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✓★ किसी भी विषय या शास्त्र या विद्या का ज्ञान विद्यार्थी को उस व्यक्ति से ज्ञान लेना चाहिए, जिसने वह ज्ञान अर्जित किया हो और उसमें निपुणता प्राप्त की हो । अधर्म की 5 शाखाएं हैं – विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा और छल इनसे युक्त ध्रुव राठी जैसे सोशल मीडिया इन्फ्ल्यूएंसर लोगों में ज्योतिष या अन्य शास्त्र संबंधी कोई भी पात्रता नहीं है, ये लोग बस कंटेंट क्रिएटर हैं, वीडियो बनाकर बेचते हैं।
✓★ ऐसे ही व्यापारी बुद्धि से युक्त घोर अधर्मावरण से ढके छद्म धार्मिक या साधु या संत या ज्योतिषी या भविष्यवक्ता या बाबा कलिकाल के प्रभाव से बरसाती मेंढक की तरह चहुँ ओर टरटराते मिलते हैं। इनसे यदि आप धर्मबुद्धि की कामना करते हैं तो वह मिलना संभव ही नहीं क्योंकि जिसके पास जो वस्तु होगी ही नहीं वह व्यक्ति उस वस्तु को देगा कैसे ?
✓★ धर्म की वेदांगों की हानि का सबसे बडा कारण यही है कि समाज उन लोगों से ज्ञान ले रहा है जो इस विषय के पारम्परिक विद्वान् हैं ही नहीं, जिन्होंने शास्त्र कभी पढा ही नहीं, जो लोग व्यापारी बुद्धि वाले हैं, जिनके लिए अधर्म और पैसा ही सबकुछ है।
✓★ जब हम भौतिकी या रसायन या कम्यूटर विज्ञान या मेडिकल या इंजिनियरिंग आदि विषय पर इसके एक्सपर्ट की ही राय मानते हैं या विषय विशेषज्ञ से ही इन विषयों को पढने जाते हैं तो यही बात धर्मशास्त्र, ज्योतिष, आगम, वेद, पुराण आदि के लिए लागु क्यों नहीं करते ? क्यों इन विषयों पर जिनपर पुरखों से हमारी दृढ आस्था है हम किसी भी ऐरे गैरे कटेंट क्रिएटर और आभासी साधु या विषयज्ञानशून्य लोगों से ज्ञान लेते हैं।
✓★ विज्ञान और लाजिक की बात करने वाले लोग मुझे इस बात के पीछे का विज्ञान और लाजिक बता दें कि जब छः आस्तिक और तीन नास्तिक मुख्यतः कुल 9 प्रकार के दर्शन विद्याएँ भारतवर्ष में विद्यमान हैं तो केवल विज्ञान की ही बात क्यों सुनी जाए जो नास्तिक दर्शन पर आधारित है। बाकी आठ दर्शनों को क्यों त्यागा जाए ?
✓★ हर बात के लिए केवल नास्तिक दर्शनाधारित विज्ञान के पास ही क्यों जाया जाए अन्य किसी दर्शन के पास क्यों नहीं ? मुख्यतः नौ दर्शनों में से एक उठकर आता है और शोर मचाता है कि केवल मेरी बात सुनी जाए केवल मैं ही सही हूँ बाकि सब गलत हैं, यह कौन सी वैज्ञानिकता है ? यह कौन सा लाजिक है ?
✓★ एक बात और ध्यान रखें असल का ही नकल बनता है। बहुत सारे नकली साधु या धर्मज्ञ या ज्योतिषी या नकल से बनी विद्याओं के एक्सपर्ट बनकर घूमने वाले लोग बाजार में हैं। इसका मतलब असली विद्या और उसके असली जानकार भी कहीं हैं जिनको इस प्रकार के बाजारवादी प्रपञ्च और चकाचौंध से कोई मतलब नहीं है, जो निःस्वार्थ भाव से बस शास्त्रसेवा करना जानते हैं।
✓★ जिसको अपना कमजोर और गुणवत्ता रहित प्रोडक्ट बेचना होता है और जल्दी मार्केट में छाना या पकड बनाना होता है, वो लोकलुभावन बातें करता है। इनमें भी जो अत्यंत धूर्त होता है वो तो प्राचीन, पारम्परिक अन्य सभी पूर्ववर्ती उत्पादों को गलत, झूठा, फर्जी, अंधविश्वास और न जाने क्या क्या बताता फिरता है और बार बार अपने ही मुख से अपनेे उत्पाद की प्रशंसा करता है ताकि लोग धूर्तता के जाल में उलझकर नकल को ही असल मान लें।
✓★ अक्सर इस तरह के लोगों के मुख से आप मार्केट या बाजार शब्द सुनेंगे। ये लोग मार्केट में या बाजार में हाइलाइट रहने के लिए कुछ भी कहते हैं, कुछ भी करते हैं. सनसनी पैदा करके या कुछ भी करके ये लोग बस मार्केट में बने रहना चाहते हैं। इन्हें न तो धर्म से प्रेम है और न उस विद्या से जिसका आवरण उन्होंने ओढा होता है।
✓★ धर्मज्ञ और शास्त्रज्ञ लोग दुनिया को मार्केट या बाजार नहीं समझते। उन्हें दुनिया के अन्दर समाज दिखता है, समाज का हित दिखाई देता है। वो जिनसे भी जुडते हैं धरातल के स्तर पर जुडते हैं। उन्हें शास्त्र के द्वारा सेवा दिखाई देती है, बाजारवाद उनकी समझ से कोसों दूर होता है।
✓★ समाज के साथ सबसे बडी समस्या ये है कि समाज कभी सत्य को वास्तविकता को या जो सही है उसे स्वीकार नहीं करता बल्कि समाज वही स्वीकार करता है जो उसे अच्छा लगता है। भविष्य में जब उसकी पसंद उसे धोखा दे जाती है या नुकसान करा जाती है या उसकी पसंद अच्छी नहीं लगने लगती तो मानवस्वभाववश वह इसका दोष स्वयं पर नहीं देता बल्कि इसका ठीकरा शास्त्र पर फोडता है अथवा धरातल के स्तर पर कार्य करने वाले भोले भाले धर्मसेवी या शास्त्रज्ञों के ऊपर इसकी भडास निकालता है।
✓★ यह समाज का कैसा दोगला व्यवहार है कि धर्म के नाम पर, शास्त्र के नाम पर या तन्त्र अथवा ज्योतिष विद्या के नाम पर जो ठगी की जाती है उसके लिए वह ठग जिम्मेदार नहीं होता अथवा व्यक्ति का स्वयं का स्वार्थ, मोह या लोभ जिम्मेदार नहीं होता बल्कि शास्त्र जिम्मेदार होता है।
✓★ समाज कभी अपने आस पास शास्त्रज्ञों के निर्माण हेतु गुरुकुल की स्थापना नहीं करेगा। पारम्परिक रूप से धर्मशास्त्र, ज्योतिष, आगम, तंत्र आदि विद्याओं को पढाने और सुयोग्य समाजसेवी पण्डितों के निर्माण की व्यवस्था नहीं करेगा।
✓★ लेकिन शास्त्रज्ञ लोगों को बाजार में जाकर मारा मारा खोजता फिरेगा और अपने लोभ या स्वार्थवश उनके धर्मावरण और चकाचौंध से प्रभावित होकर उन्हें विद्वान्, शास्त्रनिष्ठ और धर्मज्ञ मानकर धोखा खाएगा फिर शास्त्रों पर शंका करेगा। बिना पेड के कहीं फल मिलते हैं क्या ?
✓★ समाज के साथ एक भयंकर समस्या यह भी है कि जो लोग शास्त्रज्ञों के पास पहुँच भी जाते हैं वे भी शास्त्रों में वर्णित उन्हीं बातों पर विश्वास करना चाहते हैं जो उनके स्वार्थसिद्धि में सहायक हैं।
✓★ ये लोग किसी भी विधि निषेध का पालन तो नहीं करना चाहते उल्टे ऐसी बातों को प्रक्षिप्त, रुढीवादी, प्राचीनविचारधारा, दकियानुसी आदि बताते हैं पर बिना विधान पालन के ही प्रकृत विषयसंबंधी शास्त्रों में वर्णित फल को संपूर्णता से अवश्य ही प्राप्त करना चाहते हैं। समाज का ये दोहरा रवैया मेरी समझ से एकदम परे है।
✓★ धर्म मेरी रक्षा करे। मैं जब भी कष्ट में, परेशानी में या चिन्ता में रहूँ तो मुझे सहारा दे मेरा मार्ददर्शन करे। लेकिन धर्मरक्षा के लिए मेरी संतान न जाए, पडोसी की संतान जाए। मेरा बच्चा गीता पढ लेगा तो सन्यासी बन जाएगा इसलिए गीता पढ न पावे। कोई प्रतिदिन पूजा पाठ करे तो उसे नजरों में चढा लेना और टांग खिंचाई करना सर्वत्र उसकी चुगली करना। अपनी धार्मिक पहचान को छुपाना और खुद को माडर्न बताना। ऐसी अनेक बातें आए दिन आप अपने आस पास रोज देखते हैं।
प्रश्न नहीं स्वाध्याय और आत्मावलोकन करें।
इन विषयों पर लिखने की प्रेरणा देने के लिए सिद्धान्त चौबे जी का सादर आभार।
- ज्यौतिषाचार्य पं. ब्रजेश पाठक – Gold Medalist
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