व्याघ्रनख- सप्रयोग धारणविधि
व्याघ्रनख का तंत्र ग्रन्थों में बहुत विशद् व्यापक वर्णन किया गया है। आइए आज इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रयोगों के बारे में जानते हैं।
*व्याघ्रनख के प्रयोग* :-
1. व्याघ्रनख धारण करने से शरीर में “वात” का संतुलन ठीक बना रहता है।
2. यदि बालक बार-बार रात को सोते हुए ड़रता हो तो उसे व्याघ्रनख अवश्य धारण कराना चाहिए।
3. व्याघ्रनख धारण करने से आत्मविश्वास में अप्रतिम वृद्धि होती है।
4. व्याघ्रनख धारण करने वाला व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली होता जाता है।
5. व्याघ्रनख धारण करने से मनुष्य की सांसारिक वस्तुओं के संग्रह की प्रवृत्ति, लोभ आदि कई बुरी आदतों का नाश होता है । इसलिए अक्सर सन्यासियों को व्याघ्रनख धारण किए हुए आपलोगों ने देखा होगा।
6. बाघ का नख धारण करने से व्यक्ति के अन्दर दृढ़ता का विकास होता है ! इसलिए हठयोगी व्याघ्रनख अवश्य धारण करते हैं।
7. व्याघ्रनख धारण करने से धीमा रक्तसञ्चार ( low B.P.) कि शिकायत दूर हो जाती है।
8. बाघ का नख मंगल का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इसको धारण करने वाला साहसी, बहादूर और वीर बनता है।
9.बाघ का नख धारण करके वशीकरण या सम्मोहन प्रयोग किया जाए तो उसमें निश्चित ही सफलता मिलती है।
10.बाघ का नख धारण करके देवी की आराधना करने वाला शीघ्र ही देवी का कृपापात्र बन जाता है।
11. बाघ का नख धारण करने से कोर्ट-कचहरी-मुकदमा आदि में विजय मिलती है।
12. कफ प्रकृति का मनुष्य यदि बाघ का नख धारण करे तो उसे बार-बार शीतप्रकोप नहीं सताते हैं ।
13.बाघ का नख धारण करने से विषैले जन्तुओं का भय भी नहीं रहता।
14. बाघ का नख व्यक्ति को सदा उर्जावान और मूलाधार चक्र को क्रियाशील बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।
15. बाघ का नख पहनने वाला अपने शत्रुओं पर हावी रहता है उसमें शासन प्रवृत्ति के विकास के साथ-साथ प्रकृति-प्रेम की भावना भी पल्लवित होती है।
*धारण विधि* :-
सर्वप्रथम पवित्र होकर गणेशाम्बिका स्मरण, कलशदेवता स्मरण, स्वस्तयन, संकल्प आदि के पश्चात बाघ के नख को पञ्चोपचार पूजन करके एक पीतल के प्लेट पर रखें। मनोजूतिर्जूषता…….. और अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु……. आदि श्लोकों से उसकी प्रतिष्ठा करें । तत्पश्चात दुर्गा-कवच और देव्यऽथर्वशीर्ष के प्रत्येक श्लोक के साथ उसमें ताँबे के आचमनी से सिन्दूर (भखड़ा सिन्दूर जो नारंगी रंग का होता है।) एक-एक आचमनी चढ़ाते जाएँ।
इस प्रकार पूजन करने के पश्चात आप मंगलवार को प्रातः काल सूर्योदय के समय इसे धारण कर सकते हैं।
यदि आपको इसका तीव्र प्रभाव देखना हो तो एक भीषण प्रयोग बताता हूँ। लेकिन ध्यान रहे यह प्रयोग तांत्रिक प्रयोग है इसे अपने रिस्क पर ही करें।
*व्याघ्रनख की परमसिद्धि के लिए भीषण तान्त्रिक प्रयोग*-
निम्नलिखित मन्त्र का उसी पीतल प्लेट पर रखे गए सिन्दूर धूसरित व्याघ्रनख के सामने तीन दिनों में शुद्ध तील तेल का दीपक लालबत्ती के साथ जलाकर 10,000 बार जप करें।
!! मन्त्र !!
नरसिंह वीर महाबलवीर मारे वैरी पकड़ के सिर
मेरा भेजा जाये वैरी दुश्मन का कलेजा खाये
मेरा भेजा ना जाये तो माता कालका की सेज पर लत्त खाके गिर जाएँ
चलेगा मंत्र फुरेगा वाचा आओ नरसिंह वीर देखा तेरे इल्म का तमाशा
मेरे गुरु का शब्द सांचा !
दुहाई गुरु गोरखनाथ की !
*जप के बाद तील से 1000 बार हवन करें।
जप के दौरान पालने योग्य नियम:-
1. यह जप शनिवार से आरम्भ करें और सोमवार को हवनादि करके इसकी समाप्ति करें।
2. यह जप-साधना किसी तीर्थ स्थान या सिद्धस्थल में किया जाए तो अतिउत्तम रहता है।
3. तील तेल के दीपक को अपने दाहिने हाथ की ओर व्याघ्रनख के सामने रखें।
4.जप के दौरान दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें।
5.जप के लिए कमलगट्टे की माला का प्रयोग करें ।
6.जप के दौरान काले कम्बल के आसन पर बैठें।
7.काला वस्त्र धारण करें। 8.एक समय सामान्य भोजन करें खिचड़ी खाना सर्वोत्तम रहता है।
9. ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
*धारण-प्रकार* :-
1. व्याघ्रनख को चाँदी में लाकेट के रुप में मढ़ाकर रुद्राक्ष/कमलगट्टे की माला में गुँथवाकर अथवा चाँदी के हार में पिरो कर अथवा लाल धागे के साथ धारण करना चाहिए।
2.व्याघ्रनख को मंगलवार के दिन सूर्योदय के समय स्नानपूजनादि करके धारण चाहिए।
*सावधानी* :-
मंगल खराब हो या हाई ब्लड़प्रेशर की समस्या हो या आपका शरीर पित्त प्रकृति का हो अथवा बहुत बिमार रहने से आपका शरीर जर्जर हो गया हो तो व्याघ्रनख धारण न करें।
*चेतावनी* :-
1. बाघ भगवती का वाहन है, इसलिए किसी भी प्रकार की हिंसा से प्राप्त नख का साधनात्मक प्रयोग विपरीत फल प्रदान करेगा। इसके लिए संयोग से अनायास प्राप्त व्याघ्रनख का ही प्रयोग शास्त्रसम्मत है।
2. बाघ हमारे देश का राष्ट्रीय पशु है उसके साथ किसी भी प्रकार से की गई हिंसा कानूनन अपराध की श्रेणी में आती है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। हम किसी जीव-जन्तु की हिंसा के सख्त विरोधी हैं। इस पोस्ट का उद्देश्य सिर्फ शास्त्रीय ज्ञान को सही रुप में आगे बढ़ाना मात्र है।
-ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
मो.-9097278733.
Fb-@ptbrajesh.