्लोक 27 में आचार्य वराहमिहिर कहते हैं –
सर्वग्रस्तौ दुर्भिक्षमरकदौ पापसंदृष्टौ |
अर्थात्- यदि सूर्य या चन्द्रमा ग्रहण के समय पाप ग्रह से दृष्ट हो और उनका सर्वग्रास ग्रहण हो तो अकाल व जनहानि के योग होते हैं |
* 21 जून 2020 को होने वाले सूर्यग्रहण में सूर्यबिम्ब का 99% भाग भारत वर्ष में अधिकतम 33 सेकंड के लिए ग्रस्त नजर आएगा | अतः स्पष्ट रूप से ये सर्वग्रास है | साथ ही सूर्य पर मंगल की दृष्टि पड़ रही है | इससे स्पष्ट है कि दुर्भिक्ष (अकाल,धन- धान्य की कमी ) आदि फल भारत वर्ष में होंगे |
* ग्रहण के समय सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो तो राजपक्ष व शासकदल को हानि, युद्धभय, अग्निकाण्ड और विस्फोट आदि होते हैं |
तृतीय खांश में ग्रहणफल –
यह ग्रहण दिन के तृतीय खांश में हो रहा है | बृहत्संहिता अ. 5 श्लोक 29 में तृतीय खांश का फल इस प्रकार दिया गया है –
कारूकशूद्रम्लेच्छान् खतृतीयान्शे समन्त्रिजनान् |
अर्थात्- तृतीय भाग में ग्रहण हो तो शिल्पी जन, हाथ के कारीगरों, दलित वर्गों, म्लेच्छ जातियों व मंत्रियों को कष्ट होता है |
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उत्तरायण में ग्रहण होने का फल –
संवत्सरसंहिता में कहा गया है – यदि सूर्यग्रहण उत्तरायण में हो तो उच्चवर्ग, शासकवर्ग (मंत्री, विधायक और सांसद), बड़े नेताओं व शासन के लिए बहुत अशुभ होता है |
मिथुन राशि में ग्रहण होने का फल –
यह सूर्यग्रहण मिथुन राशि में हो रहा है | मिथुन राशि में ग्रहण होने पर उत्तम, माननीय व प्रसिद्ध स्त्रियों, राजाओं, राजतुल्य, बलशाली जनों कलाकारों तथा यमुना तीरवर्ती देशवासियों को पीड़ा होती है |
ग्रहण के दौरान सूर्य-बुध की युति का फल –
ग्रहण के समय सूर्य के साथ बुध की युति होने से उत्तर प्रदेश, नेपाल की सीमा, बिहार, बंगाल, भारत के पूरे पूर्वी सीमान्त पर उपद्रव, स्त्रियों, उच्च शिक्षित लोगों व शासकों को अंत में कष्ट होगा |
- कहने की आवश्यकता नहीं की नेपाल ने चीन के बहकावे में आकर अपने हितैषी राष्ट्र भारत पर हमले कर के अपनी विनाश लीला शुरू कर दी है |
आषाढ़ मास में ग्रहण का फल –
यह ग्रहण आषाढ़ मास में हो रहा है | आषाढ़ मास में होने वाले ग्रहण का फल बृहत्संहिता अ. 5 श्लोक 77 में इस प्रकार दिया हुआ है –
आषाढपर्वण्युदपानवप्रनदीप्रवाहान् फलमूलवार्तान् |
गान्धारकश्मीरपुलिन्दचीनान् हतान् वदेद् मण्डलवर्षमस्मिन् |
अर्थात्- आषाढ़ में ग्रहण पड़े तो नहर, कुंए आदि के किनारे, पानी की टंकी, बाँध आदि टूट जाते हैं | पेयजल का संकट होता है | नदियों में बाढ़ आती है या नदी अपना मार्ग बदल देती है | फल, सब्जी बेचने या उगाने वालों को कष्ट होता है | अफगानिस्तान, चीन और कश्मीर में संकट उत्पन्न होते हैं |
- उक्त फल से एकदम साफ साफ परिलक्षित हो रहा है कि चीन ने ग्रहण के पहले ही भारत से युद्ध जैसी स्थिति बनाकर अपने विनाश की नींव रख दी है |
मृगशिरा नक्षत्र में ग्रहणफल –
ये ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र में हो रहा है अतः –
- मृगशिरा नक्षत्र के से संबंधित पदार्थ व लोगों जैसे – इत्र उद्योग, कपड़ा उद्योग, फल- फूल व रत्न उद्योग, पशु- पक्षी, ब्राह्मणवर्ग, संगीतज्ञवर्ग, कार्यालयों में काम काम करने वाले लेखहार (डाटाएंट्री, लेखन, देखरेख) करने वालों की हानि होगी |
- मृगशिरा नक्षत्र में जन्मे या मिथुन लग्न में जन्मे राजनेताओं को सबसे ज्यादा सचेत रहने की आवश्यकता है। उनके ऊपर भयंकर आपदा आ सकती है ।
- मृगशिरा नक्षत्र में ग्रहण होने से भारत वर्ष के मध्यवर्ती क्षेत्रों -सम्पूर्ण पंजाब, यमुना-गंगा का मध्यवर्ती प्रदेश, कुरुक्षेत्र, राजस्थान, मथुरा, दिल्ली और बांग्लादेश आदि क्षेत्रों में कलह, दुर्भिक्ष, महामारी, युद्ध जैसे संकट उत्पन्न होंगे |
- साथ ही विश्व के मध्यवर्ती क्षेत्रों में अवस्थित सभी छोटे-छोटे देशों (अल्जीरिया, इजिप्ट, सुडान आदि ) में कलह, दुर्भिक्ष, महामारी, युद्ध जैसे संकट उत्पन्न होंगे |
– ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य
हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान, लोहरदगा |