Flat Earth Misconception | क्या धरती गोल नहीं है ?

आज किसी ने प्रश्न किया- क्या सच में पृथ्वी चपटी है? इक्कीसवीं शताब्दी में रहते हुए यह प्रश्न पूछना बहुत हास्यास्पद लगता है । खैर सवाल जब जब जवाब तब तब के लिए मैं हमेशा तैयार हूँ।

तो आइए जानते हैं ऐसे कौन से तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि धरती चपटी नहीं है बल्की धरती गोल है। धरती के गोल होने का ज्ञान हमारे पूर्वाचार्यों को पहले से रहा है, आइए इस सन्दर्भ में उन प्रमाणों को भी जानते हैं।

  1. अगर पृथ्वी गोल नहीं होती तो आसमान और धरती आपस में मिलते हुए कभी दिखाई नहीं देते। अर्थात् क्षितिज होता ही नहीं ।
  2. समुद्र में जब दूर तक नजर फैलाते हैं तो आखिर में वो गोल घूमता हुआ नजर आता है। पृथ्वी चपटी होती को वो सपाट ही नजर आता।
  1. 1519 में विक्टोरिया जहाज से अटलांटिक महासागर के एक बन्दरगाह से यात्रा आरंभ कि गई। कई वर्षों बाद जब वह जहाज लौटा तो वापस उसी स्थान पर था जहाँ से उसने यात्रा आरंभ की। इससे भी यह सिद्ध हो गया कि पृथ्वी गोल है।
  1. महान् ज्यौतिषाचार्य लल्ल ने ये तर्क दिया है कि यदि पृथ्वी सपाट है तो ताड़ के पेड दूर से हि नजर क्यों नहीं आते??
    समता यदि विद्यते भुवस्तखस्ताल निभा बहुच्छृयाः।
    कथमेव न दृष्टिगोचर नुरहु यान्ति सुदूर संस्थिताः।। (लल्ल सिद्धांत से)
  1. पृथ्वी गोल है इसलिए जल या स्थल का प्रारम्भ या अन्त स्थान नहीं ढूँढा जा सकता। वरना अगर पृथ्वी गोल न होकर चपटी होती तो यदि हम एक सीधी रेखा पर चलते जाते तो चलते हमें एक ऐसा बिन्दु हमें प्राप्त होता जहाँ से आगे चलकर हम आकाश में कूद सकते थे, पर ऐसा नहीं है।
  1. यदि पृथ्वी गोल नहीं होती तो सब लोग अपने घरों से ही एवरेस्ट.की चोटी देख पाते।
  2. पृथ्वी गोल है इसलिए पृथ्वी के हर स्थान का पर्यावरण अलग अलग है।
  3. पृथ्वी गोल है इसलिए ध्रुव तारे की ऊँचाई हर स्थान पर अलग अलग होती है।
  4. पृथ्वी गोल नहीं होती तो थोडी थोड़ी दूरी में ही सूर्योदय सूर्यास्त ग्रहोदय ग्रहास्त का समय अलग अलग नहीं होता।
  5. पृथ्वी गोल नहीं होती तो ग्रहण जब भी होता सभी स्थानों पर दृश्य होता और समान समयांतराल के लिए ही दृश्य होता। जबकि पूर्ण ग्रहण केवल मध्य प्रदेश में ही सबसे ज्यादा लंबे समय 7 मिनट तक के लिए देखा जा सकता है। जबकि बाकि स्थानों से पूर्ण ग्रहण इतने लंबे अंतराल तक देखना संभव नहीं है।
  6. अगर पृथ्वी गोल न होती तो चन्द्रग्रहण की तरह ही सूर्य ग्रहण भी सार्वभौमिक होता। जबकि ऐसा नहीं है।
  7. पृथ्वी गोल है क्योंकि अगर चपटी होती तो ग्रहण के समय पृथ्वी की छाया सीधी रेखा के रूप में ही चन्द्रमा पर उभर कर आती जबकि हम सबने ग्रहण देखा है और चन्द्रमा पर पड़ने वाली पृथ्वी की छाया हमें गोल ही दिखाई देती है ।
  8. पृथ्वी से देखने पर ब्रह्मांड के सभी पिण्ड जब गोल ही दिखाई देते हैं तो क्या अकेली पृथ्वी ही चपटी है??? पृथ्वी भी अन्य पिण्डों की तरह ही गोल है ।
    ऊपर चित्र में सौरमंड़ल को देखें?
  9. आचार्य सीताराम शर्मा अपनी गोलपरिभाषा नामक ग्रन्थ में लिखते हैं-

स्वशक्त्याभूमिगोलोऽयंनिराधारोऽस्तिखेस्थितः।
पृथुत्वात् समवद्भाति_चलोऽप्यऽचलवत्तथा।।

अर्थात्- भूमि का यह गोल पिण्ड़ बिना किसी आधार के ही आकाश में स्थित है। यह चौड़ी होने से समतल प्रतीत होती है और चलायमान होते हुए भी अचल लगती है।

अब प्रश्न है कि जब पृथ्वी गोल है तो चपटी क्यों दिखती है??

इसके लिए सूर्य सिद्धांत, सिद्धांत शिरोमणि, सिद्धांत तत्वविवेक आदि प्राचीन सिद्धांत ग्रन्थों में बहुत बढ़िया बताया गया है।

जो हम देखते हैं वह सदा वैसा ही सत्य नहीं होता।
एक बड़ा वृत्त खींचें, फिर उसकी परिधि के सौवें भाग को देखें, वह सीधी रेखा में दिखाई देगा। पर वास्तव में वह वैसी नहीं होता, वक्र होता है। इसी प्रकार विशाल पृथ्वी के गोले के छोटे भाग को हम देखते हैं, वह सपाट नजर आता है।

वास्तव में पृथ्वी गोल है।
समो यत: स्यात्परिधे: शतांश:
पृथ्वी च पृथ्वी नितरां तनीयान्।
नरश्च तत्पृष्ठगतस्य कुत्स्ना
समेव तस्य प्रतिभात्यत: सा॥ १३ ॥
सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश

पृथ्वी स्थिर नहीं है:-पश्चिम में १५वीं सदी में गैलीलियों के समय तक धारणा रही कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य उसका चक्कर लगाता है,
परन्तु आज से १५०० वर्ष पहले हुए आर्यभट्ट, भूमि अपने अक्ष पर घूमती है, इसका विवरण निम्न प्रकार से देते हैं-

अनुलोमगतिनौंस्थ: पश्यत्यचलम्वि लोमंग यद्वत्।
अचलानि भानि तद्वत् सम पश्चिमगानि लंकायाम्॥
आर्यभट्टीय गोलपाद-९

अर्थात्‌ नाव में यात्रा करने वाला जिस प्रकार किनारे पर स्थिर रहने वाली चट्टान, पेड़ इत्यादि को विरुद्ध दिशा में भागते देखता है,उसी प्रकार अचल नक्षत्र लंका में सीधे पूर्व से पश्चिम की ओर सरकते देखे जा सकते हैं।

इसी प्रकार पृथुदक्‌ स्वामी, जिन्होंने व्रह्मगुप्त के व्रह्मस्फुट सिद्धान्त पर भाष्य लिखा है,आर्यभट्ट की एक आर्या का उल्लेख किया है-

भ पंजर: स्थिरो भू रेवावृत्यावृत्य प्राति दैविसिकौ।
उदयास्तमयौ संपादयति नक्षत्रग्रहाणाम्‌॥

अर्थात्‌ तारा मंडल स्थिर है और पृथ्वी अपनी दैनिक घूमने की गति से नक्षत्रों तथा ग्रहों का उदय और अस्त करती है।

अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय में आर्यभट्ट ने दशगीतिका नामक प्रकरण में स्पष्ट लिखा-

प्राणे नैतिकलांभू: अर्थात्‌ एक प्राण समय में पृथ्वी एक
कला घूमती है (एक दिन में २१६०० प्राण होते हैं)

सूर्योदय-सूर्यास्त-भूमि गोलाकार होने के कारण विविध नगरों में रेखांतर होने के कारण अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर सूर्योदय व सूर्यास्त होते हैं।

इसे आर्यभट्ट ने ज्ञात कर लिया था, वे लिखते हैं-
उदयो यो लंकायां सोस्तमय: सवितुरेव सिद्धपुरे।
मध्याह्नो यवकोट्यां रोमक विषयेऽर्धरात्र: स्यात्॥
(आर्यभट्टीय गोलपाद-१३)

अर्थात्‌ जब लंका में सूर्योदय होता है तब सिद्धपुर में सूर्यास्त हो जाता है। यवकोटि में मध्याह्न तथा रोमक प्रदेश में अर्धरात्रि होती है।

  • पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”
    B.H.U., वाराणसी।

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