जन्मदिन हिंदी तिथि से मनाएँ या अंग्रेजी तिथि से ?

जन्मदिन कैसे मनाएं ? जन्मदिन कब मनाएं ?

प्रश्न-  आप से एक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, किन्हीं के पुण्यतिथि/जन्मदिन मनाने हेतु अंग्रेजी तारीख उत्तम होता है या हमारे हिन्दी पंचाग की तिथि ?

उत्तर- हमारे शास्त्रों में 9 प्रकार के कालमानों का वर्णन है, जिनमें सामान्य जनों के दैनिक व्यवहार हेतु सौरमान व चान्द्रमान प्रचलन में है। जिसे आपने हिन्दी तिथि के रुप से अभिव्यक्त करना चाहा है वो दरअसल चान्द्रमान है। आजकल जिसे अंग्रेजी तारीख के रुप में प्रचलित किया गया है, वो दरअसल भारतीय सौरमान ही है । जिसे अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से नया नामकरणीक जामा पहनाकर मामूली फेरबदल के साथ अपना बताते हुए प्रस्तुत किया और प्रचारित किया ।

ये बिल्कुल वैसा ही जैसे बहुत सारी कम्पनियाँ पोड़क्टस् के सारे सारे पार्टस् तो विदेशों में ही बनवाते हैं लेकिन उनको भारत में मँगा कर एसेम्बल करते हैं और उसमें मेड़ इन इण्ड़िया का मोहर लगाकर हमलोगों को मूर्ख बनाते हैं। आज भी नेपाल, उत्तराखण्ड़, हिमाचल आदि क्षेत्रों में लोग सौरमास भारतीय रीति से ही प्रयोग करते हैं, जैसे मीनगते, मेषगते आदि । हमारे जो पंचांग हैं, वो सौरचान्द्र पंचांग होते हैं । अधिमास और क्षयमास के रुप में हमारे ऋषिमुनियों ने चान्द्रसौरमानों का बहुत ही अद्भुत संयुक्त रुप हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है, जो हमारे प्रचलन में हमेशा से है।

अब यहाँ यह ध्यातव्य है कि व्रत,पर्व, त्यौहार आदि के लिए चान्द्रमास की प्रधानता रहती है। जबकि वय, आयु, तथा कुछ मुहूर्त आदि में सौरमास की प्रधानता रहती है। इसलिए अपना जन्मदिन अथवा किसी की पुण्यतिथि आदि सौरदिन (अंग्रेजी दिनांक) को मनाना युक्तियुक्त है । अब इस सन्दर्भ में आपको कुछ प्रमाणों की अपेक्षा हो सकती है। तो एक महत्वपूर्ण बात आपको बता दूँ कि दशाआदि के लिए जो वर्षमान माने गए हैं वो सौरमान के अनुसार ही कहे जाते हैं। पुनश्च ताजिक शास्त्रों में जो वर्षकुण्ड़ली बनाई जाती है वो भी सौरमान के अनुसार ही बनाई जाती है।

शुक्ल यजुर्वेद की एक ऋचा है,  जीवेम शरदः शतम् जिसका  अर्थ है हम सौ शरद ऋतुओं तक जियें । अब यहाँ यह प्रश्न उठना तो स्वाभाविक है कि सौ वर्षों तक जियें ऐसा न कह कर  सौ शरद ऋतुओं तक जियें ऐसा क्यों कहा? ऐसा इसलिए कहा क्योंकि नौ प्रकार के कालमानों में से किस कालमान के अनुसार सौ वर्ष जियें यह प्रश्न उत्पन्न हो जाता। शरदः शब्द का प्रयोग यह स्पष्ट कर देता है कि सौरमान के अनुसार सौ वर्षों तक जियें। शरदः शब्द का प्रयोग द्विअर्थी है जो वर्ष के साथ-साथ सौरमान को भी अभिव्यञ्जित कर रहा है। कैसे??

आधुनिक वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार आप सब जानते हैं कि ऋतुओं का कारण सूर्य है, ये बात हम हाई स्कूल से ही पढ़ते आ रहे हैं, वेद संहिताओं में तथा ज्योतिष् शास्त्र में तो सूर्य को ऋतुओं का स्वामी कहा ही गया है। इसलिए जीवेम शरदः शतम् कहने से सौरमान के अनुसार सौ वर्षों तक जियें ऐसा अर्थ परिलक्षित हो रहा है। यहाँ पर एक जिज्ञासा और हो सकती है कि ऋतुएँ तो छः हैं फिर शरद का उल्लेख क्यों? इसका भी उत्तर दिया जा सकता है लेकिन वो इस लेख में प्रस्तुत प्रश्न के लिए आवश्यक नहीं है। यथास्थान इसका उत्तर प्रस्तुत करेंगे|

इस प्रश्न के संबंध में विशेष जानकारी के लिए आप मेरे लेख- संवत्सर मीमांसा और खरमास रहस्य को भी पढ़ें ।

– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”

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