21 जून को लग रहा है चूड़ामणि सूर्यग्रहण
कंकण सूर्यग्रहण
Ring Of Fire
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आषाढ़ कृष्ण अमावस्या दिन रविवार तदनुसार 21 जून 2020 को भारतवर्ष में चूडामणि सूर्यग्रहण लगने वाला है। यह ग्रहण बहुत ज्यादा खास है | इस प्रकार का ग्रहण दशकों बाद लगता है जैसा ग्रहण इस बार लग रहा है वैसा ग्रहण पुनः इस दशक में भारतवर्ष में दिखाई नहीं देगा | इसलिए यह ग्रहण बहुत ज्यादा ऐतिहासिक है । अगला सूर्यग्रहण जो भारत से होकर गुजरेगा वह 21 मई 2031 को होगा | तो आइए आज इस ग्रहण की विशेषताओं के बारे में जानते हैं | साथ ही ग्रहण संबंधी कृत्याकृत्य सूतक तथा अन्य वैज्ञानिक और धर्मशास्त्रीय जानकारियां भी प्राप्त करेंगे।
21 जून 2020 को लगने वाला सूर्य ग्रहण दो प्रकार का होगा –
- कंकण सूर्य ग्रहण (Annular Eclipse) और
- आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Eclipse) ।
यह आपके क्षेत्र के लोकेशन पर निर्भर करेगा कि आप Annular Eclipse देख पायेंगे या Partial Eclipse।
भारत में यह ग्रहण कहाँ कहाँ दिखाई देगा –
मुख्य रूप से कंकण सूर्यग्रहण भारतवर्ष के उत्तरवर्ती इलाकों जैसे राजस्थान, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश और उत्तराखंड इत्यादि स्थानों में दिखलाई पड़ेगा, वहीं भारतवर्ष के दक्षिणी क्षेत्र में आंशिक सूर्यग्रहण ही दिखलाई पड़ेगा।
वलयाकार सूर्यग्रहण भारत में कहाँ कहाँ दिखेगा ?
21 जून को उत्तर भारत के केवल चार राज्यों- राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड के हिस्से ही इस वलयाकार सूर्य-ग्रहण को देख सकेंगे | जबकि आंशिक सूर्यग्रहण पूरे भारतवर्ष में दिखाई पडेगा | भारत में वलयाकार सूर्यग्रहण की शुरुआत राजस्थान के पश्चिमी छोर पर स्थित घरसाना नामक स्थान से होगी तथा वलयाकार सूर्यग्रहण की समाप्ति जोशीमठ नामक स्थान से होगी | इनके मध्य स्थित स्थानों यथा राजस्थान के अनूपगढ़, श्रीविजयनगर, सूरतगढ़, एलेनाबाद आदि स्थानों, हरियाणा के सिरसा, रतिया, जाखल, पिहोवा, कुरुक्षेत्र, लाडवा, यमुनानगर आदि स्थानों, उत्तर प्रदेश के बेहट नामक स्थान तथा उत्तराखण्ड के देहरादून, चम्बा, टिहरी, अगस्त्यमुनि, चमोली, गोपेश्वर, पीपलकोटी, तपोवन आदि स्थानों से ही वलयाकार सूर्यग्रहण देखा जा सकेगा |
आंशिक सूर्यग्रहण भारत में कहाँ कहाँ दिखेगा ?
आंशिक सूर्यग्रहण अलग-अलग आकर में भारतवर्ष के सभी स्थानों से देखा जा सकेगा | अपने स्थानभेद के अनुसार सूर्यग्रहण का समय सभी स्थानों के लिए अलग अलग होगा |
विश्व में यह ग्रहण कहाँ कहाँ दिखेगा –
यह कंकण सूर्यग्रहण विश्व में मध्य-अफ्रीका, कांगो, इथियोपिया, यमन, सऊदी अरबिया, ओमान, पाकिस्तान, चीन, ताइवान, दक्षिण-प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर और भारतवर्ष के संपूर्ण क्षेत्र में दिखलाई पड़ेगा। खण्डसूर्य ग्रहण के रूप में इसका प्रारम्भ दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी समुद्री सीमा से सूर्योदय के समय होगा | यहाँ खण्डग्रहण का मध्य तथा मोक्ष दृश्य होगा | मध्य अफ्रीका से फिलीपिन्स द्वीप समूह के सुदूर पूर्वोत्तर क्षेत्र में खण्डसूर्यग्रहण का स्पर्श मध्य तथा मोक्ष दृश्य होगा | खण्डसूर्यग्रहण का स्पर्श तथा मोक्ष पापुआ न्यूगिनि तथा प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में दृश्य होगा | कंकणाकृति सूर्यग्रहण का प्रारम्भ अफ्रीका के कांगो क्षेत्र में सूर्योदय के समय होगा जो कि मध्य अफ्रीका, अरब क्षेत्र, उत्तरी भारत तथा एशिया आदि देशों में दिखाई देगा | प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में सूर्यास्त के समय कंकणाकृति सूर्यग्रहण का मोक्ष होगा |
ग्रहण का मान –
भारतवर्ष के उत्तरी क्षेत्र में यह सूर्य ग्रहण 69% से 98.97% तक दिखलाई पड़ेगा वहीं दक्षिणी क्षेत्रों में सूर्य ग्रहण 23% से 50.25% के आसपास दिखलाई पड़ेगा । दिल्ली में 93.77%, मुम्बई में 62.10%, कलकत्ता में 65.52% और चेन्नई में 34.23% ग्रहण ग्रास नजर आएगा |
इस ग्रहण की वलयाकारिता अवधि बहुत कम है | उत्तर भारत के अमलोहा (हरियाणा) तथा तलवार खुर्द (हरियाणा) में इस सूर्य ग्रहण की कुण्डलाकार या वलयाकार आकृति सबसे लम्बे समय तक यानि अधिकतम 33 सेकंड तक दिखलाई देगी | यह अपने आप में खगोल शास्त्रियों और ज्योतिष जिज्ञासुओं के लिए बहुत ही रोमांचक और ऐतिहासिक खगोलीय घटना होगी। विज्ञान प्रसार नेटवर्क(VIPNET) तथा ज्योतिर्विद्या परिसंस्था पुणे के वैज्ञानिकों की पूरी टीम इस खगोलीय घटना की साक्षी बनने के लिए हरियाणा जाने वाली थी | परन्तु इस वैश्विक आपदा के कारण इस योजना को विराम देना पड़ा | इस ग्रहण को सबलोग अपने अपने स्थानों से ही देखेंगे |
ग्रहण का समय –
आप सबको पता ही है और मैंने ऊपर बताया भी है की सूर्यग्रहण का समय स्थानभेद से अलग-अलग से होता है ! ऐसा क्यों होता है, इस पर हम इसी लेख में आगे चर्चा करेंगे | भारतवर्ष में खण्ड सूर्यग्रहण की शुरुआत 09:16 a.m से होगी तथा खण्ड सूर्यग्रहण की समाप्ति 03:14 p.m पर होगी | इसी समय के बीच में अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर वलयाकार या खण्ड सूर्यग्रहण की दृश्यता रहेगी |
राँची के लिए ग्रहण का समय-
राँची में वलयाकार सूर्यग्रहण दृश्य नहीं है | राँची में आप खण्ड सूर्यग्रहण ही देख पाएँगे | राँची में ग्रहण का समय निम्नलिखित रहेगा-
सूर्य-ग्रहण – 21 जून 2020
प्रारम्भ : 10:36 AM
मध्य : 12:25 AM
समाप्ति: 14:09 AM
राँची के लिए सूतक प्रारम्भ: 20 जून रात्रि 10:35p.m से |
आप निम्नलिखित वेबसाइट पर जाकर अपने स्थान का सही ग्रहण-समय जान सकते हैं-
https://www.timeanddate.com/eclipse/in/india/ranchi
ग्रहण समाप्ति कब ??? 3 बजे के आसपास या शाम 7 बजे के आसपास ?
बहुत सारे लोग इस प्रश्न पर भ्रमित हैं क्योंकि पंचांग में ग्रहण समाप्ति केवल 03:05pm के आस-पास दिया है। लेकिन इन्टरनेट आदि में ग्रहण समाप्ति का समय 6:39pm के आस पास दिया है। ऐसे में लोग भ्रमित हैं किस समय को ग्रहण समाप्ति का समय माना जाए? मेरे what’s app और मैसेंजर पर अनेकों लोगों के प्रश्न भरे पड़े हैं। आप सबको इस प्रश्न का एक साथ ही उत्तर देना चाहूँगा कि धरती पर ग्रहण का प्रारम्भ दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी समुद्री सीमा में सूर्योदय के समय से हो रहा है और ग्रहण की समाप्ति प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में सूर्यास्त के समय पर हो रहा है।
यह वैश्विक सन्दर्भ में ग्रहण का प्रारम्भ और अन्त समय है। लेकिन धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार ग्रहण दृश्यफल को धारण करता है। अर्थात् जिस स्थान पर ग्रहण दिखेगा वहीं उसके नियमानुशासन लागू होंगे और जब तक दिखेगा तब तक ही लागू रहेंगे। भारतवर्ष में ग्रहण का स्पर्श 09:16 am के आसपास और मोक्ष 03:14 pm के आस पास होगा। इसलिए हम भारतवासियों के लिए 03:14 pm बजे ग्रहण समाप्त हो जाएगा। 03:15 बजे से ग्रहण संबंधी स्नान-दान के पश्चात् हमलोग अपने दैनिक रूटिन को फोलो कर सकते हैं ।
चन्द्रग्रहण की तरह सूर्यग्रहण भी पूरी पृथ्वी पर एक साथ क्यों नहीं दिखता ?
इस प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए हमें ग्रहण के कुछ बारीक तथ्यों को ठीक से समझना पड़ेगा। इसके लिए आइए सर्वप्रथम हम यह जाने कि ग्रहण क्या है?
ग्रहण क्या है ? – किसी आकाशीय पिंड का किसी अन्य आकाशीय पिंड से ढ़क जाना ग्रहण कहलाता है। हम पृथ्वीवासी यहां से हर वर्ष सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण देखते हैं।
सूर्य ग्रहण में चंद्रमा छादक और चंद्र ग्रहण में पृथ्वी की छाया छादिका होती है। चंद्रमा द्वारा किसी अन्य ग्रह को ढकने की प्रक्रिया चंद्र समागम या Occultation कहलाती है।
ग्रहण तभी लगता है जब छाद्य(सूर्य/चन्द्रमा) और छादक(चन्द्र/भूच्छाया) एक सरल रेखा में हों अर्थात् ज्योतिषीय भाषा में छाद्य छादक के पूर्वापर और याम्योत्तर अंतर का अभाव हो जाए तथा छाद्य पात(राहु/केतु) के सन्निकट हो।
सूर्य को एक पात से गुजरने के पश्चात उसी पात पर पुनः आने में 346.62 दिन लगते हैं। इसे ही ग्रहण वर्ष कहा जाता है। पातों की संख्या दो होने के कारण इनके आधे दिन अर्थात 173.31 दिनों में सूर्य किसी न किसी पात पर आता है। एक ग्रहण से दूसरे ग्रहण की संभावना 176.68 दिनों के बाद ही बनती है।
आपको मेरा यह लेख भी पढना चाहिए –
https://grahrasi.com/सौरमास-व-चान्द्रमास-गणना/
चन्द्र ग्रहण कैसे होता है ?
पूर्णिमा(पूर्वापर अन्तर) के दिन शराभाव (चन्द्रग्रहण में शराभाव याम्योत्तर अन्तर होता है।) होने पर चन्द्रग्रहण होता है। #शर क्या है? शर को इंग्लिश में Celestial Latitude कहते हैं। शर सिद्धांत ज्योतिष् का तकनीकी शब्द है। कदम्बप्रोत वृत्त में ग्रहबिम्ब और ग्रहस्थान का अन्तर शर कहलाता है। शर के अभाव को शराभाव कहते हैं । हर बार चन्द्र+राहु/केतु रहने पर पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण नहीं होता, बल्कि इनके साथ-साथ जब शराभाव होता है तभी चन्द्रग्रहण होता है। अगर शराभाव की बात न होती तो हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण क्यों नहीं लगता?
चलिए इसी क्रम में लगे हाथों शर निकालने का सूत्र भी बता देता हूँ। #शरानयनम्- स्पष्ट चन्द्र में पात को घटाकर जो शेष बचे उसकी जीवा निकालकर उसे चन्द्रमा के परम विक्षेप (२७०’ कला) से गुणा करके त्रिज्या (३४३८ कला) से भाग देने पर लब्धि कलादि स्पष्टशर प्राप्त होता है।
चंद्रग्रहण के संबंध में एक अति #महत्त्वपूर्ण बात आपको बताता हुँ। ऊपर यह बताया जा चुका है कि जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण होता है। चंद्रमा अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत नजदीक है। और चन्द्रमा का भ्रमण वृत्त पृथ्वी के वृत्त पर स्थित है। चन्द्रमा पर पड़ने वाली भूच्छाया से हमारा सीधा संबंध है क्योंकि हम स्वयं पृथ्वी पर निवास करते हैं। इसलिए चंद्रमा पर पढ़ने वाली पृथ्वी की छाया पूरी पृथ्वी से देखने पर एक समान ही दिखाई पड़ती है। अर्थात चंद्रग्रहण सार्वभौमिक होता है, और सरल शब्दों में कहूं तो जिस दिन चंद्रग्रहण होगा उस दिन पूरी पृथ्वी पर जहां-जहां रात होगी सभी स्थानों पर समान रूप से चंद्रग्रहण दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण में ऐसा नहीं होता, सूर्यग्रहण सार्वभौमिक नहीं है। अब आइए सूर्य ग्रहण को ठीक से समझते हैं।
सूर्य ग्रहण कैसे होता है ?
अमावस्या (पूर्वापरान्तराभाव) के दिन लम्बन और नति (सूर्यग्रहण में याम्योत्तर अन्तर लम्बन और नति संस्कार से ज्ञात होता है।) का अभाव रहने पर सूर्य ग्रहण होता है। लम्बन को अंग्रेजी में Parallax कहते हैं। भूपृष्ठीय ग्रह भूकेंद्रीय ग्रह की तुलना में जितना लंबित होता है वही लंबन कहलाता है। शरों के अंतर को नति कहते हैं। लंबन और नति का मान अक्षांश भेद से बदल जाता है, साथ ही सूर्य हमसे बहुत ज्यादा दूरी पर स्थित है। सूर्य बिंब को चंद्र बिंब द्वारा ढक लिए जाने पर सूर्यग्रहण होता है। चंद्र बिंब से हमारा सीधा संबंध नहीं है और चंद्रमा तथा सूर्य के भ्रमण वृत्तों के बीच बहुत दूरी है, चंद्र का बिंब सूर्य बिंब से छोटा भी है।
इन सभी कारणों से पूरी पृथ्वी से सूर्य ग्रहण समान रूप से दिखाई नहीं देता, बल्कि सूर्य ग्रहण का समय पूरी पृथ्वी के लिए अलग-अलग होता है और उसका समय भी स्थानभेद से बदलता रहता है। अर्थात् सूर्यग्रहण चंद्रग्रहण की भांति #सार्वभौमिक नहीं होता। सूर्यग्रहण मात्र 10000 किलोमीटर लंबाई और 250 किलोमीटर चौड़ाई के क्षेत्र तक में ही एक बार में दिखाई देता है।
इसी क्रम में आइए सूर्यग्रहण से जुड़ी अत्यंत #महत्वपूर्ण और #रोचक जानकारी आपको बताता हूँ। ऐसा नहीं है की केवल चंद्र बिंब की छाया पढ़ने पर ही सूर्य ग्रहण होता है बल्कि अन्य आंतरिक ग्रहों अर्थात बुध और शुक्र बिंब की छाया पढ़ने पर भी सूर्य ग्रहण होता है। परंतु इनका बिंब पृथ्वी से बहुत छोटा दिखाई पड़ने के कारण हम इसे ग्रहण नहीं कहते, बल्कि इसे बुध का #पारगमन और शुक्र का #पारगमन नाम से जानते हैं। बुध और शुक्र का पारगमन सदी की बहुत महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है, यह बहुत कम ही देखने को मिलती है। 2012 में #शुक्र का पारगमन हुआ था जिसे मैंने अपने गुरु जी आदरणीय श्री #वैद्यनाथ मिश्र गुरुजी के आशीर्वाद से उनके और कुछ खगोल वैज्ञानिकों के साथ देखा था। इस सदी में अब शुक्र का पारगमन दिखाई नहीं देगा।
इस ग्रहण की विशेषता –
- यह इस दशक का अन्तिम कंकण सूर्यग्रहण (Annular Eclipse) है।
- ऐसा कंकण सूर्यग्रहण इस दशक में अब भारतवर्ष में नहीं दिखाई देगा।
- वैज्ञानिकों ने इस सूर्य ग्रहण को रिंग ऑफ फायर नाम दिया है।
- सूर्य ग्रहण का सम्पूर्ण मान 5 घंटे 58 मिनट होगा।
- इसका मैग्निट्यूड़ 0.994 होगा।
- विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य का 23% से 99% भाग चन्द्रच्छाया द्वारा ग्रसित नजर आएगा, चन्द्रमा अपने शीघ्रोच्च स्थान के नजदीक होगा।
- यह सूर्यग्रहण सारोस चक्र में 137वें क्रमांक का सूर्यग्रहण है।
- भारत में दृश्य कंकण सू्र्यग्रहण 55 वर्ष पूर्व 23 नवम्बर 1965 के बाद 26 दिसम्बर 2019 को हुआ था और अब अभी हो रहा है ।
- इस वर्ष मिथुन राशि के मृगशिरा नक्षत्र में 4 ग्रहों की युति के साथ सूर्यग्रहण की घटना बहुत ऐतिहासिक है |
- इस वर्ष का यह ग्रहण चूड़ामणि योग वाला होने से धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा महत्त्व वाला है |
ग्रहण सूतक –
यह सूर्यग्रहण पुरे भारत में दिखाई देगा !
इस दौरान जप -तप और दान का विशेष महत्व होगा !
धर्मशास्त्रों के अनुसार चन्द्रग्रहण में ग्रहण से 9 घण्टे पहले और सूर्यग्रहण में ग्रहण से 12 घण्टे पहले ग्रहण सूतक लगता है। इसमें शिशु, अतिवृद्ध और गम्भीर रोगी को छोड़कर अन्य लोगों के लिए भोजन और मल-मूत्र त्याग वर्जित है।
कहा भी गया है-
सूर्यग्रहेतुनाश्नीयात्पूर्वंयामचतुष्टयम्।
चन्द्रग्रहेतुयामास्त्रीन् बालवृद्धातुरैर्विना।।
सभी सनातनियों को इस धर्मशास्त्रीय आदेश का पालन करते हुए, सूतक के समय से ही ग्रहण के सभी नियमों का पालन करना चाहिए।
विभिन्न राशियों पर ग्रहण का प्रभाव –
- मेष- सन्ततिचिन्ता ।
- वृष- सुख ।
- मिथुन- स्त्रीकष्ट ।
- कर्क- मृत्युभय ।
- सिंह- माननाश ।
- कन्या- सुख ।
- तुला- लाभ ।
- वृश्चिक- हानि ।
- धनु- निधन ।
- मकर- क्षति |
- कुम्भ- श्रीप्राप्ति ।
- मीन- व्यथा ।
जिन राशियों के लिए अनिष्ट फल कहा गया है, उन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए । अनिष्टप्रदग्रहणफलों के निवारण के लिए स्वर्ण निर्मित सर्प कांसे के बर्तन में तील, वस्त्र एवं दक्षिणा के साथ श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करना चाहिए । अथवा अपनी शक्ति के अनुसार सोने या चाँदी का ग्रहबिम्ब बनाकर ग्रहण जनित अशुभ फल निवारण हेतु दान करना चाहिए। ग्रहण दोष निवारण के लिए विशेषकर गौ, भूमि अथवा सुवर्ण का दान दैवज्ञ के लिए करना चाहिए।
दान करते समय ये श्लोक पढ़ें-
तमोमयमहाभीमसोमसूर्यविमर्दन, हेमनागप्रदानेनममशान्तिप्रदोभव।विधुन्तुदनमस्तुभ्यंसिंहाकानन्दनाच्युताम्, दानेनानेननागस्यरक्षमां वेधनाद्भयात्।।
इस प्रकार दान करने से निश्चय ही ग्रहण जनित अशुभ से अशुभ फलों का भी शमन हो जाता है और उसके दुष्प्रभावों से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है।
ग्रहण के समय क्या करें क्या न करें?
- चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
- श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वे मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
- देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना चाहिए।
- सूर्यग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। इसलिए घर में रखे सभी अनाज और सूखे अथवा कच्चे खाद्य पदार्थों में ग्रहण सुतक से पूर्व ही तुलसी या कुश रख देना चाहिए। जबकि पके हुए अन्न का अवश्य त्याग कर देना चाहिए। उसे किसी पशु या जीव-जन्तु को खिलाकर, पुनः नया भोजन बनाना चाहिए।
- ग्रहण वेध के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्थात् सूतक काल में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक तो बिलकुल भी अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
- एकान्त मे नदी के तट पर या तीर्थो मे गंगा आदि पवित्र स्थल मे रहकर ग्रहण के समय जप पाठ सर्वोत्तम माना गया है ।
- स्पर्श, मध्य या मोक्ष के दौरान क्या करें ? ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद तीर्थ में स्नान का विशेष फल है। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए।
- मोक्ष के पश्चात् ग्रहण समाप्ति पर स्नान के पश्चात् ग्रह के सम्पूर्ण बिम्ब का दर्शन करें, प्रणाम करें और अर्ध्य दें।उसके बाद सदक्षिणा अन्नदान अवश्य करें।
- ग्रहण समाप्ति स्नान के पश्चात सोना आदि दिव्य धातुओं का दान बहुत फलदायी माना जाता है और कठिन पापों को भी नष्ट कर देता है। इस समय किया गया कोई भी दान अक्षय होकर कई गुना फल प्रदान करता है।
- जब सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण हो उस समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।
- जब ग्रहण लगा हो उस समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
- एक आवश्यक नियम ये भी है की ग्रहण काल मे सोना मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं।
- शास्त्रों में कहा गया है की ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
- ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)
- गर्भवती महिलाओं तथा नवप्रसुताओं को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। सुतक के समय से ही ग्रहण के यथाशक्ति नियमों का अनुशासन पूर्वक पालन करना चाहिए।उनके लिए बेहतर यही होगा कि घर से बाहर न निकलें और अपने कमरे में एक तुलसी का गमला रखें।
- ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएँ श्रीमद्भागवद् पुराणोक्त गर्भरक्षामन्त्र –
पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते । नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥
अभिद्रवति मामीश शरस्तप्तायसो विभो । कामं दहतु मां नाथ मा मे गर्भो निपात्यताम् ॥
का अनवरत मन ही मन पाठ करती रहें।
- भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। इसी प्रकार गंगा स्नान का फल भी चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना होता है।
- ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
- सूर्य या चन्द्र ग्रहण के दौरान भगवान के विग्रह को स्पर्श न करे।
- जब ग्रहण हो उस समय ईष्टमन्त्रों की सरलता से सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अतः अपने गुरु से अपने अभिष्ट मन्त्र लेकर उनके सानिध्य में ग्रहण के दौरान मन्त्र-सिद्धि भी कर सकते हैं। शाबर मन्त्र ग्रहण के दौरान गंगातट पर 10,000 जपने से सिद्ध हो जाते हैं।
- रविवार के दिन सूर्यसंक्रान्ति और सूर्य अथवा चन्द्रग्रहण में रविवार होने पर उस दिन पुत्रवान गृहस्थ को पारण एवं उपवास नहीं करना चाहिए।
ग्रहण को कैसे देखें ?
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ज्योतिषियों, खगोलशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के अलावा सामान्य जनमानस में भी ग्रहण को देखने की विशेष जिज्ञासा रहती है। खासकर छात्रों में यह उत्कण्ठा विशेषरूप से देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं कैसे हम 26 दिसम्बर को लगने वाले सूर्यग्रहण का आनन्द ले सकते हैं।
- ग्रहण को देखने के लिए पर्याप्त नेत्र सुरक्षा का ध्यान रखें | वैज्ञानिकों के द्वारा निर्देशित सूर्य ग्रहण चश्मा का ही प्रयोग करें ।
- ग्रहण को कभी भी खुली आंखों से ना देखें ।
- टकटकी लगाकर ग्रहण न देखें, पलकें झपकातें रहें।
- खुले मैदान में साफ आसमान के नीचे खड़े होकर आप ग्रहण देख सकते हैं।
- गणित ज्योतिष् के अध्येता और एस्ट्रोनामि के विद्यार्थी और खगोल वैज्ञानिक ग्रहण को विशेष तौर पर आब्जर्व करते हैं।
– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
B.H.U, वाराणसी।
विस्तृत एवं सारगर्भित लेख, 🙏🙏
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