किसी भी व्यक्ति को यदि प्रयत्न करने पर भी निवास के लिये भूमि अथवा मकान न मिल रहा हो अथवा किसी का जमीन से संबंधित कोई विवाद चल रहा हो या भूमि संबंधि कोई केस-मुकदमा चल रहा हो तो उसे भगवान् वराहकी उपासना करनी चाहिये। भगवान् वराह की उपासना करने से, उनके मन्त्रका जप करने से, उनकी स्तुति-प्रार्थना करने से अवश्य ही निवास के योग्य भूमि या मकान मिल जाता है अथवा भूमि संबंधि किसी भी प्रकार के विवाद का निपटारा हो जाता है।
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स्कन्दपुराण के भूमिवाराहखण्ड में आया है कि भूमि प्राप्त करने के इच्छुक मनुष्य को सदा ही इस मन्त्र का जप करना चाहिये। जप का विधान एवं विनियोग आदि जनहित में सप्रमाण प्रस्तुत किया जा रहा है। योग्य गुरु से इस मन्त्र को प्राप्त करके (दीक्षा लेकर या गुरुमुख होकर) इस मन्त्र का न्यूनतम एक पुरश्चरण जप करना चाहिए अथवा लम्बे समय तक प्रतिदिन 108 बार जप करना चाहिए।
इस मंत्र का एक पुरश्चरण चार लाख का बताया गया है। कार्य की गंभीरता एवं आवश्यकता के अनुसार एक से अधिक पुरश्चरण भी हो सकते हैं। परिस्थिति एवं सामर्थ्य के अनुसार दैनिक जप या अनुष्ठानात्मक प्रयोग में से कोई एक या दोनों किया जा सकता है।
इस प्रयोग को करते समय वराह भगवान के एक विशेष स्वरूप ध्यान किया जाता है। हमारे परमप्रिय छात्र श्रीसुखविन्दर माही जी के अथक परिश्रम का सहारा लेकर हमने वह चित्र स्कन्दपुराण के भूमिवाराहखण्ड में वर्णित ध्यान के अनुसार चित्रित करने का प्रयास किया है। जिसका प्रकाशन जनहित की भावना हम इस पोस्ट में कर रहे हैं।
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विनियोग –
ॐ अस्य श्रीवराहमन्त्रस्य संकर्षण ऋषिः श्रीवराहो देवता पंक्तिश्छन्दः श्रीं बीजं श्रीवराहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
ध्यानम्
शुद्धस्फटिकशैलाभं रक्तपद्मदलेक्षणम्।
वराहवदनं सौम्यं चतुर्बाहुुं किरीटिनम्।।
श्रीवत्सवक्षसं चक्रशङ्खाभयकराम्बुजम्।
वामोरुस्थितया युक्तं त्वया मां सागराम्बरे।।
रक्तपीताम्बरधरं रक्ताभरणभूषितम्।
श्रीकूर्मपृष्ठमध्यस्थशेषमूर्त्यब्जसंस्थितम्।।
अर्थ – भगवान् वराह के अंगों की कान्ति शुद्ध स्फटिक पर्वत के समान श्वेत है। खिले हुए लाल कमलदलों के समान उनके सुन्दर नेत्र हैं। उनका मुख वराह के समान है, पर स्वरूप सौम्य है। उनकी चार भुजाएँ हैं। उनके मस्तक पर किरीट शोभा पाता है और वक्षःस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न है। उनके चार हाथों में चक्र, शङ्ख, अभय-मुद्रा और कमल सुशोभित हैं। उनकी बायीं गोद पर सागराम्बरा पृथ्वीदेवी विराजमान हैं। भगवान् वराह लाल, पीले वस्त्र पहने तथा लाल रंग के ही आभूषणों से विभूषित हैं। श्रीकच्छप के पृष्ठ के मध्य भाग में शेषनाग की मूर्ति है। उसके ऊपर सहस्त्रदल कमलका आसन है और उस पर भगवान् वराह विराजमान हैं।
मंत्र –
ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्युद्धारणाय स्वाहा।
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- यदि सामर्थ्य हो तो इसका तीव्र प्रभाव देखने के लिए अनुष्ठानात्मक रूप से चार लाख जप कराएँ।
- और खीर में गौघृत तथा मधु मिलाकर उससे दशांश हवन कराएँ।
- यह जप सम्पूर्ण अनुष्ठान पूर्वक आप स्वयं भी कर सकते हैं।
- यदि सामर्थ्य न हो तो कम से कम एक वर्ष तक या उससे भी अधिक समय तक या जीवन भर इसका नित्य एक माला जप करें।
- इस मंत्र के प्रयोग काल के दौरान स्कन्दपुराण के भूमिवाराहखण्ड में कहे गए इस प्रयोग के सम्पूर्ण विधान एवं कथा को भी अवश्य सुनना चाहिए। इस प्रसंग का pdf भी जनहित में इस पोस्ट के साथ संलग्न किया जा रहा है।
✍🏻 ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य