अक्सर देखा जाता है कि व्यवहार में लोग धी, बुद्धि, स्मृति, मेधा, मति, प्रज्ञा आदि शब्दों को समानार्थी समझते हुए प्रयोग करते हैं। पर वस्तुतः ये समानार्थी लगने वाले शब्द विशेष परिभाषाओं को धारण करते हैं।
आइए इनको समझें।
धी-
धी: बुद्धि: वस्तुग्रहणशक्ति:।
उपदिष्टग्रहणे शक्ति: धी:।
अर्थात्- बुद्धि शब्द धी का वाचक है। धी का अर्थ उपदेश किए गए या बताए गए वस्तु को ग्रहण करने की अर्थात् अधिगम क्षमता से है। बुद्धि और धी में थोड़ा अन्तर है। धी संग्रहण शक्ति है, जबकि बुद्धि विवेचन शक्ति, निर्णय देने वाली है। धी के द्वारा हमारा मस्तिष्क जो संग्रहित करता है, उसका विवेचन बुद्धि करती है।
इसलिए अक्सर भाषण आदि में प्रबुद्ध लोग सभा को सम्बोधित करते हुए धीमान् शब्द का प्रयोग करते हैं।
स्मृति-
स्मृतिरतीतविचारे शक्ति:। स्मृति: अतीतविचारशक्ति:। स्मृति: अतीतस्मरणम्, गृहीतस्य विच्छेदेन धारयितुं शक्ति: स्मृति:।
अर्थात्- स्मृति कहते हैं स्मरण शक्ति को। बीती हुई घटना या अतीत की बातों को स्मरण रखने की क्षमता स्मृति कहलाती है। आप जो पढ़ते हैं उसे याद करके याद रखने की क्षमता भी स्मृति ही है। इसलिए इसे धारणा शक्ति भी कहते हैं।
मेधा-
मेधा प्रज्ञा वस्तुविवेकशक्ति:। मेधा ग्रन्थधारणशक्ति:।
अर्थात्- मेधा नाम की जो प्रज्ञा है, वह वस्तुविवेक शक्ति को इंगित करती है । इसलिए मेधा के भाव में प्रज्ञा शब्द का भी प्रयोग होती है। शास्त्रों को कण्ठस्त करके स्मरण रखने की क्षमता भी मेधा कही जाती है।
मति-
अनागतज्ञानं मति:।
अर्थात्- स्वतः आपके अन्तर्मन से प्रस्फुरित होने वाला ज्ञान मति है।
– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
B.h.u., वाराणसी।