महाशिवरात्रि व्रत निर्णय
देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ! नमोऽस्तुते,
कर्तुमिच्छाम्यहम् देव शिवरात्रि व्रतं तव ।
तवप्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति,
कामाद्या शत्रवो माम् वै पीड़ां कुर्वन्तु नैव हि।।
अर्थात्- देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ आपको नमस्कार है। मैं आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ। देवेश्वर आपका यह व्रत बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो, और काम क्रोध आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें।
इस वर्ष महाशिवरात्रि व्रत 21 फरवरी 2020 को प्रशस्त है।
महाशिवरात्रि जन्माष्टमी आदि व्रत निशीथ व्यापिनि तिथ्याधारित होते हैं। निशीथ व्यापिनि का अर्थ सम्पूर्ण रात्रि में व्याप्त होना नहीं बल्कि रात्रि में व्याप्त होना है, मध्य रात्रि तक व्याप्त तिथि श्रेष्ठ निशीथ व्यापिनि मानी जाती है।
महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन कृष्ण निशीथ व्यापिनि चतुर्दशी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
आइए इसका गणित समझते हैं-
आंठवें मुहूर्त तक व्याप्त तिथि निशिथ व्यापिनि कहलाती है।
एक मुहूर्त 2 घटी का का होता है,
अतः 8 मुहूर्त में 8×2=16घटी,
1 घटी में 0.4 घंटे,
अतः 16 घटी में 16×0.4= 6 घंटा 24 मिनट,
21 फरवरी को सूर्यास्त 17:46 + 6:24=24:10 मिनट पर मध्यरात्रि तक आठवाँ मुहूर्त रहेगा। चतुर्दशी अगले दिन सायं 19:02 तक है।
तो निश्चित ही यह चतुर्दशी निशिथ व्यापिनि है।
निशीथ व्यापिनी शिवरात्रि सर्वप्रथम प्रशस्त है।
भवेद्यत्र त्रयोदश्यां भूतव्याप्ता महानिशा ।
शिवरात्रि व्रतं तत्र कुर्याज्जागरणं तथा ।।
दो दिन यदि निशीथ व्याप्ति हो तो प्रदोषव्याप्ति से निर्णय करना चाहिए।
इसवर्ष 21 फरवरी को एक ही निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के प्राप्त होने से निर्विवाद रूप से पूरे भारतवर्ष में 21 फरवरी को ही शिवरात्री मनाई जाएगी।
वैसे चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव होने से प्रतिमास चतुर्दशी तिथि को मासशिवरात्रि व्रत प्राप्त होता है। लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्राप्त होने वाले शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। क्योंकि पुराणों के अनुसार इसी शिवरात्रि को शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। इस पर्व को भगवान शिव के विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है।
भगवान शिव के विवाह को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। शिवपुराण के अनुसार शिव की बारात में भूत-पिशाच, मरुद्गण आदि सभी देवता आए थे। महाशिवरात्रि के दिन पार्वती शिवमय हो गईं। भगवान शिव की पुत्री अशोक सुंदरी हैं और भगवान शिव के पुत्र हैं हैं कार्तिकेय और गणेश।
मान्यता है कि भगवान शंकर ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण नामक स्थान में माता पार्वती से विवाह किया था। इसका प्रमाण है यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति, जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के समक्ष विवाह के फेरे लिए थे। तब से अब तक यहां अनेकों जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं। लोगों का मानना है कि यहां शादी करने से दांपत्य जीवन सुख से व्यतीत होता है। त्रेतायुग का यह शिव पार्वती के विवाह का स्थल रुद्रप्रयाग जिले के सीमांत गांव में त्रियुगीनारायण मंदिर के रूप में वर्तमान में आस्था का केंद्र है।
– पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान, लोहरदगा।