#खग्रास_चन्द्रग्रहण 07 सितम्बर 2025
(भारत में दृश्यमान)
साल 2025 का पहला चन्द्रग्रहण
संवत् 2082 शक 1947 ई.सन् 2025-26 में विश्व में कुल चार ग्रहण लग रहे हैं। जिसमें दो सूर्यग्रहण हैं तथा दो चन्द्रग्रहण हैं। जिनमें कोई भी सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा जबकि दोनों चन्द्रग्रहण भारत में दिखाई देंगे अर्थात् इस वर्ष भारत के लिए दो ग्रहण है और दोनों चन्द्रग्रहण हैं, जिनमें से पहला चन्द्रग्रहण 07 सितम्बर 2025 की रात में होना है तथा दूसरा चन्द्रग्रहण 03 मार्च 2026 को होगा। दोनों में से कोई भी सूर्यग्रहण भारतवर्ष में दृश्य नहीं है। वर्ष 2025-26 का पहला सूर्यग्रहण 21 सितम्बर 2025 में घटित होगा, जो भारत में दृश्य नहीं होगा। 17 फरवरी 2026 को दूसरा सूर्यग्रहण होगा यह भी भारत में दृश्यमान नहीं होगा।

#अभी_7_सितम्बर_को_होने_वाले_चन्द्रग्रहण_का_विवरण_इस_प्रकार_है –
★ नाम – खग्रास चन्द्रग्रहण
★ दिनांक – 7 सितम्बर 2025
★ चान्द्र तिथि – भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा
★ दिन – रविवार
★ राशि – कुम्भ राशि
★ नक्षत्र – पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र
★ समय – 09:57 PM से 01:27 AM I.S.T
✓ ग्रहण का आरम्भ – 09:57 PM
✓ ग्रहण का मध्य – 11:41 PM
✓ ग्रहण का मोक्ष – 01:27 AM
➤ सूतक का आरम्भ – 12:57 PM
✹ ग्रासमान (Magnitude) – 1.368
विशेष – यह ग्रहण खग्रास चन्द्रग्रहण (Total Lunar Eclipse) के रूप में भारतवर्ष के अलावा आस्ट्रेलिया, पूर्व-पश्चिम-उत्तर अमेरिका में साथ ही अफ्रिका, यूरोप, एशिया, जापान, अटलांटिक पैसेफिक क्षेत्र, पश्चिमी प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर, अटांर्कटिका आदि क्षेत्रों में दृश्य होगा।
#नोट – यह ग्रहण भारतवर्ष में भी दृश्य है अतः हमारे देश में भी ग्रहणजन्य धर्मशास्त्रीय नियम एवं सूतक आदि मान्य होंगे।
#ग्रहण_क्या_है ? – किसी आकाशीय पिंड का किसी अन्य आकाशीय पिंड से ढ़क जाना ग्रहण कहलाता है। हम पृथ्वीवासी यहां से हर वर्ष सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण देखते हैं।
सूर्यग्रहण में चन्द्रमा छादक और चंद्र ग्रहण में पृथ्वी की छाया छादिका होती है। चंद्रमा द्वारा किसी अन्य ग्रह को ढकने की प्रक्रिया चंद्र समागम या Occultation कहलाती है।
ग्रहण तभी लगता है जब छाद्य(सूर्य/चन्द्रमा) और छादक(चन्द्र/भूच्छाया) एक सरल रेखा में हों अर्थात् ज्योतिषीय भाषा में छाद्य छादक के पूर्वापर और याम्योत्तर अंतर का अभाव हो जाए तथा छाद्य पात(राहु/केतु) के सन्निकट हो।
सूर्य को एक पात से गुजरने के पश्चात् उसी पात पर पुनः आने में 346.62 दिन लगते हैं। इसे ही ग्रहण वर्ष कहा जाता है। पातों की संख्या दो होने के कारण इनके आधे दिन अर्थात 173.31 दिनों में सूर्य किसी न किसी पात पर आता है। एक ग्रहण से दूसरे ग्रहण की संभावना 176.68 दिनों के बाद ही बनती है।
चन्द्र ग्रहण कैसे होता है ? पूर्णिमा (पूर्वापर अन्तर) के दिन शराभाव (चन्द्रग्रहण में शराभाव याम्योत्तर अन्तर होता है।) होने पर चन्द्रग्रहण होता है। #शर क्या है? शर को इंग्लिश में Celestial Latitude कहते हैं। शर सिद्धांत ज्योतिष् का तकनीकी शब्द है। कदम्बप्रोत वृत्त में ग्रहबिम्ब और ग्रहस्थान का अन्तर शर कहलाता है। शर के अभाव को शराभाव कहते हैं । हर बार चन्द्र+राहु/केतु रहने पर पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण नहीं होता, बल्कि इनके साथ-साथ जब शराभाव होता है तभी चन्द्रग्रहण होता है। अगर शराभाव की बात न होती तो हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण क्यों नहीं लगता?
चलिए इसी क्रम में लगे हाथों शर निकालने का सूत्र भी बता देता हूँ। शरानयनम्- स्पष्ट चन्द्र में पात को घटाकर जो शेष बचे उसकी जीवा निकालकर उसे चन्द्रमा के परम विक्षेप (२७०’ कला) से गुणा करके त्रिज्या (३४३८ कला) से भाग देने पर लब्धि कलादि स्पष्टशर प्राप्त होता है।
चंद्रग्रहण के संबंध में एक अति #महत्त्वपूर्ण बात आपको बताता हुँ। ऊपर यह बताया जा चुका है कि जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण होता है। चंद्रमा अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत नजदीक है। और चन्द्रमा का भ्रमण वृत्त पृथ्वी के वृत्त पर स्थित है। चन्द्रमा पर पड़ने वाली भूच्छाया से हमारा सीधा संबंध है क्योंकि हम स्वयं पृथ्वी पर निवास करते हैं। इसलिए चंद्रमा पर पढ़ने वाली पृथ्वी की छाया पूरी पृथ्वी से देखने पर एक समान ही दिखाई पड़ती है। अर्थात चंद्रग्रहण #सार्वभौमिक होता है, और सरल शब्दों में कहूं तो जिस दिन चंद्रग्रहण होगा उस दिन पूरी पृथ्वी पर जहां-जहां रात होगी सभी स्थानों पर समान रूप से चंद्रग्रहण दिखाई देगा। सूर्य ग्रहण में ऐसा नहीं होता, सूर्यग्रहण सार्वभौमिक नहीं है।
⁂ ⁂ ⁂ #श्राद्ध_विशेष ⁂ ⁂ ⁂
खग्रास चन्द्रग्रहण 7 सितम्बर 2025 को पूर्णिमा का महालय श्राद्ध है और इस दिन श्राद्धकाल में (अपराह्न के समय) ग्रहण सूतक लगा होगा अतः पक्वान्न का प्रयोग न करें। जब ग्रहणकाल के दौरान भी श्राद्धादि कर्म विहित हैं तो ग्रहण सूतक में भी श्राद्धादि कर्म विहित हैं लेकिन ग्रहणकाल या ग्रहणसूतक काल के दौरान श्राद्ध करते समय या श्राद्धादि कर्म के अंतर्गत दान करते समय कच्चे अन्नफलादि का ही प्रयोग करते हैं पक्वान्न का प्रयोग नहीं करते हैं।
#ग्रहण_के_समय_क्या_करें_क्या_न_करें?
1. चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
2. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वे मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना चाहिए।
4. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। इसलिए घर में रखे सभी अनाज और सूखे अथवा कच्चे खाद्य पदार्थों में ग्रहण सुतक से पूर्व ही तुलसी या कुश रख देना चाहिए। जबकि पके हुए अन्न का अवश्य त्याग कर देना चाहिए। उसे किसी पशु या जीव-जन्तु को खिलाकर, पुनः नया भोजन बनाना चाहिए।
5. ग्रहण वेध के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्थात् सूतक काल में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक तो बिलकुल भी अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
6.ग्रहण के समय एकान्त मे नदी के तट पर या तीर्थों मे गंगा आदि पवित्र स्थल मे रहकर जप पाठ सर्वोत्तम माना गया है ।
7. ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद तीर्थ में स्नान का विशेष फल है। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए।
8. ग्रहण समाप्ति पर स्नान के पश्चात् ग्रह के सम्पूर्ण बिम्ब का दर्शन करें, प्रणाम करें और अर्ध्य दें। उसके बाद सदक्षिणा अन्नदान अवश्य करें।
9. ग्रहण समाप्ति स्नान के पश्चात सोना आदि दिव्य धातुओं का दान बहुत फलदायी माना जाता है और कठिन पापों को भी नष्ट कर देता है। इस समय किया गया कोई भी दान अक्षय होकर कई गुना फल प्रदान करता है।
10. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।
11. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
12. ग्रहण काल मे सोना मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं।
13. ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
14. ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)
15. गर्भवती महिलाओं तथा नवप्रसुताओं को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। सुतक के समय से ही ग्रहण के यथाशक्ति नियमों का अनुशासन पूर्वक पालन करना चाहिए। उनके लिए बेहतर यही होगा कि घर से बाहर न निकलें और अपने कमरे में एक तुलसी का गमला रखें।
16. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएँ श्रीमद्भागवद् पुराणोक्त गर्भरक्षामन्त्र-
पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते । नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥
अभिद्रवति मामीश शरस्तप्तायसो विभो । कामं दहतु मां नाथ मा मे गर्भो निपात्यताम् ॥
का अनवरत मन ही मन पाठ करती रहें।
17. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। इसी प्रकार गंगा स्नान का फल भी चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना होता है।
18. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
19. ग्रहण के दौरान भगवान के विग्रह को स्पर्श न करे।
20. ग्रहण के समय इष्टमन्त्रों की सरलता से सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अतः अपने गुरु से अपने अभिष्ट मन्त्र लेकर उनके सानिध्य में ग्रहण के दौरान मन्त्र-सिद्धि भी कर सकते हैं। शाबर मन्त्र ग्रहण के दौरान गंगातट पर 10,000 जपने से सिद्ध हो जाते हैं।
21. अपने राशि पर पड़ने वाले ग्रहण के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ग्रहण के दौरान अपने राशिस्वामि का मन्त्र या सूर्य नारायण अथवा चन्द्रदेव के मन्त्र का जप करना बहुत प्रभावी होगा।
हरी ऊँ आचार्य जी सादर प्रणाम🌹🙏🌹