गुरु-शनि के भीषण ग्रहयुद्ध का क्या होगा परिणाम ?

गुरु एवं शनि का ऐतिहासिक ग्रहयुद्ध

 

21 दिसम्बर 2020 को गुरु व शनि का Great Conjuction या  ऐतिहासिक भीषण ग्रहयुद्ध होने वाला है ! बहुत खेद की बात है कि भारतवर्ष के गणमान्य ज्योतिर्विद् इस ऐतिहासिक आकाशीय घटना पर मौन साधे हुए हैं। लेकिन डिजाइनर ज्योतिषियों के ऊलजूलूल बातों से पूरा सोशल मीडिया और इन्टरनेट जगत भरा पड़ा है । कोई इसे वृहस्पति का अतिचार बता रहा है, तो कोई भेद युति । कुछ स्वघोषित ज्योतिष-महारथी मनमाना गोचर फलित करके करके जनसामान्य को गुमराह कर रहे हैं । ऐसे में गणमान्य ज्योतिर्विदों का मौन कहीं शास्त्रापराध तो नहीं ? इन सबको देखते हुए क्षुब्ध होकर  शास्त्र मर्यादा के रक्षण और शास्त्रापराध से बचने की सत्कामना को लेकर अल्पज्ञ और मन्दमति होते हुए भी मैं लेखनी चलाने की धृष्टता कर रहा हूँ।

Great Conjuction

21 दिसम्बर 2020 को शनि व गुरु का Great Conjuction होने जा रहा है। यह घटना इस सदी की सबसे महत्वपूर्ण आकाशीय घटना है । 21 दिसम्बर 2020 को शनि व गुरु दोनों ग्रह आपस में एकदम पास-पास नजर आएँगे। गुरु एक वर्ष में 30° चलता है और शनि एक वर्ष में 12° गतिमान होता है,  इसप्रकार इनका गत्यन्तर 30° – 12° = 18° प्रति वर्ष प्राप्त होता है । राशिचक्र 360° का है, यदि हम 360° में 18° का भाग करें तो भागफल 20 वर्ष प्राप्त होगा, अर्थात् प्रत्येक 20 वर्षों में गुरु व शनि की युति होती रहती है, इसे विज्ञान की भाषा में Conjuction कहा जाता है। लेकिन 21 दिसम्बर 2020 को होने वाली युति प्रत्येक 20 वर्षों में होने वाली सामान्य युति या Conjuction की तरह नहीं है । ये युति असामान्य युति है, Great Conjuction है, जो सैकड़ों वर्षों में कभी हुआ करती है । आज से पूर्व 4 मार्च 1226 तथा  16 जुलाई 1623 में इस प्रकार की युति या Great Conjuction हुई थी, जब गुरु व शनि एकदम पास आ गए थे। कहा जाता है की 1623 वाले Great Conjuction का ओब्जर्वेशन गैलिलियो गैलिली ने अपने टेलिस्कोप के माध्यम से किया था । पुनः 397 वर्षों के बाद 21 दिसम्बर 2020 को अर्थात् सायन उत्तरायण संक्रान्ति के दिन शनि व गुरु का Great Conjuction होने जा रहा है । इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बनने व इसके माध्यम से ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने समझने के लिए समस्त संसार के वैज्ञानिक, खगोलविद् व प्लेनेटोरियम के कार्यकर्ता काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं ।

इस दिन दोनों ग्रहों कि आपसी दूरी मात्र 0.1° रह जाएगी, अर्थात् दोनों ग्रहों का कोणीय अन्तर मात्र 6 मिनट ऑफ आर्क होगा । ये दोनों ग्रह इतने ज्यादा पास होंगे कि खुली आँखों से एक दूसरे से चिपके हुए नजर आएँगे, इसलिए कुछ लोग इस घटना को ड़बलिंग स्टार भी कहते हैं। इस दिन शनि की आकाशीय स्थिति सेलेस्टियल इक्वेटर से 20°25′ दक्षिण जबकि गुरु की आकाशीय स्थिति 20°31′ दक्षिण में होगी । वहीं शनि का कोणीय आकार 15.4 सेकेण्ड़ ऑफ आर्क और वृहस्पति का कोणीय आकार 33.3 सेकेण्ड़ ऑफ आर्क नजर आएगा । शनि का मैग्निट्यूड़ 0.63 और गुरु का मैग्निट्यूड़ -1.97 होगा । इस प्रकार की युति या Great Conjuction अब निकट भविष्य में 15 मार्च 2080 को घटित होगी ।

आप सभी जानते ही हैं कि हमारी ज्योतिष विद्या सिद्धांत-संहिता-फलित रुपी तीन धाराओं में बहने वाली त्रिपथगा है । इसलिए इस ऐतिहासिक और दुर्लभ ग्रहयुद्ध का विवेचन भी क्रमशः तीनों दृष्टियों से करने का प्रयास किया जा रहा है ।

 

Great Conjuction

 

सिद्धांत दृष्टि

 

21 दिसम्बर 2020 को वृहस्पति संबंधी सम्पूर्ण आँकड़े इस प्रकार हैं –

ग्रहस्पष्ट (सायन) – 10/00°/29’/34″ (धनिष्ठा ३)

ग्रहस्पष्ट (निरयण) – 09/06°/20’/49″ (उत्तराषाढ़ा ३)

क्रान्ति मान – 20°/31′ दक्षिणा

शर मान – 0°/29′ दक्षिण

बिम्बमान – 33.3 विकला

महत्तम बिम्बमान – 46.7 विकला

लघुत्तम बिम्बमान – 31.6 विकला

मैग्निट्यूड़ –  -1.97

विषुवांश (R.A) – 20:10:16

 

21 दिसम्बर 2020 को शनि संबंधी सम्पूर्ण आँकड़े इस प्रकार हैं –

ग्रहस्पष्ट (सायन) – 10/00°/26’/29″ (धनिष्ठा ३)

ग्रहस्पष्ट (निरयण) – 09/06°/17’/44″ (उत्तराषाढ़ा ३)

क्रान्ति मान – 20°/25′ दक्षिणा

शर मान – 0°/23′ दक्षिण

बिम्बमान – 15.4 विकला

महत्तम बिम्बमान – 19.5 विकला

लघुत्तम बिम्बमान – 15.8 विकला

मैग्निट्यूड़ – +0.63

विषुवांश (R.A) – 20:10:38

ग्रहयुद्ध

 

ग्रहयुद्ध का वर्णन सिद्धान्त ग्रन्थों से ग्रहयुति नामक अध्याय में प्राप्त होता है । ग्रहों का सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए नवग्रहों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है –

  1. प्रकाश ग्रह (सूर्य व चन्द्रमा)
  2. पञ्चतारा ग्रह (मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि)
  3. तमोग्रह (राहु एवं केतु)

ग्रहयुति के अध्ययन में प्रकाश ग्रहों व पञ्चतारा ग्रहों अर्थात् कुल 7 ग्रहों का ही अध्ययन किया जाता है । इस सन्दर्भ में सूर्य-सिद्धान्त ग्रन्थ का वचन देखिए –

ताराग्रहाणामन्योन्यं स्यातां युद्ध समागमौ ।

समागमः  शशाङ्केन  सूर्येणास्तमनं सह ।। सूर्य-सिद्धान्त, ग्रहयुत्यधिकार

सर्वप्रथम सूर्य या चन्द्रमा के साथ प्रकाश या पञ्चतारा ग्रहों की परस्पर युति के आधार पर दो भेद बताए गए हैं –

  1. अस्तमन – जब कोई भी प्रकाशग्रह या पञ्चतारा ग्रह सूर्य के साथ अपने अस्त कालांश पर अन्तरित होता है तो यह युति अस्तमन युति कहलाती है ।
  2. समागम – जब कोई भी प्रकाशग्रह या पञ्चतारा ग्रह राशि अंश कला विकला में चन्द्रमा के पास आ जाता है, तो यह युति समागम युति कहलाती है ।

 

अब पञ्चतारा ग्रहों की परस्पर युति के आधार पर दो भेद बता रहे हैं, युद्ध और समागम ।

  1. युद्ध – पञ्चतारा ग्रहों की परस्पर युति से 4 प्रकार की युद्ध स्थितियाँ बनती हैं, अर्थात् इस युद्ध नामक युति के चार भेद कहे गए हैं –

आसन्नक्रमयोगाद् भेदोल्लेखांशुमर्दनापसव्यैः ।

युद्धं   चतुष्प्रकारं   पराशराद्यैर्मुनिभिरुक्तम् ।। वृहत्-संहिता, ग्रहयुद्धाध्याय

  1. भेदयुद्ध (भेदयुति)
  2. उल्लेखयुद्ध (उल्लेखयुति)
  3. अंशुमर्दनयुद्ध (अंशुमर्दनयुति)
  4. अपसव्ययुद्ध (अपसव्ययुति)

सूर्य-सिद्धान्त ग्रन्थ में इनकी गणितीय परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं ।

उल्लेखं तारकास्पर्शाद् भेदे भेदः प्रकीर्त्यते ।।

युद्धमंशुविमर्दाख्यमंशुयोगे परस्परम् ।

अंशादूनेऽपसव्याख्यं युद्धमेकोऽत्र चेदणुः ।। सूर्य-सिद्धान्त, ग्रहयुत्यधिकार

  1. भेदयुद्ध (भेदयुति) – जब दोनों ग्रहों का शरान्तर मानैक्यार्ध से कम हो जाये तब एक ग्रह दुसरे ग्रह के बिम्ब का भेदन करता हुआ गतिमान दिखाई पड़ता है, इसे ही भेदयुति कहते हैं ।
  2. उल्लेखयुद्ध (उल्लेखयुति) – जब दोनों ग्रहों का शरान्तर मानैक्यार्ध के बराबर हों तो दोनों ग्रहों के बिम्ब परस्पर स्पर्श करते हुवे दिखाई देते हैं, इसे ही उल्लेखयुति कहा जाता है ।
  3. अंशुमर्दनयुद्ध (अंशुमर्दनयुति) – जब दोनों ग्रहों का शरान्तर मानैक्यार्ध से अधिक हो तब दोनों ग्रहों की किरणें परस्पर गुथी हुई नजर आती हैं, इसे ही अंशुमर्दनयुति कहा जाता है ।
  4. अपसव्ययुद्ध (अपसव्ययुति) – जब दोनों ग्रहों का शरान्तर मानैक्यार्ध से अधिक हो लेकिन एक अंश से कम हो तथा एक ग्रह छोटे बिम्ब वाला और दूसरा ग्रह बड़े बिम्ब वाला हो, तो यह अपसव्ययुति कहलाता है ।

 

  1. समागम – यह समागम चन्द्रमा वाला समागम नहीं बल्कि उससे भिन्न पञ्चतारा वाला समागम है । इसकी गणितीय परिभाषा सूर्य-सिद्धान्त ग्रन्थ में इस प्रकार बताई गई है –

समागमोंऽशादधिके भवतश्चेद्बलान्वितौ । सूर्य-सिद्धान्त, ग्रहयुत्यधिकार

अर्थात्- जब दोनों ग्रहों का शरान्तर एक अंश से अधिक हो और दोनों ग्रह महद्बिम्ब वाले हों तो यह युति समागम कहलाती है ।

 

Great Conjuction

 

21 दिसम्बर 2020 को होने वाले ग्रहयुद्ध का निर्णय

 

इस प्रकार हम ग्रहयुद्ध के बारे में ठीक से जान चुके हैं, समझ चुके हैं । अब हमें यह निर्णय करना है की 21 दिसम्बर 2020 को होने वाली शनि-गुरु की युति समागम है या युद्ध है ?

इसकी गणना करने के लिए हमें दो उपकरण चाहिए, शरान्तर और मानैक्यार्ध । आइये क्रमशः इनका साधन करते हैं, सुविधा के लिए सारे आंकडें मैंने पूर्व में ही उपलब्ध करा दिया है ।

पहले शरान्तर निकालते हैं –

गुरू का शर मान – 0°/29′ दक्षिण

शनि का शर मान – 0°/23′ दक्षिण

दोनों का अंतर करने पर,

 शरान्तर   29′ – 23′ = 6 कला दक्षिण,  (ध्यान रहे, 1 कला = 60 विकला)

 

अब मानैक्यार्ध निकालते हैं –

गुरू का बिम्बमान – 33.3 विकला

शनि का बिम्बमान – 15.4 विकला

दोनों का योग करने पर,

मानैक्य    33.3″ + 15.4″ = 48.7″

मानैक्यार्ध    48.7″ ÷ 2 = 24.35 विकला

 

अब मिलान करते हैं –

  1. शरान्तर 6 कला है और मानैक्यार्ध 24.35 विकला है, स्पष्ट है की शरान्तर मानैक्यार्ध से कम नहीं है, अतः भेदयुति नहीं हो रही है ।
  2. शरान्तर मानैक्यार्ध के बराबर नहीं है, अतः उल्लेखयुति नहीं हो रही है ।
  3. दोनों ग्रहों का शरान्तर मानैक्यार्ध से अधिक है तथा दोनों ग्रहों का कोणीय अन्तर मात्र 6 मिनट ऑफ आर्क है इसलिए दोनों ग्रहों की किरणें परस्पर गुथी हुई नजर आएँगी अतः स्पष्ट है ये अंशुमर्दन युति है ।
  4. दोनों ग्रहों का शरान्तर मानैक्यार्ध से अधिक है किन्तु एक अंश से कम है और शनि का बिम्बमान गुरु के बिम्बमान से छोटा है, अतः स्पष्ट है की अपसव्य युति हो रही है ।
  5. समागम के भी नियमों की परीक्षा करने से स्पष्ट हो जाता है की ये समागम नहीं है ।
  • ग्रहयुद्ध का सम्यक विचार करने पर स्पष्ट हो जाता है की 21 दिसम्बर 2020 को होने वाली ग्रहयुद्ध अंशुमर्दन और अपसव्य नामक युद्ध है ।

 

ग्रहयुद्ध की भीषणता को समझने के लिए पुनः युति के तीन विभाग किये गए हैं –

आसन्नावप्युभौ दीप्तौ भवतश्चेत् समागमः ।

स्वल्पौ द्वावपि विध्वस्तौ भवेतां कूटविग्रहौ ।। सूर्य-सिद्धांत, ग्रहयुत्यधिकार

1.समागम युद्ध – समागम नामक यह भेद चन्द्रसमागम या ताराग्रह समागम से भिन्न है । एकदूसरे से समान राश्यशों में स्थित होकर तथा युद्ध लक्षणों से युक्त होने पर भी यदि दोनों ग्रहबिम्ब प्रभायुक्त हों अर्थात् दोनों ग्रह अपने महद्बिम्ब वाले हों, तो इसे समागम कहते हैं।

इस प्रकार का ग्रह समागम मित्रों के समागम की तरह प्रीतिकारक होता है ।

2.कूट युद्ध – यदि दोनों ग्रह आसन्न (समान राशि अंश वाले) हों और लघुबिम्ब वाले हों तो इसे कूट युद्ध कहा जाता है।

इस प्रकार का युद्ध होने पर जनता बुरे लोगों की कूटनीति का शिकार हो जाती है।

3.विग्रह युद्ध – यदि दोनों ग्रह आसन्न (समान राशि अंश वाले) हों और पराजय वाले लक्षणों से युक्त हों तो इसे विग्रह संज्ञक युद्ध कहा जाता है।

इस प्रकार का युद्ध होने पर विश्व में युद्ध की स्थिति बनती है ।

 

जगजीवन दास गुप्त विरचित ज्योतिष रहस्य नामक पुस्तक में इनसे भिन्न नामों वाले पांच युतियों की चर्चा मिलती है । प्रसंगवश ज्ञानवृद्धि के लिए उनका भी अध्ययन कर लेते हैं ।

  1. भोगयुति – जब ग्रह राशि अंश में सामान हो जाते हैं तो उनकी भोगयुति होती है ।
  2. विषुवांशयुति – जब ग्रहों के विषुवांश(R.A) तुल्य हो जाएँ तो विषुवांशयुति होती है ।
  3. शरैक्ययुति – जब ग्रहों का शर तुल्य हो जाएँ तो शरैक्ययुति होती है ।
  4. क्रान्तिसाम्ययुति – जब दोनों ग्रह समान क्रान्ति पर हों तो क्रान्तिसाम्ययुति होती है ।
  5. पातयुति – जब दोनों ग्रह शून्य शर पर स्थित हों तो उनकी पातयुति होती है ।
  • 21 दिसम्बर 2020 को होने वाली शनि-गुरु की ग्रहयुति उक्त मत से भोगयुति और विषुवांशयुति है ।

Great Conjuction

 

इस ग्रहयुद्ध में विजयी कौन ?

 

अपसव्ये जितो युद्धे पिहितोऽणुरदीप्तिमान् ।।

रुक्षो विवर्णो विध्वस्ते व विजितो दक्षिणाश्रितः ।

उदक्स्थो दीप्तिमान् स्थूलो जयी याम्येऽपि यो बली ।।

अर्थात् – अपसव्यसंज्ञक युद्ध में जिस ग्रह का बिंब आच्छादित हो, छोटा हो या प्रभा रहित (रुखा, स्वाभाविक वर्ण से हीन) तथा दक्षिण दिशा में स्थित हो तो वह ग्रह पराजित माना जाता है । जो ग्रहबिम्ब उत्तर दिशा में स्थित हो, दीप्तिमान हो, बृहद बिम्ब वाला हो वह ग्रह जयी होता है । दक्षिण दिशा में स्थित होकर बलवान हो अर्थात् जिसका बिम्ब दीप्तिमान हो और बड़ा हो वह ग्रह भी जयी होता है ।

  • बड़े बिम्ब वाला और ज्यादा प्रकाशवान होने से गुरु इस युद्ध का विजेता बन रहा है । जबकि छोटे बिम्ब वाला और अधिक मैग्निट्यूड़ वाला शनि इस युद्ध में पराजित हो जाएगा ।

 

  • ध्यान रहे इन्टरनेट के तथाकथित ज्योतिषी इस युति को भेदयुति बता रहे हैं, जबकि मैंने इस आलेख में शास्त्रीय गवेषणा के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है की गुरू-शनि की यह युति भेदयुति नहीं है । आप गूगल करके इस तथ्य का परीक्षण कर सकते हैं ।

 

क्या आप सरलता से ज्योतिष सीखना चाहते हैं ? तो पढ़ें फलित राजेन्द्र –

 

संहिता दृष्टि

 

अब इन युतियों के सांहितिक फलादेश प्रस्तुत किए जा रहे हैं ।

अपसव्ययुति और अंशुविमर्दयुति का फल –

 

असव्ये विग्रहं ब्रूयात्सङग्रामं रश्मिसंङ्कुले । भार्गवीय

अर्थात् – अपसव्य नामक युद्ध होने पर विग्रह और अंशुमर्दन नामक युद्ध होने पर संग्राम ऐसा फल कहना चाहिए ।

विग्रह शब्द का अर्थ शब्दकल्पद्रुम में युद्ध दिया है और संग्राम शब्द का अर्थ तो युद्ध होता ही है ।

  • इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि इन ग्रहयुद्धों का परिणाम वैश्विक युद्ध के रुप में सामने आएगा ।

 

अंशुविमर्दयुति और अपसव्ययुति का फल –

 

अंशुविरोधे युद्धानि भूभृतां शस्त्ररुक्षुदवमर्दाः ।

युद्धे चाप्यपसव्ये भवन्ति युद्धानि भूपानाम् ।। वृहत्संहिता, ग्रहयुद्धाध्याय

अर्थात् – अंशुविमर्दयुति होने पर राजाओं में परस्पर युद्ध होता है। रोग, भूखमरी व शस्त्रों के द्वारा लोग पीड़ित होते हैं। अपसव्य नामक ग्रहयुद्ध होने पर राजाओं में भी परस्पर युद्ध होता है ।

 

विजयी वृहस्पति का फल –

 

अकलुषांशुजटिलः पृथुमूर्तिः कुमुदकुन्दकुसुमस्फटिकाभः ।

ग्रहहतो न यदि सत्पथवर्ती हितकरोऽमरगुरुर्मनुजानाम् ।। भविष्यफलभास्कर

अर्थात् – वृहस्पति बड़े बिम्ब वाला, निर्मल किरणों वाला, कुमुद या कुन्दपुष्प के समान श्वेत या स्फटिक के समान स्निग्ध हो, ग्रहयुद्ध में पराजित न हो, उत्तर शर वाला हो तो मनुष्यों के लिए हितकारी होता है।

  • सत्वगुणप्रधान देवगुरु वृहस्पति का इस युद्ध मे विजयी होना बहुत मायनों में शुभ संकेत है । स्वतंत्र भारत की कुंडली के अनुसार वर्तमान में गुरु की ही दशा चल रही है ऐसे में गुरु का ग्रहयुद्ध में विजयी होना भारत के लिए शुभ संकेत है ।

 

पराजित शनि का फल –

 

सन्ताप्यन्ते गुरुणा स्त्रीबहुला महिषकशकाश्च ।। वृहत्संहिता, ग्रहयुद्धाध्याय

शनि यदि ग्रहयुद्ध में गुरु से पराजित हो जाए तो स्त्रीशासित या स्त्रीबहुल प्रदेशों (मातृसत्तामक या स्त्री बहुल परिवारों में भी), माहिषक प्रदेशों व शक प्रदेशों में पीड़ा करता है।

 

पौरसंज्ञक ग्रहों की युति का फल –

 

पौरा बुधगुरुरविजा । वृहत्संहिता, ग्रहयुद्धाध्याय

अर्थात् बुध, गुरु व शनि पौर संज्ञक ग्रह हैं ।

पौरे पौरेण हते पौराः पौरान् नृपान् विनिघ्नन्ति । वृहत्संहिता, ग्रहयुद्धाध्याय

अर्थात् – पौर ग्रहों में युति होने पर नागरिकों में परस्पर विवाद, कलह या दंगा होता है अथवा पौर राजा के द्वारा स्थानीय नेताओं, नागरिकों या राजाओं की ही हानि की जाती है।

 

शनि गुरु की युति का सांहितिक फल –

 

यदा जीवयुतो मन्दो जीवाद्वा सप्तमे स्थितः ।

तदा प्रजा विनश्यन्ति भूयश्चान्न परिक्षयः ।। भविष्यफलभास्कर

अर्थात् – शनि की गुरु से युति हो या शनि गुरु से सातवीं राशि में हो तो प्रजा का नाश होता है और अन्न मंहगा हो जाता है।

  • गुरु के साथ शनि की युति होने पर भारत की पूर्वी सीमा व पू्र्वी देशों में अशान्ति होती है। – संवत्सर संहिता
  • शनि के साथ गुरु की युति होने पर स्त्रीशासित देशों में तथा अफगानिस्तान में कष्ट व उपद्रव होते हैं। संवत्सर संहिता
  • गुरु व शनि जब एक नक्षत्र में हों तो उस दौरान देश के किसी भूभाग पर कब्जा, व्यापक घुसपैठ, युद्ध, सिन्धु नदि के पूर्व के देशों में विशेष परिवर्तन या उपद्रव आदि होते हैं । -पाराशर संहिता

एकनक्षत्रमासाद्य दृश्येते युगपद्यदि । अन्योन्यभेदं जानीयात्  तथा पुरप्रभेदनम् ।। पाराशर संहिता

 

पंचांगपीठिका नामक ग्रन्थ में कहा गया है –

द्विग्रहयोगाद्रोगो ।।

अर्थात् दो ग्रहों का योग होने पर रोग होता है।

यह ग्रहयोग शनि की राशि में हो रहा है, शनि की राशि में ग्रहयोग होने का फल पंचांगपीठिका से –

शनिक्षेत्रेभवेद्व्याधिः ।।

अर्थात् शनि की राशि में ग्रहयोग हो तो व्याधि अर्थात् रोग होता है।

 

  • इस समय विश्व पहले से ही कोरोना महामारी से जूझ रहा है, ऐसे में मकर राशि में इन ग्रहों की युति रोगवृद्धि लेकर आ सकती है ।

 

मकर राशि में वृहस्पति का फल –

 

अशत्रवो जना धात्री पूर्णा सस्यार्घवृष्टिभिः ।

वीतरोगभयाः सर्वे मकरस्थे सुरार्चिते ।। नारद संहिता

मकर राशि में वृहस्पति हो तो सभी लोगों में मित्रता होती है, धरती वर्षा व धनधान्य से परिपूर्ण रहती है और सबलोग कुशलपूर्वक रहते हैं।

 

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शनि के होने का फल –

 

उत्तराषाढ़के सौरिः सप्तमासे ही भास्करः ।

पानीयस्य लयं कुर्याद्वार्हीना च मही  भवेत् ।। भविष्यफलभास्कर

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शनि के होने पर सात महीनों तक गर्मी पड़ती है, जिससे पृथ्वी का जल सूख जाता है और पृथ्वी पर पीने के पानी की कमी हो जाती है।

 

शनि की राशिस्थिति के अनुसार विभिन्न दिशाओं में स्थित देशों का फल –

 

शनि जिस दिशा कि राशि में स्थित हो उस दिशा में अशान्ति और जिन राशियों में दृष्टिपात करे उन दिशाओं में हिंसा होती है।

शनैश्चर क्रमात्पश्यन् तत्तद्देशान् प्रपीड़येत् ।

दुर्भिक्षदेशभंगाद्यैः विग्रहो राजविड्वरैः ।। संवत्सर संहिता

इस समय शनि मकर राशि में है । मकर की दिशा दक्षिण है, अतः दक्षिण के देशों या क्षेत्रों में अशान्ति होगी । मकर राशि में स्थित होने से शनि की दृष्टि मीन, कर्क और तुला राशियों में पड़ रही है । मीन और कर्क राशि की दिशा उत्तर तथा तुला राशि की दिशा पश्चिम है । इन क्षेत्रों में हिंसा की कल्पना करनी चाहिए ।

 

विजयी व पराजित ग्रहों के कारकत्व के अनुसार फल –

 

फलं तु वाच्यं ग्रहभक्तितोऽन्यद्यथा तथा घ्नन्ति हताः स्वभक्तीः ।। वृहत्संहिता, ग्रहयुद्धाध्याय

अर्थात् – सामान्यतः पराजित ग्रह अपने कारकत्व वाले पदार्थों की हानि और विजयी ग्रह अपने कारकत्व वाले पदार्थों की वृद्धि करते हैं।

वृहत्संहिता में वर्णित गुरु का कारकत्व

सिन्धु नदी से पूर्व के प्रदेश (वर्तमान उत्तरी भारत) मथुरा का पश्चिमी आधा भाग, भारतदेश, सौवीर, शत्रुघ्न, उत्तरी भारत, विपाशा (व्यास) नदी, शतद्रु नदी (सतलज) रमठ शाल्व देश । त्रिगर्त, पौरव देश, अम्बष्ठ, पारत, वाटधान, यौधेय, सरस्वती नदी का प्रदेश, अर्जुनायन, मत्स्य देश का आधा भाग, हाथी घोड़ा, पुरोहित शास्त्रज्ञ लोग, राजा, मंत्री, विवाहादि मंगल कार्यों में सहयोगी जन, दयालु पुरुष, सत्यवादी, पवित्र व् सत्य आचरण करने वाले, व्रती, तपस्वी, विद्वान, उच्च शिक्षित लोग, दानी व धार्मिक नागरिक लोग, बड़े धनाढ्य, शब्द व भाषा के विशेषज्ञ, अर्थ के विशेषज्ञ (आचार्य, व्याख्याता, निष्कर्ष दाता या अर्थशास्त्री), वेद के विद्वान, अभिचार (तांत्रिक क्रियाएं) में कुशल, नीति के जानकार, राजसी चीजें, छत्र, झंडा, ध्वज आदि कूट (जड़ी), मांसी-तगर (खुशबूदार वनस्पति), नमक, साबुत दालें आदि मीठे पदार्थ, मोम आदि सब पदार्थ वृहस्पति के अधीन हैं ।

वृहत्संहिता में वर्णित शनि का कारकत्व

आनर्तदेश, आर्बुद (आबू प्रदेश) पुष्कर, सौराष्ट्र, आभीर, शूद्र, रैवतकपर्वत, सरस्वती नदी के लोप का स्थान विनशन(मरुभूमि) ये सब तथा पश्चिमी प्रदेश, कुरुक्षेत्र प्रदेश, प्रयाग तीर्थ स्थान, विदिशा, वेद्स्मृति नदी, माहानदी के तीर प्रदेश । दुष्ट, दरिद्री, गंदे रहने वाले लोग, तेल के व्यवसायी, आत्मबल व् तेज से रहित लोग, पुरुषत्व में कमजोर लोग, गिरफ्तार करने वाले लोग (पुलिस व जेलर आदि), पक्षियों व पालक व शिकारी, अपवित्र कार्यों में रुचि लेने वाले, मल्लाह, वृद्ध लोग, वराह पालने वाले लोग, मुखिया लोग, भ्रष्ट्र या पतित सन्यासि, शबर देश, पुलिन्द (उड़द, राजमा आदि), बालियों से उत्पन्न होने वाले मुलायम अनाज (चावल, गेहूँ आदि) इन सब पर शनि का आधिपत्य है ।

 

 

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वारक्रम का आधार क्या है ?

 

फलित दृष्टि

 

  • वैराग्य कारक शनि व अध्यात्म कारक गुरु की युति सन्यासियों व साधकों के लिए वरदान साबित होगी । उनकी तपोनिष्ठा व वैराग्यता में अप्रतिम वृद्धि होगी ।
  • सांसारिकता में पड़े ऐसे लोग जो शनि से प्रभावित हैं, उनमें संबंध विच्छेद देखे जा सकते हैं।
  • सच्चे लोग जो बुरे लोगों द्वारा शोषित हो रहे हैं, उनका अभ्युदय होगा ।
  • जिन लोगों की शनि की दशा या साढ़ेसाती चल रही है, उनके लिए यह युति भीषण दुर्घटना,चिन्ता व रोग लेकर आएगी ।
  • जिन लोगों के अष्टकवर्ग में शनि मकर राशि में 4 या 4 से कम अंक प्राप्त कर रहा है, उनके लिए यह समय बहुत भीषण साबित होने वाला है । यदि शनि को 5 या 5 से अधिक अंक मिले हैं, तो बाधाएँ केवल जातक को छूकर निकल जाएँगी, उनका ज्यादा अहित नहीं हो पाएगा ।
  • गुरु की दशा वाले ऐसे जातक जिनकी कुंड़ली में गुरु शुभप्रदाता ग्रह है, उनके शुभफलों में अप्रतिम वृद्धि होगी ।
  • जिनके अष्टकवर्ग में मकर राशि में वृहस्पति को 5 या 5 से अधिक अंक मिले हों ऐसे जातक बहुत शुभफल प्राप्त करेंगे । गृहसुख, सन्तानसुख, धन, सफलता व ब्राह्मणों से आशीर्वाद आदि शुभफलों की प्राप्ति होगी । गुरु ग्रह से प्रभावित कन्याओं केे शीघ्र विवाह का योग बनेंगे ।
  • सामान्य नियम से हम जानते हैं कि जन्मराशि से 2, 5, 7, 9, 11 वीं राशि में आया हुआ वृहस्पति शुभफल करता है । अतः वृष, मीन, कर्क, कन्या व धनु राशि या लग्न वालों के लिए गुरु का विजयी होना बहुत ही ज्यादा लाभप्रद सिद्ध होने वाला है ।
  • विजयी वृहस्पित सभी लोगों के लिए कुण्ड़ली की शुभाशुभता के अनुसार अपने शुभत्व की वृद्धि या अशुभत्व की हानि अवश्य करेगा ।
  • सामान्य नियमों से हम जानते हैं कि जन्मराशि से 3, 6, 11 वीं राशि में गोचर करने वाला शनि शुभफलप्रद होता है। अतः वृश्चिक, सिंह और मीन राशि वालों के लिए शनि पराजित होने के कारण शुभफल तो नहीं कर पाएगा पर इतना अवश्य है कि इन राशि वालों को शनि के पराजित होने का ज्यादा अशुभ फल नहीं मिलेगा । अन्य राशि वाले लोग शनि के पराजित होने के अशुभ फल भीषण रुप से प्राप्त करेंगे । विशेष कर जन्मकुण्ड़ली में जिनका शनि अशुभ है, उन्हें बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है।

 

शोधकर्ता

पं. ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

(लब्धस्वर्ण पदक)

लालबहादुरशास्त्री

केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ

दक्षिण दिल्ली, भारतवर्ष ।

3 thoughts on “गुरु-शनि के भीषण ग्रहयुद्ध का क्या होगा परिणाम ?”

  1. अशोक थपलियाल

    उत्तम प्रयास। साधुवाद एवं अग्रिम गवेषणा हेतु शुभकामनाएं

  2. अशोक थपलियाल

    उत्तम प्रयास। साधुवाद एवं अग्रिम गवेषणा हेतु शुभकामनाएं

  3. अशोक थपलियाल

    उत्तम प्रयास। साधुवाद एवं अग्रिम गवेषणा हेतु शुभकामनाएं

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