प्रज्ञावर्धनस्तोत्रम् – संपूर्ण विधि एवं मंत्र

प्रज्ञावर्धनस्तोत्रम् स्तोत्र पाठ की विधि –

इस स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व इसकी पुरश्चरण साधना करनी चाहिए। इसके लिए किसी भी माह के पुष्य नक्षत्र से आरम्भ कर अगले पुष्य नक्षत्र तक पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर इस स्तोत्र का नित्य 10 बार पाठ करना चाहिए। साधना काल में आहार, विहार एवं ब्रह्मचर्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। साधना पूर्ण होने के पश्चात् प्रतिदिन अरुणोदय वेला में स्नान करके इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए।

साधना विधि –

  • पीपल वृक्ष को प्रणाम करके उसके नीचे आसन लगाकर बैठ जाएँ।
  • तदनन्तर अपने मस्तक में जल छिडककर पवित्रीकरण करें।
  • इसके बाद तीन बार आचमन करके हाथ घो लें।
  • तिलक करें, शिखा बाँध लें।
  • अपने हाथ में जल लेकर श्रीमन्नारायण का स्मरण करते हुए अपने चारों ओर रक्षार्थ जल का घेरा बनाएँ।
  • संभव हो तो दीपक जला लें।
  • इसके बाद गणेश भगवान का स्मरण कर लें।
  • तदनन्तर निम्नलिखित विनियोग पढकर जल गिराएँ और इसके बाद स्तोत्र का 10 पाठ करें।

अस्य श्रीप्रज्ञावर्धन-स्तोत्रस्य भगवान् शिव-ऋषि: अनुष्टुप् छन्द: स्कन्दकुमारो देवता प्रज्ञासिद्ध्यर्थं जपे विनियोग:।

योगेश्वरो महासेन: कार्तिकेयोऽग्निनन्दन:।
स्कंद: कुमार: सेनानी स्वामी शंकरसंभव: ।।१।।

गांगेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वज:।
तारकारिरुमापुत्र: क्रौंचारिश्च षडानन: ।।२।।

शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्ध: सारस्वतो गुह:।
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षप्रद: प्रभुः ।।३।।

शरजन्मा गणाधीशः पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत।
सर्वागमप्रणेता च वांछितार्थप्रदर्शकः ।।४।।

अष्टाविंशति नामानि मदीयानीति य: पठेत्।
प्रत्यूषे श्रद्धयायुक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत् ।।५।।

महामंत्रमयानीति मम नामानिकीर्तयेत् ।
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ।।६।।

पुष्यनक्षत्रमारभ्य पुनः पुष्ये समाप्य च।
अश्वत्थमूले प्रतिदिनं दशवारं तु सम्पठेत्।।७।।

|| इति प्रज्ञावर्धनस्तोत्रम् ||

विशेष –

  • साधना काल के दौरान कार्तिकेय भगवान् का सदा स्मरण करते रहना चाहिए, उनके चरित्रों का पढना, सुनना एवं मनन करना चाहिए।
  • मोर नामक पक्षी का नित्य दर्शन करना चाहिए तथा उसे चावल आदि खाद्य पदार्थ जो मोर खा सके उसे खिलाना चाहिए।
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से विद्या की प्राप्ति होती है। वाक्कौशल की वृद्धि होती है। वाक्सिद्धि भी होती है। यहाँ तक की जो बोलने में हकलाते हैं या ठीक से बोल नहीं पाते या गूँगे हैं वे भी बोलने लगते हैं।

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