पाठ्यानुभव अवश्य पढें
मैं बृहत्पाराशर-होराशास्त्रम् का अध्ययन कर रहा था। यह मेरा अत्यंत प्रिय ग्रन्थ हैं। बृहत्पाराशर होराशास्त्रम् और सारावली का अध्ययन मैं अक्सर करता ही रहता हूँ। बृहत्पाराशर-होराशास्त्रम् के 94वें अध्याय के अन्तिम (16वें) श्लोक में महर्षि पाराशर कहते हैं -
❅ इत्थं ग्रहणजातानां सर्वारिष्ट विनाशनम्।
❅ कथितं भार्गवेणेदं शौनकाय महात्मने ।।
(बृहत्पाराशर-होराशास्त्रम् अ.94 श्लो.16)
अर्थात् – इस प्रकार (शान्ति कराने से) ग्रहणोत्पन्न जातक के सभी अरिष्टों का नाश हो जाता है । यह शान्ति विधान भार्गव ने शौनक जी को बताया था।
इस बार अध्ययन के दौरान भार्गव शब्द पर मेरी बुद्धि ठिठक गई और शब्द मंथन प्रारम्भ हो गया। यह मंथन में आपके साथ भी साझा कर रहा हूँ, पढें।
यहाँ पर यह समस्या उत्पन्न होती है कि –
- भार्गव शब्द से किसे जाना जाए ? व्याख्याकार जी ने लिखा है – “यह शान्ति विधान भृगुजी ने शौनक को कहा था।”
- परन्तु देवी भागवत के चतुर्थ स्कंध विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद्भागवत में खण्डों में बिखरे वर्णनों के अनुसार महर्षि भृगु प्रचेता-ब्रह्मा के पुत्र हैं, इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री ख्याति से हुआ था। जिनसे इनके दो पुत्र काव्य-शुक्र और त्वष्टा तथा एक पुत्री ‘श्री’ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। भृगु ऋषि के लिए भार्गव शब्द का प्रयोग हो ही नहीं सकता।
- भार्गव का शाब्दिक अर्थ होता है – भृगुवंशीय। अर्थात् भार्गव कहलाने के लिए भृगु ऋषि से कम से कम एक पीढी का अन्तर तो होना ही चाहिए।
- समस्या ये भी है कि आचार्य शौनक ऋषि शुनक के पुत्र थे जो स्वयं भृगुवंशीय हैं, तो क्या आचार्य शौनक ने यह शान्ति विधान अपने पिता से प्राप्त किया ?
- इसकी संभावना तो है, लेकिन बहुत खोजने पर भी ऋषि शुनक के लिए भार्गव शब्द का प्रयोग कहीं मिला नहीं। ये भी प्रमाण नहीं मिलते की शौनक के पिता शुनक जी उनके गुरु भी रहे हों।
- भार्गव शुक्राचार्य को भी कहते हैं परन्तु शुक्राचार्य के काल और शौनक के काल में बहुत लम्बा अन्तर है, इसलिए यह विचार निरस्त हो जाता है।
- परशुराम भी भार्गव कहे जाते हैं और मार्कण्डेय को भी भार्गव बताया गया है, परन्तु उनसे शौनक मुनि का संबंध फिट नहीं बैठता। इसके लिए आप शब्दकल्पद्रुम कोश देख सकते हैं।
- ढूँढते हुए च्यवन ऋषि का नाम मिलता है जिनके लिए पुराणों में एवं महाभारत में बहुत्र भार्गव शब्द आया है।
- च्यवन ऋषि और शौनक मुनि के काल में ज्यादा अन्तर भी नहीं है, मात्र तीन चार पीढियों का ही अन्तर आता है। पहले लोग इतने दीर्घजीवी तो होते ही थे।
- पुनश्च ज्योतिश्शास्त्र के 18 प्रवर्तकों में “च्यवनो यवनो भृगुः” कह कर च्यवन ऋषि का नाम भी परिगणित किया गया है। यह श्लोक कमेंट बाक्स में देख सकते हैं।
- पुनश्च बृहद्दैवज्ञञ्जनम् एवं होरारत्नम् जैसे ग्रन्थों में बहुत से स्थलों में च्यवन एवं शौनक का मत साथ-साथ प्रस्तुत किया गया है। इनके कुछ चित्र आप कमेंट बाक्स में देख सकते हैं।
निष्कर्ष – इस प्रसंग में भार्गव शब्द का अर्थ च्यवन ऋषि ही हो सकता है। यह सबसे उपयुक्त एवं ठोस आधार एवं प्रमाणों से पुष्ट है। इत्यतः इस प्रसंग में भार्गव शब्द से च्यवन ऋषि का बोध ही ग्राह्य होगा।
ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य