Is exalted Jupiter in seventh house bad for marriage being a functional malefic for a Capricorn lagna native ?

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उत्तर– देखिए, आपके प्रश्न के अनुसार मकर लग्न के सन्दर्भ में यहाँ पर फलित ज्योतिष् के मुख्यतः पाँच प्रधान निर्णायक नियम उपस्थित हो रहे हैं।
1. द्वादशेश का सप्तम भाव में होना- ज्योतिष् का सामान्य सिद्धांत है कि बारहवें भाव का स्वामी जहाँ उपस्थित होता है, उस भाव का व्यय करता है। इस तरह द्वादशेश होकर वृहस्पति का सप्तम में होना शुभ फलद नहीं है। क्योंकि बारहवाँ भाव सप्तम भाव से छठा है इसलिए भी बारहवें भाव के स्वामी का सप्तम में बैठना अन्य भावों में बैठने की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही बुरा है ।
वृहत्पाराशर होराशास्त्र के योगकारकाध्याय में मकर लग्न वालों के लिए वृहस्पति को महर्षि पाराशर ने कुजजीवेन्दवः पापाः कहकर पापी बताया है ।
ज्योतिष् के मूर्धन्य विद्वान पण्डित मुकुन्द दैवज्ञ पर्वतीय ने अपने ग्रन्थ ज्योतिस्तत्त्वम् में व्येयेश के सप्तमस्थ होने का फल लिखते हैं-
द्यूनेऽन्त्यपे भोगयुतः प्रतिष्ठितो,
नतीकृतारिश्च विशाल लोचनः।
मदालसो लोकविलोकनोचितो,
भीतारिको दुश्चरितो विशारदः।।

गृहाग्रणीर्दम्भयुतश्च दुष्टधीः,
सौम्ये क्षयं वारवधूजनाद् व्रजेत् ।
एनो ग्रहे दारविवर्जितोऽथवा,
निजाङ्गनातो निधनं समेति सः।।

अ.-34 श्लो.- 120-21
अर्थात्- सप्तम में व्ययेश हो तो भोगी, प्रतिष्ठित, शत्रुञ्जय, बड़े नेत्रों वाला, मद से आलसी, सुदृष्ट, शत्रुभयोत्पादक, निन्दित चरित्र वाला, चतुर, घर का मुखिया तथा दुष्ट बुद्धिवाला होता है। शुभग्रह व्ययेश हो तो परस्त्री मृत्यु का कारण बनती है, यदि पापग्रह व्ययेश हो तो विवाह ही न हो अथवा पत्नी मृत्यु का कारण बने।

2. तृतीयेश का सप्तम भाव में होना– वृहत्पाराशर होराशास्त्रम् में तृतीयेश के सप्तमस्थ होने का फल महर्षि बतलाते हैं-
तृतीयेशेऽष्टमे द्यूने राजसेवारतो मृतः।
दासो वा शैशवे दुःखी चौरो वा जायते नरः।।

अर्थात्- तृतीयेश यदि सप्तम या अष्टम भाव में हो तो जातक कोई राजकर्मचारी होता है और मृत्युपर्यन्त राज्य/राजा की सेवा करता रहता है। अथवा वह दासवृत्ति या चौरवृत्ति अपनाता है। वह बाल्यकाल में दुःखी रहता है।
लोमश संहिता में भी अल्पभेद से यही फल उक्त है। यथा-
तृतीयेशेऽष्टमे द्यूने राजद्वारे मृतिर्भवेत्।
चौरो वा परगामी वा बाल्ये कष्टं दिने दिने।।

यहाँ दासवृत्ति के स्थान पर व्यभिचारी दोष इंगित है।

3. वृहस्पति का सप्तम भाव में होना- वृहस्पति का सप्तम भाव में बैठना ज्यादातर शुभ परिणाम प्रदान करता है। चमत्कार चिन्तामणि नामक ग्रन्थ में भट्ट नारायण लिखते हैं-
मतिः तस्य बह्वी विभूतिश्च बह्वी,
रतिर्वैभवेद्भामिनीनामबह्वी ।
गुरुर्वर्गकृद यस्य जामित्रभावे,
सपिण्ड़ाधिकोऽखण्ड़ कन्दर्प एव।

गुरु भावफल श्लो. 7
अर्थात्- जिस मनुष्य के जन्मपत्र में सप्तमस्थ गुरु हो उसकी बुद्धि विलक्षण होगी। उसका वैभव दूसरों की तुलना में अधिक होगा। उसकी स्त्रियों के विषय में आसक्ति कुछ कम ही होगी। वह अपने कुल में श्रेष्ठता स्थापित करता है, अभिमानी होता है और कादेव के समान सुन्दर दिखाई देता है।

4. वृहस्पति का कर्क राशि में होना- वृहस्पति का कर्क राशि में होना भी ज्यादातर शुभ परिणाम देता है। देखें सारावली-
विद्वान् सुरुपदेहः प्राज्ञः प्रियधर्मसत्स्वभावश्च ।
सुमहद्बलो यशस्वी प्रभूतधान्याकरधनेशः ।।
सत्यसमाधिसुयुक्तः स्थिरात्मजो लोकसत्कृतः ख्यातः ।
नृपतिर्जीवे शशिभे विशिष्टकर्मा सुहृज्जनानुरतः ।।

अ. २७ श्लो ७-८
अगर इस जातक का चन्द्रमा मजबूत है तो निश्चित ही बृहस्पति वैवाहिक जीवन में बहुत बाधक नहीं बन पाएगा। थोड़ी बहुत बाधा द्वादशेश होने के कारण करेगा।
लेकिन यहाँ पर लघुपाराशरी के नियमों को नहीं भूलना चाहिए । ये वृहस्पति वैवाहिक जीवन में तो बाधक नहीं बनेगा लेकिन इसकी दशा प्रबल मारकत्व का गुण धारण कर सकती हैं।
इसकी ठीक प्रकार से समीक्षा कर लेनी चाहिए।

– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”

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