एकादशी परिचय | Complete Introduction of Ekadashi

एकादशी परिचय

प्रश्न – नमो नारायण!!
एक प्रश्न निवेदित है।
क्या 23 की एकादशी त्रिस्पर्शा मानी जायेगी?
नमो नारायण 🙏🏻🙏🏻

उत्तर – 23 दिसम्बर 2023 को मोक्षदा एकादशी वैष्णवानां है। इस सन्दर्भ में आपकी जिज्ञासा है कि यह एकादशी त्रिस्पर्शा मानी जाएगी या नहीं। उक्त सन्दर्भ में वैष्णव लोग चार एकादशी मानते हैं।
जिनके नाम हैं –

  • उन्मीलनी
  • वंजुली
  • त्रिस्पर्शा एवं
  • पक्षवर्द्धिनी ।
Mokshda Ekadashi

उन्मीलनी एकादशीव्रत –

एकादशी च सम्पूर्णा वर्द्धते पुनरेव सा ।
द्वादशी च न वर्द्धेत कथितोन्मीलनी च सा ॥

अर्थात् – यदि एकादशी सम्पूर्ण हो और वृद्धिवश अगले दिन भी हो, पर द्वादशी की वृद्धि नहीं हो तो वह एकादशी उन्मीलनी कहलाती है।

  • सम्पूर्णा शब्द का विवेचन अन्त में करेंगे।

वंजुली एकादशीव्रत –

द्वादश्येव विवर्द्धेत न चैकादशी यदा ।
वंजुलीति भृगुश्रेष्ठ ! कथिता पापनाशिनी ॥
अर्थात् – यदि एकादशी तिथि की नहीं अपितु द्वादशी तिथि की वृद्धि हो तो उसे पापनाशिनी वंजुली द्वादशी कहते हैं।

  • वैष्णव लोग इसी दिन एकादशी का व्रत करते हैं।

त्रिस्पर्शा एकादशीव्रत –

अरुणोदय आद्या स्यात् द्वादशी सकलं दिनम् ।
अन्ते त्रयोदशी प्रातः त्रिस्पृशा सा हरेःप्रिया ॥

अर्थात् – यदि अरुणोदय काल में एकादशी हो उसके बाद द्वादशी की व्याप्ति हो और वह पूरे अहोरात्र में रहे। अन्त में प्रातःकाल (अरुणोदय के समय) त्रयोदशी प्राप्त हो जाए तो उसे भगवान विष्णु की प्रिया त्रिस्पर्शा द्वादशी कहते हैं ।

  • वैष्णव लोग इसी दिन एकादशी का व्रत करते हैं।

पक्षवर्द्धिनी एकादशीव्रत –

दर्शश्च पौर्णमासी च सम्पूर्णा वर्द्धते यदि।
द्वितीयेऽह्नि द्विजश्रेष्ठ ! सा भवेत् पक्षवर्द्धिनी ॥

अर्थात् – जिस पक्ष में अमावस्या या पूर्णिमा सम्पूर्णा हों तथा उनकी वृद्धि भी हो जाए, तब उसे पक्षवर्द्धिनी होती है।

  • पक्षवर्द्धिनी में भी वैष्णव लोग एकादशी को छोड़कर द्वादशी का व्रत करते हैं।
  • यहाँ कृष्णपक्ष की एकादशी के लिए आगामी अमावस्या के अनुसार तथा शुक्लपक्ष की एकादशी आगामी पूर्णिमा के अनुसार निर्णय करेंगे।
  • यहाँ सम्पूर्णा शब्द विशेष अवधान चाहता है। सूर्योदय से पूर्व न्यूनतम दो मुहूर्त (अर्थात् लगभग 96 मिनट या 1 घं. 36 मिनट) से प्रारम्भ होने वाली तिथि सम्पूर्णा कही जाती है। कुछ लोग यहाँ दो मुहूर्त के स्थान पर साढेे तीन घटी (84 मिनट या 1 घं. 24 मिनट) स्वीकार करते हैं। ध्यातव्य है कि इस अन्तराल में ब्रह्ममुहूर्त एवं अरुणोदय काल दोनों समाहित हो जाता है अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त से आरम्भ होने वाली तिथि सम्पूर्णा है।

नोट –
१. एक अहोरात्र में कुल 30 मुहूर्त होते हैं। 15 मुहूर्त दिन में तथा 15 मुहूर्त रात्रि में होते हैं। दिनमान या रात्रिमान का 15वाँ भाग मुहूर्त कहलाता है। प्रतिदिन दिनमान एवं रात्रिमान के घटने बढने के कारण मुहूर्त का मान भी घटता बढ़ता रहता है।

२. कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि वैष्णवों की एकादशी और स्मार्त गृहस्थों की एकादशी अलग अलग क्यों होती है, उसका समाधान यही है कि स्मार्तों की एकादशी में एकादशी की ही वरियता है जबकि वैष्णवों की एकादशी में द्वादशी की वरियता है।

निष्कर्ष एवं समाधान –

  • अगले दिन 24 दिसम्बर को द्वादशी की वृद्धि तो नहीं हो रही है। लेकिन 22 दिसम्बर को दशमी तिथि से विद्धा होने के कारण यह एकादशी सम्पूर्णा नहीं है साथ ही एकादशी की वृद्धि भी नहीं हो रही है। अतः नियम पूर्ण रूप से घटित न होने के कारण यह एकादशी उन्मीलनी नहीं है यह सिद्ध हुआ।
  • द्वादशी का क्षय होने के कारण वंजुली नहीं है, ये भी सिद्ध हुआ।
  • यह एकादशी त्रिस्पर्शा भी नहीं है क्योंकि 23 दिसम्बर को अरुणोयद काल में तो एकादशी है लेकिन सूर्योदय के समय द्वादशी नहीं है और अगले दिन त्रयोदशी तिथि अरुणोदय को व्याप्त भी नहीं कर रही है। अतः त्रिस्पर्शा नहीं है यह सुस्पष्ट रूप से सिद्ध है।
  • यह एकादशी पक्षवर्द्धिनी भी नहीं है क्योंकि आगे पूर्णिमा सम्पूर्णा एवं वृद्धि वाली प्राप्त नहीं हो रही है।

© ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

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