अस्ति कश्चिद्वाग्विशेषः

अस्तिकश्चिद् वाग्विशेषः?

यह प्रश्न व्यंग्यात्मक शैली में विद्योत्तमा ने कालीदास जी से किया था, जब वो विद्वान बनकर उससे मिलने आए थे।

कालीदास को सम्मान न मिलने पर वो दरवाजे से ही वापस लौट आए और बाद में कालीदास जी ने इन्ही तीन शब्दों से शुरु करते हुए तीन अलग अलग काव्य ग्रन्थों की रचना करके विद्योत्तमा को भेजा।

इस प्रश्न में तीन शब्द हैं-
1. अस्ति
2. कश्चिद्
3. वाग्विशेषः

अस्ति से शुरु करते हुए कुमारसम्भवम् लिखा-

अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।
पुर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥

– कुमारसम्भवम्

कश्चित् शब्द से शुरु करते हुए मेघदूतम् लिखा-

कश्चित् कान्ता विरहगुरुणा स्वाधिकारात् प्रमत्तः
शापेनास्तङ्गमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः।
यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।

– मेघदूतम्

वाग् शब्द से शुरू करते हुए रघुवंशम् लिखा-

वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥

– रघुवंशम्

ये तीनों ही ग्रन्थ संस्कृत साहित्य जगत् में मील के पत्थर साबित हुए।
जिसने कालीदास को महाकवि,कविकुलगुरु बना दिया। जो उपाधि न तो उनसे पहले कोई ले सका था और न ही कोई उनके बाद आजतक कोई ले पाया है।

ग्रन्थ पढ़ने के बाद विद्योत्तमा को बहुत पश्चाताप हुआ, वो उनके पास जाकर खुद को अपनाने की विनती करने लगी, पर कालीदास बार बार विद्योत्तमा के द्वारा किए गए अपमान को भूल नहीं सके और विद्योत्तमा को कभी माफ नहीं कर पाए।

– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”

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