वर्तमान में 14 मार्च 2024 से 13 अप्रैल 2024 तक खरमास (Kharmas) रहेगा।
खरमास (Kharmas)….। आप सब के लिए एक जाना पहचाना शब्द है! इसके आने से पहले ही आप अपने शुभकार्य जल्दी से निपटाना चाहते हैं। खरमास में अशुभ की आशंका से सब डरते हैं इस संबंध में कुछ पौराणिक व्याख्यान भी काफी प्रचलित हैं।
हमारे पास तथ्यों को वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत करने और उसकी वैज्ञानिकता को जांचने परखने के लिए ऋषियों की दी हुई महान विद्या है ज्यौतिष।
तो आइये आज जानते हैं क्या है खरमास की ज्योतिषीय परिभाषा???
वैसे तो “खरमास” शब्द “खर+मास” के संधि से बना है। “खर” का अर्थ होता है रूखा, कठोर, खुरदरा, चरपरा, ठोस आदि और मास का अर्थ होता है महीना।
तो खरमास का अर्थ हुआ ऐसा महीना जो रूखा हो खुरदरा हो। इस महीने में हमारी त्वचा रूखी होने लगती है कुछ लोगों के हाथ पैर की त्वचा तो झड़ने भी लगती है। पेड़ पौधे भी पतझड़ का शिकार हो जाते हैं पूरी प्रकृति उदास नज़र आती है सो इसका “खरमास” नाम भी सार्थक ही प्रतीत होता है।
हमारे व्रत त्यौहार और मुहूर्तादि गणना के लिए मुख्यतः सौर मास और चान्द्र मास ग्राह्य हैं। इनमें भी ज्यादातर ज्योतिषियों ने विवाह और उपनयन(जनेऊ) के लिए चान्द्र मास की अपेक्षा सौर मास को ज्यादा महत्त्व दिया है।
मुहूर्त ज्ञान के लिए सर्वमान्य ग्रन्थ “मुहूर्तचिन्तामणि” में ग्रंथकार “श्रीराम दैवज्ञ” छठे अध्याय विवाह प्रकरण के 13वें श्लोक-
मिथुनकुम्भमृगालिवृषाजगे मिथुनगेSपि रवौ त्रिलवे शुचेः।
अलिमृगाजगते करपीडनं भवति कार्तिकपौषमधुष्वपि।। में सौर मास की ही प्रधानता को प्रदर्शित करते हैं।
सौर वर्ष के बारह महीनों में से दो महीने (जब सूर्य क्रमशः धनु और मीन राशि में होता है) खरमास माने जाते हैं।
खरमास को ज्योतिषीय भाषा में धन्वर्क दोष और मीनार्क दोष कहा जाता है। अर्क का अर्थ होता है “सूर्य”। सूर्य के बारह राशियों में भ्रमण से ही वर्ष में बारह सौर मास होते हैं।
सूर्य जब इसी प्रकार घूमता हुआ धनु राशि में आता है तो इसे धन्वर्क (धनु राशि का सूर्य) दोष और जब मीन राशि में आता है तो मीनार्क (मीन राशि का सूर्य) दोष या सरलता के लिये खरमास कहते हैं। इस प्रकार 12 सौर मासों में से दो खरमास बनते हैं।
पृथ्वी का अपने अक्ष में 23° झुके होने के कारण सूर्य की परिक्रमा के दौरान 6 महीने पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सम्मुख झुका हुआ होता है और 6 महीनेे पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव।
यह झुकाव भी एकाएक नहीं होता बल्कि सूर्य के मेष राशि से मिथुन राशि तक(14 अप्रैल से 16 जुलाई) पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव का झुकाव सूर्य की तरफ होने लगता है इस दौरान यहाँ गर्मी बढ़ने लगती है और धीरे धीरे गर्मी प्रचंड होने लगती है । फिर कर्क राशि से कन्या राशि में(17 जुलाई से 17 अक्टूबर) सूर्य के रहते हुवे पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव वापिस लौटता हुआ सूर्य से दूर जाने लगता है और हमारे यहाँ गर्मी की प्रचंडता कम होते हुवे ख़त्म होने लगती है।
पुनः सूर्य जब तुला राशि से धनु राशि (18 अक्टूबर से 14 जनवरी) तक की यात्रा तय करता है तो इस दौरान पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सम्मुख होने लगता है इस दौरान उत्तरी ध्रुव के सूर्य से दूर होने के कारण हमारे यहाँ ठंढ पडनी शुरू होती है और जैसे जैसे उत्तरी ध्रुव दूर जाता है ठण्ड बढ़ती जाती है। फिर जब सूर्य मकर, कुम्भ और मीन राशियों में(15 जनवरी से 13 अप्रैल) रहता है तो धीरे धीरे ठंढ कम होने लगती है।
आप सबने अनुभव किया होगा मकर संक्रांति के बाद ठण्ड कम हो जाती है। मकर संक्रांति से ही दक्षिणी ध्रुव सूर्य से दूर खीसकने लगता है और उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर बढ़ने लगता है। उत्तरी ध्रुव का यह खिसकाव सूर्य के मिथुन राशि पर्यन्त चलता है।
अयन का अर्थ होता है खिसकना या चलना, इसलिए इन छः महीनों को “उत्तरायण”(उत्तर की ओर खीसकने वाला) कहते हैं। पुनः कर्क राशि से धनु राशि पर्यन्त पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सम्मुख खीसकने लगता है इसलिए इन छः महीनों को “दक्षिणायन”(दक्षिण की ओर खीसकने वाला) कहते हैं।
परंतु हमारा उत्तरी गोलार्ध जिन छः महीनों में (सूर्य के मेष से कन्या पर्यन्त) सूर्य के सम्मुख होता है उन्हें हम “उत्तर गोल”कहते हैं, और जिन महीनों में(तुला से मीन पर्यन्त) दक्षिणी गोलार्ध सूर्य के सम्मुख होता है उसे “दक्षिण गोल” कहते हैं।
धनु राशि में रहने के दौरान सूर्य हमारे देशांतर रेखा से सबसे ज्यादा दुरी पर स्थित रहता है इसलिए इस दौरान ठंढ अपने चरम पर होती है। हमारे प्रत्यक्ष देव सूर्य का सानिध्य प्राप्त न होने से इस मास को त्याज्य माना जाता है इसे धन्वर्क दोष या खरमास कहते हैं। पुनः मीन राशि के दौरान दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव का सूर्य की ओर झुकाव लगभग सामान ही रहता है। उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर अपने झुकाव के लिए सन्नद्ध होती है।
यह महीना विषुवत वृत्त के उत्तरी क्षेत्र में रहने वालों के लिए मुड़ान बिंदु (Turning Point) की तरह होता है। पतझड़ होने लगते हैं प्रकृति नीरस हो जाती है। शरीर में प्राकृतिक बदलाव महसूस होने लगते हैं स्वास्थ्य संबंधी खतरा सबके लिए बढ़ जाता है। इन सब कारणों से इस माह को वर्जित माना जाता है इसे मीनार्क दोष या खरमास कहा जाता है।
ये तो है खरमास का सैद्धांतिक पक्ष अब फलित ज्योतिष के दृष्टिकोण से इसकी व्याख्या करते हैं- धनु और मीन गुरु की राशियाँ हैं जब सूर्य इन राशियों में प्रवेश करता है तब मित्र का गृह होने से उसका मनोबल बढ़ जाता है। सूर्य क्रूर ग्रह है इसलिए बढे मनोबल में वह सामान्य रूप में अनिष्ट करता है। संभावित अनिष्टों से बचने के लिए हम बहुत से मंगल कार्य रोक देते हैं।
चंद्र और मंगल भी सूर्य के मित्र हैं पर चंद्रमा स्त्री ग्रह है इसलिए चंद्रमा से सूर्य को ज्यादा मदद नहीं मिलती और चंद्रमा की राशि कर्क में सूर्य के रहने पर वो महीना खरमास नहीं होता। मंगल की राशि मेष में सूर्य उच्च का होता है और वृश्चिक में वह नीच के नज़दीक होता है। इन्ही कारणों से ये माह खरमास नहीं माने जाते।
खरमास के दौरान मुख्य रूप से विवाह उपनयन और गृहनिर्माण संबंधी कार्य को वर्जित माना जाता है।
महान दैवज्ञ “हरिशंकर सूरी” अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ “मुहूर्तगणपति” में विवाह के विहित और त्याज्य मासों की व्याख्या करते हुवे बताते हैं-
मार्गशीर्षे धनुष्यर्के मीनार्क: फाल्गुनेSशुभः।
सौरो व्रतविवाहादौ मास: सर्वत्र शस्यते।।
अर्थात- चान्द्र मासानुसार मार्गशीर्ष और फाल्गुन में विवाह अशुभ होता है और सौर मासानुसार धनु और मीन राशि में सूर्य के रहने पर विवाह अशुभ होता है। उपनयन(जनेऊ) और विवाह में सब जगह सौर मास को महत्त्व देना चाहिए।
मुहूर्तशास्त्र के प्रकांड विद्वान “श्रीराम दैवज्ञ” की मुहूर्त चिंतामणि पर पियुषधारा टीका लिखते हुवे विवाह के लिए विहित मास की व्याख्या करते समय ऋषि कश्यप का सन्दर्भ देते हुवे “ज्योतिर्विद गोविन्द” कहते हैं-
उत्तरायणगे सूर्ये मीनं चैत्रं च वर्जयेत्।
अर्थात- उत्तरायण में भी सूर्य के मीन राशि वाले महीने और चैत्र मास विवाह के लिए वर्जित करना चाहिए।
यहीं पर आगे धनु राशि में सूर्य और पौष महीने को अत्यंत निषिद्ध बताते हुवे महर्षि गर्ग का उद्धरण देते हुवे “ज्योतिर्विद गोविन्द” कहते हैं –
मीने धनुषि सिंहे च स्थिते सप्त तुरङ्गगमे।
क्षौरमन्नं न कुर्वीत विवाहं गृहकर्म च।।
अर्थात- मीन, धनु और सिंह राशि में सूर्य के रहने पर मुंडन, अन्नप्राशन, विवाह और गृहनिर्माण संबंधी कार्य नहीं करना चाहिए।
-ब्रजेश पाठक ज्यौतिषशाचार्य
B.H.U. वाराणसी।
आदरणीय लेख पढ़कर हृदय प्रफुल्लित हो गया, सादर नमन।जय श्रीमन्नारायण।
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