होलाष्टक विचार
इस वर्ष 2 मार्च 2020 से होलाष्टक का आरम्भ हो रहा है । यह होली के आठ दिन पहले से शुरू हो कर होली तक रहने वाला एक अशुभ मुहूर्त है ।
शुक्लाष्टमीसमारभ्य फाल्गुनस्य दिनाष्टकम्।
पूर्णिमावधिकं व्याज्यं होलाष्टकमिदं शुभे।।
(शीघ्रबोध श्लोक सं. 137)
अर्थात्- फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से आरम्भ करके फाल्गुन पूर्णिमा तक की अष्टदिवसात्मक अवधि होलाष्टक के नाम से जानी जाती है, इस दौरान शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
शुतुद्रयां च विपाशायामैरावत्यां त्रिपुष्करे।
होलाष्टकं विवाहावौत्याज्यमन्यत्र शोभनम् ।।
(शीघ्रबोध श्लोक सं. 138)
अर्थात्- सतलज (शुतुद्री), विपाशा (व्यास), इरावती (रावी) नदियों के तटवर्ती क्षेत्र और त्रिपुष्कर (पुष्कर) क्षेत्र में होलाष्टक के दौरान विवाहादि शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इनसे भिन्न स्थानों में ही विवाहादि कार्य शुभ हैं।
ऐरावत्यां विपाशायां शतद्रौ पुष्करत्रये।
होलिका प्राग्दिनान्यष्टौ विवाहादौ शुभे त्यजेत्।
मुहुर्तगणपति श्लोक सं. 204)
अर्थात्- विपाशा (व्यास), इरावती (रावी), शुतुद्री (सतलज) नदियों के निकटवर्ती दोनों ओर स्थित नगर, ग्राम, क्षेत्र में तथा त्रिपुष्कर (पुष्कर) क्षेत्र में होलाष्टक दोष के कारण फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तिथि के पहले के आठ दिन में विवाह, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य वर्जित हैं।
इसके सन्दर्भ में सर्वमान्य सुप्रसिद्ध मुहूर्त ग्रन्थ “मुहुर्त चिन्तामणि” में श्रीराम दैवज्ञ लिखते हैं-
विपाशेरावतीतीरे शुतुद्रूश्च त्रिपुष्करे ।
विवाहादिशुभे नेष्टं होलिकाप्राग्दिनाष्टकम् ।।
मु.चि., प्र.१ श्लो.४०
अर्थात- विपाशा (व्यास), इरावती(रावी), शुतुद्रू(सतलुज), नदियों के तीरप्रदेशों में तथा त्रिपुष्कर (अजमेर राजस्थान) क्षेत्रों में होलिका से आठ दिन पहले(अर्थात् फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा पर्यन्त) विवाह आदि शुभ कार्य निन्दित हैं । इसे “होलाष्टक” के नाम से जाना जाता है ।
ये नदियाँ पंजाब प्रान्त और हिमाचल की हैं । अतः पंजाब, हिमाचल और राजस्थान आदि में होलाष्टक के दौरान शुभकार्य वर्जित है । बड़ी नदियों के दोनों ओर योजन पर्यन्त तट कहा गया है,अतः विशेष सावधानी के लिए श्लोकोक्त स्थानों के सीमावर्ती स्थानों में भी होलाष्टक के दौरान शुभ कर्म वर्जित कर सकते हैं। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्यों की वर्जनियता सार्वदेशिक नहीं है, फिर भी आजकल समूचे उत्तर भारतीय क्षेत्र में होलाष्टक माना जाता है ।
होली के बाद भी 15 दिन संवत्सर काअंतिम पक्ष होने से शुभ कर्मों के लिए वर्जित हैं ।
इस दौरान मुख्यरूप से विवाह, उपनयन, मुंडन, अन्नप्राशन, गृहनिर्माण, गृहप्रवेश और किसी बड़े कार्य का शुभारम्भ नहीं करना चाहिये ।
– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान, लोहरदगा।