प्रश्न – यदि वैज्ञानिक सिद्धांत पहले से ही हमारे ग्रंथों में उपस्थित थे तो जनसामान्य तक क्यों नहीं पहुंचे? हम अब ये क्यों कहते फिरते हैं की इस सिद्धांत को इन्होंने दिया, उस सिद्धांत की खोज उन्होंने किया था? ग्रंथों से कुछ नया क्यों नहीं ढूँढते ताकि सभी लोग कह सके की हाँ, ये हिंदू ग्रंथ में पहले से ही था। जो ढूंढ लिया गया है उसे ग्रंथों में ढूंढ कर कब तक आह वाह करते रहेंगे ?
उत्तर – निरर्थक प्रश्न है, गंभीरता से विचार करके लिखते तो अच्छा होता।
- अगर भारतीय ज्ञान-विज्ञान जनसामान्य तक नहीं पहुँचा तो कैसे भारत का एक अनपढ व्यक्ति भी योग, आयुर्वेद, शिल्पकला, कृषि-विज्ञान आदि अनेक विद्याओं में निपुण था ?
- आजकल के सो कोल्ड पढे लिखे डिग्री धारी लोगों से भी ज्यादा गुणी पहले के बुजुर्ग लोग मिल जाएँगे।
- अगर भारत में उन्नत विज्ञान नहीं था तो सबसे ज्यादा हमले यहीं क्यों हुए ? इस्ट इंडिया कम्पनी यहाँ क्या करने आई थी ? क्यों भारत को विश्वगुरु और सोने की चिडिया कहा जाता था ?
- प्रश्न करने से पहले जो प्रश्न पोस्ट में पूछा गया है उसी का उत्तर दे देते? आखिर क्यों भारत में आक्रमण के बाद कुछ खास वर्षों में ही पाश्चात्य देशों में एकाएक इतनी ज्यादा वैज्ञानिक प्रगति हुई ?
- आज आपको लगता है कि विज्ञान जनसामान्य के पास पहुँच चुका है तो चिन्तन स्तर सामान्य से भी नीचे है।
- कोई विज्ञान आपके पास नहीं पहुँचा बल्कि वैज्ञानिक खोजों और उनके दुरुपयोग से बनाए गए प्रोडक्ट आपके पास पहुँचे हैं। आप विज्ञान के नाम पर जितने भी प्रोडक्ट प्रयोग करते हैं उनमें किसी एक भी प्रोडक्ट के पीछे का सही विज्ञान शायद ही आपको या अन्य सामान्य प्रयोगकर्ताओं को मालूम होगा।
- रही बात शास्त्रों से नवीन शोध क्यों नहीं होते तो उसके लिए जरा आंकडा उठा करके एकबार देखिए कि नवीन खोजों के लिए जिन देशों से आप भारत की तुलना करना चाहते हैं वे लोग रिसर्च पर कितना बजट खर्च करते हैं और भारत में कितना बजट खर्च होता है।
- ये भी देखिएगा कि भारत में आरक्षण के कारण प्रतिभा का मर्दन और पलायन कितना हो रहा है।
- ये भी देखिएगा कि भारत में ज्ञानी विज्ञानी लोगों का मैकाले शिक्षाप्राप्त जनता कितना सम्मान करती है ? उदाहरण के लिए वशिष्ठनारायण जी को पढ लीजिएगा।
- ये भी देखिएगा कि भारत में भारतीय वैज्ञानिकों की सुरक्षा कितनी है, जरा गूगल सर्च कर लीजिए ?
- ये भी कि उदारीकरण के कारण भारत में विदेशी कम्पनियों का व्यापार करना आसान है जबकि भारत में भारत की ही कम्पनी स्थापित करना एकदम मुश्किल।
- और हाँ जरा चन्द्रयान के समय सोमनाथन जी का स्पीच सुन लीजिएगा।
- पुनश्च एक बार अपने अन्दर झाँक करके देखिए एक भारतीय होने के नाते भारतीय ज्ञान विज्ञान पर शोध और अनुसन्धान करके उसे समाज में स्थापित करने की जितनी जिम्मेदारी मेरी है उतनी ही जिम्मेदारी आपकी भी है।
- आपने मुझसे प्रश्न कर लिया आपकी जिम्मेदारी खत्म ? आपने क्या प्रयास किए हैं इस दिशा में आज तक अथवा इस दिशा मेें प्रयास करने वाले कितने लोगों को आपने आज तक प्रोत्साहित किया है ???
- जिनको यह आपत्ति है कि लोग विदेशी खोजों को उनके खोज होने के बाद भारतीय शास्त्रों में दिखाते हैं ? तो उसका सबसे बढिया समाधान ये है कि सबसे पहले ऐसे लोगों से उस बात का प्रमाण मांगिए और जब वो प्रमाण दे दें तो आप उनके प्रमाणों को झूठा साबित कर दीजिए। फिर तो स्वतः ही ये सब बन्द हो जाएगा। चलिए मैं बकायदा एक सोर्स बता देता हूँ। Science in Sanskrit पुस्तक है संस्कृत भारती से छपी है।
- इस तरह के प्रश्न लेकर आने वाले अधिकतर लोग हमारे द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं देते हैं बस केवल प्रतिप्रश्न करते हैं ऐेसे में सार्थक चर्चा कैसे होगी ?
- डार्विन के लोग नाम लेते हैं उसके शोध भारतीय शास्त्रों में नहीं हैं। तो श्रीमन्नारायण के दशावतार में ही डार्विन की थ्योरी का रहस्य छुपा है।
- जो लोग मेडिकल साइंस को लेकर प्रश्न उठाते हैं उन्होंने सुश्रुत संहिता देखी ही नहीं है, पढना तो खैर बहुत दूर की बात है। पहला आपरेशन करने वाले आचार्य सुश्रुत ही थे। आज भी उसके कई विषय मेडिकल के छात्र पढते हैं। आयुर्वेद से BAMS करने वालों के सिलेबस में सुश्रुत संहिता ही लगी है। आपरेशन इक्विपमेंट्स जो सुश्रुत संहिता में बताए गए हैं आज भी प्रयोग होते हैं।
- गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त के बारे में यथाज्ञात इतिहास के अनुसार प्रथम विवेचक भास्कराचार्य थे। देखिए उनके सिद्धान्त शिरोमणि का गोलाध्याय।
- लोग केवल आयुर्वेदिक नुस्खे जानते हैं बोलकर पिण्ड छुडाना ठीक नहीं है। न ही उनको हास्यास्पद बनाना ठीक है। एक आम व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में जिन जिन चीजों से पाला पडेगा उसी के सूत्र उसे याद रहेंगे। आपको विशेष चाहिए तो मौसम और तेजी मंदी से संबंधित घाघ और भड्डरी की कहावतें देखिए।
- मैंने आकाश के कई तारों को पहचाना उन दादी माँ से सीखा जिनको अपना हस्ताक्षर करना भी नहीं आता था। उन्होंने अपने क्षेत्रीय भाषा में कई तारों की पहचान मुझे कराई।
- जो लोग AI AI कह रहे हैं ? जरा स्वयंवह यंत्र जो सूर्य सिद्धान्त के यंत्राध्याय में वर्णित है उसकी ही गुत्थी किसी से सुलझवा दीजिए न उसके बाद आगे देखेंगे। आपके ही मार्गदर्शन में शोधकार्य कर लिया जाएगा हमें कोई आपत्ति नहीं हमें तो बस शास्त्रसेवा से मतलब है।
- भारतीय शास्त्रों में शोध और अनुसन्धान के लिए कई लोग प्रयासरत हैं। जो कुछ कर सकते हैं वो हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं हैं। इसके सार्थक परिणाम दिख रहे हैं आगे भी दिखेंगे। सरकार और जनता की उदासीनता कम हो तो ही गति आ सकती है।
- जो ढूँढने निकलेगा उसे सत्य का पता चलेगा। वरना यत्र तत्र गाल बजाने वाले बहुतेरे भरे पडे हैं।
इत्यलम्
ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य