क्या होता है विश्वघस्त्र पक्ष ? Vishwaghastra Paksha 2024

विश्वघस्र पक्ष या तेरह दिनों का पक्ष

बहुत समय से इस विषय पर लिखने का आग्रह कई विद्वज्जन कर रहे थे। प्रेरणा देने के लिए उन सभी विद्वज्जनों को श्रीमन्नारायण स्मरण पूर्वक प्रणाम करके विश्वघस्र पक्ष पर शास्त्रीय मत उपस्थापित करने का कुछ आयास प्रस्तुत है।

ज्योतिष् में अंकों को भी शब्दों में लिखने की प्राचीन परम्परा रही है। सारे ग्रन्थ काव्यात्मक साहित्य शैली में लिपिबद्ध होने से अंकों को भी शब्दों में लिखना ही एक परम उपाय प्राप्त होता है। यह जो शब्द है विश्वघस्र यह भी कुछ संख्या को ही द्योतित करता है।

इसमें दो शब्द हैं विश्व+घस्र, विश्व शब्द का संख्याऽभिधान होता है 13 और घस्र शब्द का अर्थ होता है दिन अर्थात् विश्वघस्र शब्द का तात्पर्य है 13 दिन और विश्वघस्र पक्ष का तात्पर्य है 13 दिनों का पक्ष। जी हाँ क्षयतिथि, क्षयमास, क्षयसंवत्सर आदि तो आपने सुने ही होंगे कुछ वैसा ही क्षयपक्ष भी होता है जिसे शास्त्रों में विश्वघस्र पक्ष कहा गया है।

तेरह दिनों का पक्ष कभी-कभी ही देखने सुनने को मिलता है। इसे भी उत्पात् की श्रेणी में रखा गया है। सिद्धान्त ज्योतिष के जो सूर्यसिद्धान्त आदि गणित ग्रन्थ हैं उनकी विधि से सूर्य एवं चन्द्रमा के स्पष्ट स्थिति का गणित करके तिथि साधन करने पर 13 दिनों का पक्ष आ जाता है।

लेकिन वेदाङ्गज्योतिष ग्रन्थ में वर्णित मध्यम मान द्वारा या अन्य किसी भी सूक्ष्म मध्यम मान से भी 13 दिनों का पक्ष सिद्ध नहीं होता। वेदाङ्गज्योतिष के अनुसार एक पक्ष का मान 14 दिन 45 घटी ~29 पल तथा सूर्यसिद्धान्तादि गणित ग्रन्थों द्वारा एक पक्ष का मध्यम मान 14 दिन 45 घटी ~55 पल आता है।

यूरोपियन सूक्ष्ममानों द्वारा भी एक पक्ष का मध्यम मान सूर्यसिद्धान्तादि ग्रन्थों  के समतुल्य है। मध्यम मान से एक पक्ष में दिनों की संख्या 14 से कम कभी नहीं होती इसलिए मध्यम मान से तो 13 दिनों का पक्ष कथमपि संभव नहीं है। स्पष्टमान से ही 13 दिनों का पक्ष सिद्ध हो सकता है। उदाहरण के लिए संवत् २०८१ में अर्थात् ई. 2024 में आषाढ कृष्ण पक्ष 13 दिनों का है। लेकिन यह स्थिति बहुधा नहीं होती कभी-कभी ही देखने को मिलती है।

संवत् २०८१ का विश्वघस्र पक्ष

संवत् २०८१ का आषाढ कृष्णपक्ष तदनुसार ई.सन् 2024 में 23 जून से 5 जुलाई तक विश्वघस्र पक्ष होगा। विश्वघस्र पक्ष तब होता है जब एक ही पक्ष में दो तिथियों का क्षय हो जाए।  इस आषाढ कृष्ण पक्ष में द्वितीया एवं चतुर्दशी तिथि का क्षय होने से ये 13 दिनों का विश्वघस्र पक्ष होगा। इसके पहले भी 13 दिनों के पक्ष आते रहे हैं। यह स्थिति कम ही देखने को मिलती है परन्तु दुर्लभ है ऐसा नहीं है। मुहूर्त चिन्तामणि की पीयूषधारा टीका में इस पर जो स्पष्ट उल्लेख मिलता है, वो इस प्रकार है –

द्वितीयामारभ्य चतुर्दश्यन्तं तिथिद्वयह्रासे त्रयोदशदिनात्मकः पक्षोऽतिदोषावहो भवति।

अर्थात् – द्वितीया से लेकर चतुर्दशी पर्यन्त यदि किसी दो तिथि का क्षय होने से विश्वघस्र पक्ष हो तो वह पक्ष बहुत दोषकारक होता है।

इस प्रकार वर्ष 2024 का आषाढकृष्णपक्षीय विश्वघस्र पक्ष बहुत दोषकारक है, यह तो निश्चप्रचम है। वर्ष 2021 में भी विश्वघस्र पक्ष उपस्थित हुआ था। उस समय अर्थात् संवत् 2078 में भाद्रपद शुक्ल पक्ष (तदनुसार 8 से 20 सितम्बर) प्रतिपदा एवं चतुर्दशी का क्षय होने से 13 दिनों का ही था। उस वर्ष की स्थिति परिस्थिति आप सब जानते ही हैं।

महाभारत से तुलना

तेरह दिनों का पक्ष सुनते ही लोग तुरंत इसकी तुलना महाभारत के 13 दिनों वाले पक्ष से करने लगते हैं। लोग शायद इससे भी महाभारत युद्ध जैसी भयावहता की उम्मीद करते हों। डिजाइनर एस्ट्रोलोजर्स, न्यूज मीडिया और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स को तो जैसे ये सब सुनकर तगडा मिर्च मसाला मिल जाता है।

वे लोग इस तरह की सूचना में आग और पेट्रोल डालकर चारों ओर खूब लहरा देते हैं ताकि TRP और व्यूज मिलते रहें। जब इनकी बातें सत्य नहीं होती और लोग सवाल करते हैं तो तुरंत पल्ला झाड लेते हैं- “किताबों में लिखा है नहीं हुआ तो हम क्या करें” और लोगों को भडास निकालने के लिए भोले भाले पंडितों की ओर या शास्त्र की अविश्वसनीयता की ओर मोड देते हैं।

इसलिए सबसे पहले तो मिर्च मसाला खाना बन्द करें ये स्वास्थ्य और जीवन दोनों  के लिए बहुत घातक है। अब पुनः  विषय पर आते हैं। तो मुद्दे की बात ये है कि इस प्रकार से जो विश्वघस्र पक्ष देखने को मिलते हैं उनकी तुलना महाभारत के 13 दिनों वाले पक्ष से करना बिलकुल उचित नहीं है।

हाँ ये सत्य है 13 दिनों वाले विश्वघस्र पक्ष को उत्पात् माना जाता है और उसके कई अशुभ फल शास्त्रों में बताए गए हैं लेकिन हर विश्वघस्र पक्ष महाभारत वाला विश्वघस्र पक्ष नहीं होता इसलिए उससे महाभारत जैसी भयावहता की उम्मीद करना या महाभारत के विश्वघस्र पक्ष के नाम पर लोगों को डराना या बरगलाना शास्त्रद्रोह है।

महाभारत में जो 13 दिनों का पक्ष हुआ था वो शुक्लपक्षीय विश्वघस्र था तथा सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण से सम्पुटित था अर्थात् सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के बीच में 13 दिनों का पक्ष उपस्थित हुआ था। यह स्थिति एकदम अलग है और यह सामान्य विश्वघस्र पक्ष से अत्यंत उत्कट स्थिति है। इसलिए किसी भी सामान्य विश्वघस्र पक्ष की तुलना महाभारत कालीन 13 दिनों के पक्ष से करना व्यर्थ है।

विश्वघस्रपक्ष में क्या करें क्या न करें –

विश्वघस्र पक्ष में कोई भी शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है। यह पक्ष सभी शुभकर्मों हेतु त्याज्य पक्ष माना जाता है। जैसा की मुहूर्त चिन्तामणि में वर्णित है –

अस्ते वर्ज्यं सिंहनक्रस्थजीवे वर्ज्यं केचिद्वक्रगे चातिचारे।
गुर्वादित्ये विश्वघस्रेऽपि पक्षे प्रोचुस्तद्वद्दन्तरत्नादिभूषाम्।।

अर्थात् – जो शुभ कार्य गुरु-शुक्र के अस्त में वर्जित हैं वे सभी कार्य सिंहस्थ और मकरस्थ गुरु में भी वर्जित हैं। कुछ आचार्य कहते हैं कि गुरु के वक्री एवं अतिचारी रहने पर भी उक्त शुभकार्यों को वर्जित कर देना चाहिए। सभी शुभकार्य गुरु-सूर्य के युति काल तथा विश्वघस्र पक्ष में भी वर्जित रहते हैं। शुभकार्यों के अलावा हाथी दाँत, रत्न एवं आभूषण आदि भी इस काल में धारण नहीं करना चाहिए।

इससे बिलकुल स्पष्ट है कि गुरु या शुक्र के अस्त रहने पर जो जो कार्य वर्जित हैं वे सभी कार्य विश्वघस्रपक्ष में नहीं किए जाएँगे साथ ही रत्न आभूषण धारण भी इस दौरान करना उचित नहीं है। गुरु या शुक्र के अस्त रहने पर कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए उनको जान लेते हैं। मुहूर्त चिन्तामणि के शुभाशुभप्रकरण में ही इसका वर्णन प्राप्त होता है।

वाप्यारामतडागकूपभवनारम्भप्रतिष्ठे    व्रतारम्भोत्सर्ग-वधूप्रवेशन-महादानानि    सोमाष्टके ।
गोदानाग्रयणप्रपाप्रथमकोपाकर्म-वेदव्रतं   नीलोद्वाहमथातिपन्नशिशुसंस्कारान् सुरस्थापनम् ।।

दीक्षा-मौञ्जि-विवाह-मुण्डनमपूर्व-देवतीर्थेक्षणं संन्यासाग्निपरिग्रहौ नृपतिसन्दर्शाऽभिषेकौ गमम् ।
चातुर्मास्यसमावृती श्रवणयोर्वेधं परीक्षां त्यजेत् वृद्धत्वास्तशिशुत्व इज्यसितयोर्न्यूनाधिमासे तथा ।।

अर्थात् – वापी (बावली), तालाब, कुँआ और भवन का आरम्भ एवं प्रतिष्ठा (गृहारम्भ एवं गृहप्रवेश) किसी व्रत का आरम्भ और  उद्यापन, वधूप्रवेश, षोडश महादान, सोमयज्ञ, अष्टका श्राद्ध, गोदान, केशान्तकर्म, नवान्न भोजन, जलशाला, प्रथम श्रावणी उपाकर्म, वेदव्रत (उपनिषद्वत-महानाम्नी व्रत और वेदारम्भ), नीलवृषोत्सर्ग, समय पर नहीं हुए बालकों का संस्कार, देवता की स्थापना (देवप्रतिष्ठा), दीक्षा (गुरु से मन्त्र ग्रहण करना), उपनयन, विवाह, मुण्डन, प्रथम बार किसी देवता का दर्शन या प्रथम बार किसी नए तीर्थ में गमन, संन्यास, अग्निहोत्र, राजदर्शन, राज्याभिषेक, यात्रा, चातुर्मास्ययाग, समावर्तन, कर्णवेध, दिव्यपरीक्षा ये सभी कार्यों को गुरु और शुक्र के वृद्धत्व, अस्त और बालत्व में तथा मलमास एवं क्षयमास में त्याग देना चाहिए अर्थात् बिलकुल नहीं करना चाहिए।

स्पष्ट है कि उक्त सभी कार्य विश्वघस्रपक्ष में भी नहीं करना चाहिए। विश्वघस्रपक्ष उत्पात् होने से हमें अत्यंत विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए और दृढता पूर्वक उक्त निषेध का पालन करना चाहिए।

विश्वघस्रपक्ष के संबंध में ज्योतिर्निबंध नामक ग्रन्थ में कहा गया –

उपनयनं परिणयनं वेश्मारम्भादि कर्माणि। यात्रां द्विक्षयपक्षे कुर्यान्न जिजीविषुः पुरुषः।।

अर्थात् – जीने की कामना रखने वाले पुरुष को दो तिथियों के क्षय वाले पक्ष में यज्ञोपवीत, विवाह, गृहारम्भ, यात्रा इत्यादि कर्म नहीं करना चाहिए।

व्यवहार चण्डेश्वर में कहा गया है –

त्रयोदशदिने पक्षे विवाहादि न कारयेत्। गर्गादिमुनयः प्राहुः कृते मृत्युस्तदा भवेत्।।

अर्थात् – तेरह दिनों के पक्ष में विवाहादि कर्म न करे। गर्गादि मुनियों ने कहा है कि तब (तेरह दिनों वाले पक्ष में) ऐसा करने पर मृत्यु होती है।

विश्वघस्रपक्ष के शास्त्रीय फलों का निर्देश –

ज्योतिर्निबन्ध में इस दोष को रौरवकालयोग कहा गया है –

पक्षस्य मध्ये द्वितिथी पतेतां तदा भवेद्रौरवकालयोगः।
पक्षे विनष्टे सकलं विनष्टमित्याहुराचार्यवराः समस्ताः।।

अर्थात् – एक पक्ष के बीच में जब दो तिथियों का पतन (क्षय) होता है तब इसे रौरव काल योग कहते हैं। पक्ष के विनष्ट होने पर सबकुछ विनष्ट हो जाता है ऐसा हमारे समस्त आचार्यवरों ने कहा है।

त्रयोदशदिने पक्षे तदा संहरते जगत्। अपि वर्षसहस्रेण कालयोगः प्रकीर्तितः।।

अर्थात् – 13 दिन का पक्ष उत्पन्न होने की स्थिति में प्रजा के लिए महाविनाश की स्थिति उत्पन्न होती है। यह कालयोग हजारों वर्ष में एक बार आता है।

शीघ्रबोध में कहा गया है –

एकपक्षे यदायांति तिथयश्च त्रयोदश। त्रयस्तत्रक्षयंयांतिवाजिनोमनुजागजाः।।

अर्थात् – जब एक पक्ष में १३ तिथियाँ आती हैं तब वहाँ (उस वर्ष) तीन प्रजातियों घोड़े, मनुष्य और हाथियों का क्षय (नाश) होता है।

बृहत्संहिता में कहा गया है –

शुक्ले पक्षे सम्प्रवृद्धे प्रवृद्धिं ब्रह्मक्षत्रं याति वृद्धिं प्रजाश्च।
हीने हानिस्तुल्यता तुल्यतायां कृष्णे सर्व तत्फलं व्यत्ययेन ।।

अर्थात् – शुक्लपक्ष के वृद्धि होने से ब्राह्मण, क्षत्रिय (राजा) और प्रजा की वृद्धि  होती है। शुक्लपक्ष के क्षय होने पर सबकी हानि होती है। यदि पक्ष समान हो तो समता रहती है। ये सभी फल कृष्णपक्ष में व्यत्यय से जानने चाहिए।

वराहमिहिर कृष्णपक्ष के तिथिक्षय को शुक्लपक्ष के तिथिक्षय की अपेक्षा कम अशुभ मानते हैं। सुप्रसिद्ध ज्यौतिषाचार्य मुकुन्द वल्लभ जी ने भी अपने ग्रन्थ अर्घमार्तण्ड में अनुभव के आधार पर वराहोक्त फल को ही स्वीकारा है।

अर्घमार्तण्ड में लिखा है –

कृष्ण पक्ष में तेरह दिन का पक्ष हो तो कुछ अशुभ फल करता है परन्तु शुक्लपक्ष जैसा विशेष अशुभ फल नहीं देखा गया है।  

मार्तण्ड पञ्चांग में लिखा है –

अनेक-युग-सहस्र्यां वै दैवयोगतः प्रवर्तते। त्रयोदश दिनात्मकः पक्षस्तदा संहरते जगत् ।।

अर्थात् – अनेक सहस्र युगों में दैवयोग से १३ दिनों का पक्ष घटित होता है। जब ऐसा होता है तब प्रजा का संहार होता है।

त्रयोदश-दिनः पक्षो भवेद्वर्षाष्टकान्तरे। तदा नगरभंगः स्यात् छत्रभंगो महर्घता।।

अर्थात् – जब आठ वर्षों के अन्तराल में तेरह दिनों का पक्ष हो तब नगरभंग (गृहयुद्ध जैसी स्थिति), छत्रभंग (सत्ता की हानी एवं परिवर्तन) और महार्घता (महँगाई) होती है।

श्रीजगन्नाथपञ्चांगम् में लिखा है –

यदा तु जायते पक्षः त्रयोदश-दिनात्मकः भवेल्लोकक्षयो घोरो मुण्डमालायुता मही ।।

अर्थात् – जब १३ दिनों का पक्ष होता है तब दुनिया का घोर क्षय (नाश) होता है और यह पृथ्वी मुण्डमालाओं से भर जाती है।

ज्योतिष रहस्य ग्रन्थ में लिखा है –

कई वर्षों के बाद कभी दो तिथियों का भी क्षय हो जाता है तो तेरह दिनों के उस पक्ष को “विश्वघस्र पक्ष” कहते हैं तथा उसे देश और व्यापार के लिए अशुभ फलकारी मानते हैं।

आपके समक्ष विश्वघस्र पक्ष के सम्बन्ध में यथामति यथोपलब्ध शास्त्र-प्रमाण मैंने प्रस्तुत किये हैं। आइये अब इन प्रमाणों के आधार पर हमें जो-जो निष्कर्ष प्राप्त होता है, उसपर विशेष रूप से दृष्टिपात करें।

पहले कब बना था ऐसा संयोग ?

  • महाभारत के दौरान 13 दिन का पक्ष निर्मित हुआ था। हालांकि उस दौरान ग्रहण भी था।
  • साल 1934 में ऐसा ही संयोग आया, जिसमें विनाशकारी भूकंप आया था।
  • ऐसा ही एक संयोग 1937 में जब बना था तब भूकंप आया था।
  • इसके बाद 1962 में भी यह दुर्योग बना था तब भारत-चीन का युद्ध हुआ था।
  • साल 1979 एवं 2005 में भी इसी दुर्योग की वजह से अप्रिय घटनाएं हुई थीं।
  • 1999 में जब 13 दिन के पक्ष का संयोग बना, उस समय भारत-पाकिस्तान के बीच करगिल की लड़ाई हुई थी।
  • वर्ष 2010 में भी 13 दिन का पक्ष पड़ा था तब भी भूकंप और युद्ध के हालातनिर्मित हुए थे,
  • वर्ष 2021 में भी 13 दिनों का पक्ष आया था, 2021 में कोरोना महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या और उस समय के हालात किसी से छुपे नहीं हैं।

निष्कर्ष

  • विश्वघस्र पक्ष का मुहूर्तशास्त्र और संहिताशास्त्र दोनों में ही पर्याप्त महत्त्व है। अर्थात् कुछ चीजें हमारे नियन्त्रण में हैं और कुछ चीजें हमारे नियन्त्रण से बाहर हैं।
  • मुहूर्तादि विषयक जो निषेध वर्णित है उनका पालन करना हमारे नियन्त्रण में है अतः हम उनका कठोरता से पालन करें।
  • संहितोक्त फल हमारे नियन्त्रण से बाहर हैं उनके लिए हम सावधानी बरतें, ईश्वर से प्रार्थना करें और अपने पुण्यकर्मों को बाढाएँ, जप-साधना में कुछ अतिरिक्त समय लगाएँ।
  • जिस वर्ष विश्वघस्र पक्ष उपस्थित होता है वह पुरा वर्ष ही उसके अशुभफलों से प्रभावित होता है, यह बात सदैव स्मरण रखना चाहिए।
  • यह विश्वघस्र पक्ष पृथ्वी पर युद्ध और जनहानि की विभीषिका का स्पष्ट संकेत है।
  • इस दौरान पृथ्वी के विभिन्न भागों में रोग का प्राबल्य, सीमाक्षेत्रों में अशान्ति, दंगे एवं उपद्रव होते रहेंगे।
  • सरकार से असंतुष्ट लोगों तथा उग्रवादियों के द्वारा विभिन्न उत्पात एवं साम्प्रदायिक दुर्घटनाओं को अंजाम दिया जाएगा।
  • विश्व में महंगाई बेतहाशा बढ़ेगी, सभी जगह तो नहीं लेकिन कुछ देशों एवं राज्यों में महंगाई नियन्त्रण से बाहर हो जाएगी तथा प्रजा में सरकार के प्रति घोर रोष उत्पन्न होगा।
  • विश्व के विभिन्न देशों में राजनैतिक अस्थिरता देखने को मिलेगी, राजनीतिक पार्टियों के बीच असमंजस की स्थिति बार बार बनेगी। कुछ देशों में तख्तापलट तथा छल-बल पूर्वक सत्ता परिवर्तन जैसी घटनाएँ भी देखने को मिलेंगी।
  • पृथ्वी के कुछ बड़े राजनेताओं की प्राणहानि भी सम्भव है।
  • विश्व के कुछ देशों में युद्धात्मक स्थिति बनेगी, जिन देशों के बीच पहले से युद्ध चल रहे हैं उनके हालात और बिगड़ेंगे। किसी देश का विघटन भी संभव है।
  • विभिन्न भूभागों में कालान्तराल से भयंकर प्राकृतिक आपदाएँ भूकम्प, तूफान, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि होंगीं, जिनसे जनजीवन अस्त व्यस्त होगा।
  • सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में विशेष अशान्ति देखने को मिलेगी।
  • रोगवृद्धि, महँगाई देश के अन्दर आन्तरिक गृहक्लेश को लेकर सभी को सावधान रहने की जरूरत है।
  • भारत में भी उक्त सभी घटनाएँ देखने को मिलेंगी अतः सभी भारतीयों से निवेदन है कि सावधान रहें, सतर्क रहें, अनावश्यक खर्च से बचें, पूंजी बचाकर रखें और जप-साधना, प्रार्थना तथा भगवदाराधन में अतिरिक्त समय दें।

धर्म की जय हो ! अधर्म का नाश हो ! प्राणियों में सद्भावना हो ! विश्व का कल्याण हो !

ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य
CSU, RGC श्रृंगेरी, कर्णाटक।

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