दीपावली पञ्चतिथ्यात्मक त्यौहार है। यह धनत्रयोदशी से प्रारम्भ होता है और यमद्वितीया पर पूर्ण होता है। धनत्रयोदशी, नरकचतुर्दशी, दीपावली, काली पूजा, गोवर्धन पूजा, यम द्वितीया (भैया दूज) ये सारे दीपावली पर्व के ही अंग हैं। आज की इस परिचर्चा में हम इन सभी पर्वों के पूजन मुहूर्त पर विचार करेंगे। इस वर्ष इस पञ्चतिथ्यात्मक पर्व को लेकर कई तरह की भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं। जनसामान्य के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। साथ ही लोगों के पास इस संबंध में जानकारी के जो भी स्रोत हैं उनमें भी एकवाक्यता नहीं है।
इसलिए सभी परिस्थितियों का सम्यक विचार विमर्श करने के बाद कई सारे पञ्चाङ्ग तथा धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन करने के पश्चात् कई विद्वानों एवं अपने गुरुजनों से चर्चा करने के पश्चात् मैं शास्त्रोचित निर्णय आप सबों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ, इससे शास्त्र मर्यादा की रक्षा होगी, आपके भ्रम का निवारण होगा एवं शुभ मुहूर्त में इस त्यौहार को मनाकर आप अधिकाधिक पुण्यशाली बनेंगे।
इस लेख में आपलोगों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों को भी सम्मिलित करते हुए लेख तैयार किया गया है। ताकि प्रश्नकर्ता को उत्तर मिल जाए और इस प्रसंग से सभी श्रद्धालु भक्तगण लाभान्वित हों। आइए इन पाँचों पर्व पर क्रमशः विचार करते हैं –
धनत्रयोदशी (धनतेरस) मुहूर्त
धनत्रयोदशी के संबंध में दो मत प्राप्त होते हैं, कुछ पञ्चाङ्गों में 30 अक्टूबर को तो कुछ पञ्चाङ्गों में 29 अक्टूबर को धनत्रयोदशी बताया गया है। मैंने हृषिकेश पञ्चाङ्ग, महावीर पञ्चाङ्ग, जगन्नाथ पञ्चाङ्ग, विद्यापीठ पञ्चाङ्ग, राष्ट्रीय राजधानी पञ्चाङ्ग आदि कई पञ्चाङ्ग मंगाए हैं। धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु ग्रन्थों में धनत्रयोदशी पर्व निर्णय संबंधी बातें ज्यादा विस्तार से प्राप्त नहीं होतीं। वहाँ यमदीपदान की विधि और मन्त्र का उल्लेख मिलता है।
मेरी जानकारी के अनुसार धनत्रयोदशी प्रदोष व्रत है, प्रदोष के संबंध में सायंकालीन या रात्रिव्यापिनी त्रयोदशी का ज्यादा महत्व है। निर्णयसिन्धु में धनत्रयोदशी के दिन यमदीपदान का जो विधान मिलता है उसमें निशामुखे शब्द का प्रयोग है जो रात्रि के प्रारम्भ में दीपदान करने का आदेश करता है, जब तक सूर्य है तब तक दिन है सूर्य के अस्त होने के बाद ही रात्रि का प्रारम्भ होता है।
29 अक्टूबर को प्रातः 10:31am के बाद से त्रयोदशी प्रारम्भ है जो 30 अक्टूबर को दोपहर 01:15pm तक रहेगी। इस प्रकार 29 अक्टूबर को रातभर त्रयोदशी प्राप्त होती है (कुबेर पूजन भी लोग रात्रि में ही करते हैं)। जबकि 30 अक्टूबर को दोपहर में ही त्रयोदशी समाप्त हो रही है। ज्यादातर पञ्चाङ्गों में धनत्रयोदशी 29 अक्टूबर को ही वर्णित है। मेरा भी यही अभिमत है कि धनत्रयोदशी 29 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए।
नरक चतुर्दशी :
नरक चतुर्दशी के संबंध में कोई मतवैभिन्य नहीं है। सभी पंचांगों ने 30 अक्टूबर को ही नरक निवारण चतुर्दशी बताया है। मेरे मत में भी 30 अक्टूबर को ही नरक निवारण चतुर्दशी मनाना उचित है। निर्णय सिन्धु में नरक चतुर्दशी के दिन तैलाभ्यंग स्नान, ब्रह्मा-विष्णु-महेश दीपदान, नरक दीपदान, यम तर्पण आदि करने का निर्देश और विधान दिया है। ये सब प्रकरण वहीं से देखना उचित है अथवा मुझे समय मिला तो इस पर अलग से पोस्ट लिखूँगा।
काली पूजा :
प्रदोषार्धरात्रिव्यापिनी अमावस्या काली पूजा में विशेष है। ऐसी अमावस्या न मिले तो अर्धरात्रिव्यापिनी अमावस्या के दिन काली पूजन किया जाता है। भारतवर्ष का एक बहुत बडा वर्ग काली पूजा करता है। इसे महानिशा पूजा, श्यामा पूजा अथवा काली पूजा कहते हैं। बंगाल आदि प्रान्तों में तो काली पूजा अत्यंत विशेष होता है।
काली माँ जिनलोगों की कुलदेवी हैं, वे लोग भी इस दिन अत्यंत विशेषरूप से महानिशा पूजन करते हैं। इस वर्ष काली पूजा को लेकर कोई मत वैभिन्य नहीं है। सभी लोग एक मत से 31 अक्टूबर को काली पूजा करने का निर्णय दे रहे हैं। मेरे मत में भी 31 अक्टूबर को काली पूजा करना प्रशस्त है।
दीपावली निर्णय :
इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर को और 01 नवम्बर को दोनों दिन उपस्थित हो रहा है, इस वजह से जनसामान्य में बहुत शंका है कि दीपावली किस दिन मनाई जाएगी??? यह पोस्ट इन सभी शंकाओं का निराकरण करेगी। आइए इनको सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं।
प्रश्न – 31 अक्टूबर को दीपावली पूजन करने में क्या समस्या है? यह तो सत्य है न कि कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर को है। कुछ लोग कह रहे हैं जब प्रदोषरार्धरात्रिव्यापिनी अमावस्या है तो 31 अक्टूबर को दीपावली पूजन करने में क्या दिक्कत है???
उत्तर – हे नारायण इसमें कुछ समस्या है। आप भी इन पर विचार करिए, आगे समस्या प्रस्तुत है।
पहली समस्या –
दीपावली के लिए निर्णय सिन्धु में कहते हैं – इषासितचतुर्दश्या-
मिन्दुक्षयतिथावपि
ऊर्जादौ स्वाती संयुक्ते
तदा दीपावली भवेत्।
भाव यह है कि कार्तिक मास में स्वाती नक्षत्र का संयोग जब हो तब दीपावली होती है।
ऐेसे ही प्रमाण धर्मसिन्धु में भी प्राप्त होते हैं। जहाँ कहा गया है –
चतुर्दश्यादिदिनत्रयेपि दीपावली संज्ञके यत्र यत्राह्नि स्वातीनक्षत्रयोगस्तस्य तस्य प्राशस्त्यातिशयः।
अर्थात् – चतुर्दशी से आरम्भ करके तीन दिनों की दीपावली संज्ञा है, उसमें जिस जिस दिन स्वाती नक्षत्र का योग है, वह वह दिन अत्यंत प्रशस्त है।
31 अक्टूबर को स्वाती नक्षत्र का संयोग नहीं हो रहा है।
दीपावली में प्रातः काल तैलाभ्यंग स्नान मध्याह्न में पार्वण श्राद्ध और सायंकाल लक्ष्मी अर्चना पूर्वक दीपदान करने और दीपोत्सव मनाने का क्रम मिलता है और सारे कार्य कर्मकाल में दर्श की व्याप्ति चाहते हैं। अर्थात् जिस समय इनको किया जाए उस समय अमावस्या मिले। ऐसा योग 31 को है नहीं, 31 को केवल दीपोत्सव में अमावस्या मिलेगी। इनको व्युत्क्रम से करने के भी कुछ प्रमाण हैं पर उत्तम पक्ष तो यही है इनको क्रम से किया जाए।
प्रश्न – क्या 01 नवम्बर को प्रदोष काल में अमावस्या है ?
उत्तर – बिलकुल है। यदि दृक्सिद्ध पंचागों को देखें तो 01 नवम्बर को दीपावली के लिए उपयुक्त प्रदोष काल में अमावस्या की प्राप्ति हो जाती है। यदि दृक्सिद्ध पंचांगों को न भी देखें सूर्य सिद्धान्त या अन्य कोई पंचांग देखें तो भी पुरुषार्थ चिन्तामणि के –
परत्र यामत्रयाधिकव्याप्तिदर्शे दर्शापेक्षया प्रतिपद्वृद्धिसत्त्वे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवेत्युक्तम्।
नियमानुसार 01 नवम्बर को ही दीपावली सिद्ध है।
प्रश्न – कब करें दीपावली पूजन ???
उत्तर – अनेक पञ्चाङ्गों ने एकमत से 01 नवम्बर को दीपावली पर्व मनाने का निर्देश दिया है। 01 नवम्बर को दीपावली मनाने के पीछे ठोस तर्क प्रस्तुत हैं –
- निर्णय सिन्धु में कहा गया है – इषासितचतुर्दश्यामिन्दुक्षयतिथावपि।
ऊर्जादौ स्वातिसंयुक्ते तदा दीपावली भवेत्।।
कुर्यात्संलग्नमेतच्च दीपोत्सवदिनत्रयम्।।
अर्थात् – चतुर्दशी, अमावस्या एवं प्रतिपदा इन तीनों को संलग्न करके तीन दिनों तक दीपोत्सव मनाना चाहिए। इनमें से जिस दिन स्वाति नक्षत्र का योग हो उस दिन दीपावली होती है। - धर्मसिन्धु में भी कहा गया है – चतुर्दश्यादि दिनत्रयेपि दीपावलिसंज्ञके यत्र यत्राह्नि स्वातीनक्षत्रयोगस्तस्य तस्य प्राशस्त्यातिशयः।
अर्थात् – चतुर्दशी से आरम्भ करके तीनों दिन दीपावली संज्ञक हैं। जिस जिस दिन स्वाती नक्षत्र का योग है, वे वे दिन अत्यंत प्रशस्त हैं। - कोई भी पंचांग देखिए आप देखेंगे कि 01 नवम्बर को ही स्वाती नक्षत्र का योग है। इसलिए 01 नवम्बर को दीपावली अत्यंत प्रशस्त है।
- मुझे घोर आश्चर्य है कि नवरात्र के दौरान इन्हीं ग्रन्थों से मूले तु आवाहयेद्देवीं श्रवणे च विसर्जयेत् कहने वाले विद्वान् गणों ने दीपावली निर्णय में स्वाती नक्षत्र वाली पंक्ति का स्पर्श तक नहीं किया। जबकि निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु दोनों ही ग्रन्थों में दीपावली निर्णय प्रसंग में स्वाती नक्षत्र के महत्व का वर्णन है। प्रमाण स्वरूप मैंने दोनों ग्रन्थों के स्वाती नक्षत्र वाले सन्दर्भ को ऊपर प्रस्तुत कर ही दिया है।
- अब आते हैं प्रदोष व्यापिनी अमावस्या पर 01 नवम्बर को दृक्सिद्ध पंचांगों के अनुसार प्रदोषकाल में अपेक्षित अमावस्या उपलब्ध है।
- यदि दृक्सिद्ध पंचांगों को न भी मानें सूर्य सिद्धान्त या अन्य कोई पंचांग को माने तो भी पुरुषार्थ चिन्तामणि के यामत्रयाधिकव्याप्तिदर्शे नियमानुसार 01 नवम्बर को दीपावली सिद्ध है।
- तैलाभ्यंगादि दीपावली के तीनों कर्मों को यदि क्रमशः करना है तो यह 01 नवम्बर को ही सम्भव है। 31 को दीपावली मानने से इनका व्युत्क्रम हो जाएगा। अतः मेरे अनुसन्धान के अनुसार शास्त्रीय मत से 01 नवम्बर को दीपावली मनाना प्रशस्त है।
प्रश्न – आपके अनुसार तो दीपावली 01 नवम्बर को है यह हमलोग समझ गए। अब जरा ये बताइए कि जो लोग किन्हीं कारणवश 31 अक्टूबर को दीपावली मनाएँगे क्या उन्हें लक्ष्मी माता का आशीर्वाद नहीं मिलेगा ? क्या उनकी दीपावली फलिभूत नहीं होगी ? क्या अनर्थ हो जाएगा ?
उत्तर – सबसे पहले तो अनर्थ और ये सब बडी बडी बातें मत करिए क्योंकि यह ज्योतिषीय मर्यादा के विपरीत है। यह भाषाशैली पढे लिखे गम्भीर शास्त्रनिष्ठ व्यक्ति की हो ही नहीं सकती। अब आते हैं आपके प्रश्न के उत्तर पर – मैंने धर्मसिन्धु में उद्धृत पुरुषार्थ चिन्तामणि का प्रमाण प्रस्तुत किया है। साथ में निर्णय सिन्धु एवं धर्मसिन्धु से प्रमाण दिए हैं। इन प्रमाणों को बिना हठ के कोई निरस्त नहीं कर सकता।
स्वाती नक्षत्र वाली बात अत्यंत विशेष है, क्योंकि कई बार इसका उल्लेख मिलता है। दीपावली तीन दिनों तक मनाते हैं, चतुर्दशी से प्रतिपदा तक। ऐसा निर्णयसिन्धु एवं धर्मसिन्धु दोनों का ही वचन है, प्रमाण ऊपर प्रस्तुत किया जा चुका है। इसलिए अगर कोई 31 अक्टूबर को दीपावली मनाए तो कुछ पुण्य नहीं मिलेगा या कामना पूर्ण नहीं होगी या कुछ अनिष्ट हो जाएगा ऐसा नहीं है, स्वाती नक्षत्र का संयोग होने से 1 नवबंर को दीपावली मनाने पर अत्यंत विशेष पुण्य प्राप्ति होगी ऐसा शास्त्रीय सन्दर्भों से मेरा विशेष अभिप्राय है।
प्रश्न – “01 नवम्बर को दीपावली मनाई तो हो जाएगा अनर्थ” इस शीर्षक के साथ एक पोस्ट वायरल हो रही है, उसकि क्या सत्यता है कृपया बताएँ।
उत्तर – वो सब फालतु की बकवास है। ये अर्थ का अनर्थ है। उन्होंने पोस्ट के साथ में स्कन्द पुराण के किसी पृष्ठ का चित्र भेजा हैै उसमें पढिए क्या लिखा –
प्रतिपदा के दिन जब एक मुहूर्त अमावस्या रहता है…. इस लाइन को पढिए ठीक से। अब जरा देखिए क्या 1 नवंबर को केवल मुहूर्तमात्र ही अमावस्या है और पूरे दिन प्रतिपदा है ?
पुनश्च इनकी भाषाशैली डिजाइनर एस्ट्रोलोजर वाली है। लोगों के बीच हाइप क्रिएट करो। ऐसे शब्द प्रयोग करो कि लोग डर जाएँ, दबाव में आ जाएँ, 31 के लिए जब ठोस प्रमाण मिल नहीं रहे हैं या लोग कन्वेंस नहीं हो रहे हैं तो उनके सेंटीमेंट्स से खेलो। कुछ इस प्रकार से लिखो कि लोग घबरा जाएँ और वही करें जो पोस्टकर्ता चाहता है शीघ्रबोध के नाम से जो श्लोक सर्कुलेट हो रहा है, वह मुझे संदिग्ध लग रहा है। क्योंकि मेरे पास जो शीघ्रबोध है उसमें तो वह श्लोक मुझे कहीं मिला नहीं। पुनश्च उस (अप्रमाणिक?) प्रमाण से कई प्राचीन प्रमाण संशय में आ जाते हैं। इसलिए शास्त्रनिष्ठ व्यक्ति के द्वारा उस श्लोक का परीक्षण किए बिना उक्त पोस्ट का प्रसार करना मुझे अनुचित लगता है।
प्रश्न – कोई कह रहे हैं दृक्सिद्ध पञ्चाङ्ग ठीक है, तो कोई सूर्य सिद्धान्तीय पञ्चाङ्ग को ठीक बताते हैं ? कौन सा पंचांग ठीक है और दीपावली निर्णय में पंचांग विवाद को जोडना कहाँ तक सही है ?
उत्तर – कौन सा पंचांग ठीक है ये प्रश्न ही गलत है। क्योंकि यह कोई True/False वाला प्रश्न नहीं है। पंचांग से संबंधित जो प्रश्न पूछा गया है, वह अत्यंत मार्मिक और गम्भीर प्रश्न है। दो चार पंक्तियों में इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता। अतः इस प्रश्न का उत्तर कभी स्वतंत्र पोस्ट में दिया जाएगा। हाँ इतना जरूर कहा जा सकता है कि फिलहाल दीपावली निर्णय हेतु पंचांग विवाद को यहाँ जबरदस्ती घसीटना ठीक नहीं है। इस वर्ष दीपावली निर्णय के संबंध में प्रमाण और वीडियो आदि सब मैं प्रस्तुत कर ही चुका हूँ।
प्रश्न – वैमत्य के कारण क्या विसंगतियाँ उत्पन्न होंगी और दीपावली पूजन के दौरान क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?
उत्तर – वैमत्य के कारण कई सारी विसंगतियाँं उत्पन होंगी। भगवान गीताजी में कहते हैं ‘संशयात्मा विनश्यति’ अर्थात् संशय में रहने वाला नष्ट हो जाता है। इसलिए मेरा तो अभिप्राय यही होगा कि निशंक रहते हुए 01 नवम्बर को दीपावली मनाएँ यदि 31 को ही मनाना चाहते हैं तो भी मन को निर्मल और दृढ रखें शंकालु न रखें। दीपावली में सबसे बड़ी सावधानी ये बरतनी है कि तैलाभ्यंग स्नान एवं पार्वण शास्त्रादि कर्म कर्मकाल दर्श व्याप्ति की अपेक्षा के कारण 1 नवम्बर को मनाने होंगे।
दीपावली के दिन पूजन, प्रसाद वितरण आदि कर्म समय से समाप्त कर लेना चाहिए। गोधूली काल से ही दीपावली पूजन प्रारम्भ हो जाता है। अतः सूर्यास्त से लेकर सिंह लग्न तक का समय पूजन के लिए प्राप्त होगा। कुछ लोगों का आग्रह होता है कि स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करें ताकि धन की स्थिरता बनी रहे उनके लिए दो स्थिर लग्न वृष लग्न और सिंह लग्न प्राप्त होंगे ही। चूँकि लक्ष्मी जी का जन्म सिंह लग्न में हुआ है अतः सिंह लग्न में दीपावली पूजन करने हेतु व्यापारियों का विशेष आग्रह होता है। सामान्य सभी लोगों को यथासंभव प्रदोष काल में, गोधूली वेला में अथवा वृष लग्न में लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
लग्न का प्रारम्भ और अन्त समय सभी स्थानों के लिए अलग-अलग होता है। अतः अपने स्थानीय पंचांग द्वारा लग्न जानकार फिर अपने इच्छित लग्न में लक्ष्मी पूजन करें। मैं आप सबों की सुविधा के लिए 01 नवम्बर 2024 को पाँचों लग्नों का प्रारम्भ और अन्त समय वृन्दावन के समयानुसार बता रहा हूँ –
- मेष लग्न – 04:44pm से 06:20 pm तक
- वृष लग्न – 06:20pm से 08:16pm तक
- मिथुन लग्न – 08:16pm से 10:30pm तक
- कर्क लग्न – 10:30pm से 12:49am तक
- सिंह लग्न – 12:49am से 03:06am तक
पूजन के बाद आवाहित देवताओं का विसर्जन करना होता है। जो व्यापारीगण दीपावली पूजन के बाद एक दिन गद्दी पर या दुकान में पूजन स्थल पर लक्ष्मी-गणेश भगवान को विराजमान रखना चाहते हैं अगले दिन उपयुक्त काल में जलप्रवाह कर सकते हैं। कुछ लोग वर्ष पर्यन्त भी लक्ष्मी गणेश को अपने व्यापारिक स्थल पर विराजमान रखते हैं, जिसकी जैसी परम्परा है, वैसा करें।
गोवर्धन पूजा :
02 नवम्बर 2024 को तदनुसार कार्तिकशुक्ल प्रतिपदा दिन शनिवार को पञ्चाङ्गकारों ने गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पूजा स्वीकार किया है। मेरे मत में भी यह दिनांक ठीक है। गोवर्धन पूजा 2 नवम्बर को करना चाहिए।
भाई दूज :
भाई दूज या भ्रातृ द्वितीया 03 नवम्बर 2024 तदनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया दिन रविवार को पंचांगकारों ने स्वीकार किया है। इनमें किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं है।
इस प्रकार सभी पर्वों के दिनांक का निरूपण करने के बाद अब सभी के दिनांकों को पुनः एक ही स्थान पर क्रमशः उल्लेख करते हैं –
- धनत्रयोदशी – 29 अक्टूबर
- नरक चतुर्दशी – 30 अक्टूबर
- काली पूजा – 31 अक्टूबर
- दीपावली – 01 नवम्बर
- गोवर्धन पूजा – 02 नवम्बर
- भैया दूज – 03 नवम्बर
यह पञ्चतिथ्यात्मक दीपावली पर्व आप सबों के लिए मङ्गलकारी हो इसी शुभकामना के साथ…
ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य
संस्थापक
हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान
What’s app – 9341014225