Man ki Baat – भारतीय संस्कार, भारतीय दर्शन और वर्तमान चिकित्सा पद्धति विवाद पर मेरे मन की बात
Man ki baat – भारतीय संस्कार, भारतीय दर्शन और वर्तमान चिकित्सा पद्धति विवाद पर मेरे मन की बात (Man ki Baat) आपसे साझा कर रहा हूँ | आजकल एक कथन बहुत प्रचलन में है कि भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में ऑपरेशन नहीं हो सकते तो आपको स्मरण ही होगा कि दुनिया में सर्वप्रथम मस्तिष्क की शल्य क्रिया वैद्याचार्य सुश्रुत के द्वारा की गई थी। दरअसल एलोपैथ ऐसे ही आगे नहीं आया । बल्कि उस पर अकूत संपदा लुटा कर तथा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को नष्ट करके उसे आगे लाया गया है। यदि आयुर्वेद में एलोपैथ जितना रिसर्च किया जाए और धन खर्च किया जाए, उसको बढ़ने से न रोका जाए तो भारतवर्ष संपूर्ण विश्व में चिकित्सा मामलों में न केवल आत्मनिर्भर हो सकता है बल्कि पूरे संसार को स्वस्थ दीर्घायु और सस्ती या निःशुल्क चिकित्सा दिला सकता है। भारतवर्ष में हमेशा से चिकित्सा, शिक्षा तथा भोजन को निःशुल्क रखने का विधान प्रस्तुत किया गया है । हमारे गुरुजी बताते हैं कि उनके जमाने में आटे-चावल की खरीद बिक्री नहीं हो सकती थी, बेचने पर सजा हो जाती । ये भोजन सामग्रियाँ हैं, जिसको इसकी आवश्यकता है उसे निःशुल्क ही सेवा भाव से देना है । आज पाश्चात्य प्रभाव में आकर भारतवर्ष में ही भारतीय दर्शन चौपट हो गया है। भोजन तो छोडिए पानी भी बिक रहा है और यहाँ तक की ऑक्सिजन भी बेचा जा रहा है। सिद्धांतविहीन लोगों को कैसे इंसान मान लिया जाए ? ऐसा लगता है मानो हमलोग ऐसी सदी में जी रहे हैं जहाँ इंसानों की संख्या बहुत कम है । इंसानी शक्ल में अर्थलोलुप आदमखोर मनुष्य-समरुपों से यह संसार घिरता जा रहा है। आज मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक तीनों ही मूलभूत चीजें भोजन, शिक्षा और चिकित्सा दुर्लभ तथा सबसे महँगी होती जा रहा है। महँगी होने के साथ-साथ इनकी गुणवत्ता लगातार घटियापन के चरम को सुशोभित कर रही हैं। आज भोजन (यूरीया, मेडिसीन आदि के प्रयोग से), शिक्षा (पाश्चात्य अंधानुकरण और संस्कृत के तिरस्कार से), चिकित्सा(ऐलोपैथ का अंधानुकरण और आयुर्वेद की अवहेलना से) ये तीनों ही स्तरहीन हो चुके हैं। मजे की बात तो ये है कि इन स्तरहीन सुविधाओं को पाने के लिए आपको अपार संपदा लुटानी होगी, यदि आपके पास धन नहीं है तो आप इन स्तरहीन सुविधाओं को नहीं पा सकते । क्या विडंबना है, श्रेष्ठतम सुविधाओं को हर जीवमात्र के लिए निःशुल्क मुहैया कराने का जो दर्शन था उसे मिटा दिया गया, श्रेष्ठतम सुविधाएँ निःशुल्क प्रदान करने वाली व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया और स्तरहीन सुविधाओं के लिए अपार धन लूटा जा रहा है।
श्रेष्ठतम सुविधाएँ आपको निःशुल्क तो क्या सशुल्क भी नहीं मिलेंगी । मिलेंगी ही नहीं, उनका समूल विनाश लगातार जारी है । हाँ आइए आइए आपको स्तरहीन सुविधाएँ मुहैया कराता हूँ कितना रुपया दे सकते हैं ???
शायद इसलिए स्वामी विवेकानंद ने प्राच्य एवं पाश्चात्य नामक पुस्तक में लिखा है – आजकल के डाक्टर के पास जाओ तो कहेंगे तुम्हारी चिकित्सा तो नहीं कर सकते, रोग को और बढ़ा सकते हैं, कितना रुपया दे सकते हो बताओ? IMA को इस पुस्तक पर बैन लगाने और विवेकानंद जी को भी कटघरे में खड़ा करने पर विचार करना चाहिए।
अब फलित राजेन्द्र फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है।
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अपने ही जीवन का उदाहरण देता हूँ / Man ki baat
मेरी बहन बहुत सिरियस कंडीशन में थी, कई लोगों के कहने पर मैं उसे चिकित्सा के लिए देवकमल हास्पिटल राँची लेकर गया । वहाँ जाते ही सबसे पहला सवाल जो मुझसे पूछा गया वो ये था कि आप कितना धन दे सकते हैं। मैं चौंक गया ??? ये कैसा सवाल है ? मैंने कहा मरीज आपके सामने है, आप समस्या देखिए और ये बताइए की इसकी चिकित्सा आपके पास है या नहीं ??? यदि है तो आपके हॉस्पिटल में इसके चिकित्सा का क्या खर्च आएगा ? वो हमारी बात सुनने को ही तैयार नहीं थे, बस हल्ला मचा रहे थे, मरीज सीरीयस है, आप जितना रुपया जमा करा सकते हैं करा दीजिए । ये क्या बात हुई ??? मेरे पक्ष से सभी लोगों ने पूछा आपके पास चिकित्सा का कितना व्यय होगा वो बताइए हम समर्थ होंगे तो चिकित्सा कराएँगे अन्यथा कहीं और जाएँगे । नहीं नहीं आप जितना अधिक से अधिक धन जमा करा सकते हैं कराइए उसके बाद हमलोग चिकित्सा करेंगे डॉक्टर आएँगे तो वही बताएँगें । उसके व्यवहार से हमने जाने का मन बना लिया । हास्पिटल का एक व्यक्ति समझ गया कि हम जाने वाले हैं उसने हमारी आर्थिक स्थिति का आकलन किया और आकर कहा कि जो पैसा आपलोग लेकर आए हैं 60-70 हजार जमा करा दीजिए, इलाज में लगेगा सो लगेगा बाकी पैसा आपको वापस कर दिया जाएगा। मेरे परिवार के कुछ लोग मान गए और उस समय जो धन उपलब्ध था सारा जमा करा दिया गया । दो दिन बाद डॉक्टरों ने मरीज को बाहर लाकर फेंक दिया । आप इसको ले जाइए, बहुत रुपया लगेगा आपलोग इस हास्पिटल में इलाज नहीं करा पाएँगे । मैं सन्न रह गया । ये बात तो दो दिन पहले कहना था । जब हमलोग बार बार चिकित्सा का खर्च पूछ रहे । जितना धन हमारे पास था उसको चूस लिया । मनमाना बिल बना दिया । एक रुपया वापस नहीं मिला, मरीज को बाहर लाकर फेंक दिया । ऐसा मेरे साथ ही हुआ है ये बात नहीं है, भारतवर्ष में ऐसे लाखों लोग हैं जिनके साथ इससे भी विभत्स घटनाएँ रोज हो रही हैं । बीएचयू में पढ़ने के दौरान तो कई मरीजों की हमलोगों ने मदद की जो चिकित्सा कराने आए थे और उनके पास न खाने को पैसा बचा था न घर जाने का किराया । ये मेरे जीवन का अनुभव है ।
एक अनुभव और सुनिए / Man ki baat
मैं एकबार बहुत ज्यादा स्वास्थ्य खराब होने से चिकित्सा के लिए डाक्टर के पास जा रहा था अकेला ही, अचानक चक्कर आया और उल्टियाँ करता हुआ मैं गिर गया, ठीक प्राइवेट आयुर्वेद चिकित्सालय के पास । वैद्य कि नजर पड़ी वो स्वयं दौड़कर पानी लेकर आए, मेरी मूर्छा तोड़ी, चिकित्सा भी की । बहुत बोलने पर भी इस चिकित्सा का कोई शुल्क नहीं लिया । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि कोई एलोपैथ डाक्टर इतना सहृदय नहीं हो सकता ।
संयुक्त-परिवार की संकल्पना को नष्ट कर दो, परिवार के एक-एक आदमी को अकेला और स्वयं में मशगूल कर दो फिर मनश्चिकित्सा केन्द्र खोलकर कहो की हम Depression, Anxiety आदि-आदि रोगों की चिकित्सा करेंगे | वाह…. नहीं… नहीं… वाह…. |
भारत में शिक्षा तो ये लोग ऐसे फैला रहे हैं जैसे हमलोग एकदम जाहिल थे भारतीयों को कुछ पढना-लिखना नहीं आता था | पाश्चात्य लोग भारत आए तब जाकर भारत शिक्षित हुआ और ये जो भारत के अनेकों पुस्तकालयों को जलाया गया जिनमें से कुछ तो कई महीने तक जलते रहे, करोड़ों पुस्तक जलकर खाक हो गए वो विदेशियों ने लिखे थे और यहाँ लाकर संजोया था | वेद-पुराण-दर्शन-महाभारत-रामायण आदि लाखों ग्रन्थ जो भारत में भारतीय ऋषि मुनियों के नाम से पढ़ी जाती हैं, जिन पर नासा जैसी संस्थाएं रिसर्च कर रही हैं, वो सब विदेशियों ने लिखे होंगे और चूँकि वे बहुत उदार थे तथा भारत के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे, इसलिए अपने लेखन को उन्होंने भारतीय ऋषि-मुनियों के नाम से प्रचारित कर दिया होगा | नारायण…. नारायण…..
जानिए भूकेन्द्रिक (Geocentric) और सूर्यकेन्द्रिक (Heliocentric) ग्रहस्थितियों (Planetary Positions) की सम्पूर्ण जानकारी ।
खैर….. निःशुल्क चिकित्सा, शिक्षा और भोजन के प्रति मेरे परिवार का दृष्टिकोण भी आपको सुनना चाहिए । जो संस्कार मुझे पारिवारिक विरासत के रूप में प्राप्त हुए हैं |
मेरे घर पर माताजी रोज बलिवैश्वदेव करती हैं। मंदिर के पास घर होने से और माताजी का करुणामयी स्वरुप व व्यवहार होने से रोज कम से कम एक व्यक्ति जरूर मेरे घर में या तो स्वयं याचना करके अथवा हमारा भोजन प्रस्ताव स्वीकार करके अवश्य भोजन करता है। कल तो देखिए धुँआधार वर्षा हो रही थी हमारे यहाँ फिर भी एक व्यक्ति आया और उसने पूछा माताजी कुछ खाने को मिलेगा क्या ? मैं तो चकित ही रह गया।
मेरे पिताजी गाँवों में यजमानी करते हैं, वो इतने सहृदय और कोमल प्रकृति के हैं कि जिसको थोड़े भी दुःख-तकलीफ में देख लेंगे उसके लिए सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं, जो बन पड़ता है तुरंत करते हैं, बिना किसी आशा के । एक बार हमलोग भूखमरी के दौर से गुजर रहे थे, उस समय भी पिताजी की समाज सेवा छूट नहीं रही थी । पूरे घर में बस एक गमछे में एक किलो चावल भर बाँध कर रखा था, खाने-पीने का कोई दूसरा खाद्य पदार्थ नहीं था, हमलोग बहुत छोटे थे । तब दादी पिताजी को डाँट रही थी कि ये केवल बाहर वालों पर धन लुटाता है, अपने परिवार की फिक्र नहीं करता, ये चावल बचा है इसको भी जा के किसी को दे दो । पिताजी ने विनम्रता से कहा कोई माँगने आएगा तो दूँगा ही । दादी उनके जवाब से एकदम गुस्से से लाल हो गईं और कहा जिनको तुमने जन्म दिया है उनको पहले जहर लाकर दे दो फिर जो करना होगा करते रहना । मैं बस पिताजी को देख रहा था और दादी की बातें सुन रहा था । ये घटना मुझे आज भी एकदम जीवन्त रुप में याद है।
बड़े-बड़े रेस्ट्रो में आपको बिना पैसे के एंट्री भी नहीं मिलेगी, लेकिन सच्चे भारतीय की दुकान, घर या होटल में आपको केवल प्रवेश ही नहीं बल्कि धन न रहने पर भी सेवा भाव से आपको निःशुल्क भोजन तथा आपके बच्चे को निःशुल्क दूध भी मिल सकता है। ये है भोजन का उदाहरण ।
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अब शिक्षा का उदाहरण लीजिए/ Man ki baat
मैं जब सातवीं कक्षा में था, उस समय मैंने निःशुल्क लाइब्रेरी योजना शुरु की थी । कबाड़ की दुकान से पुस्तकें खरीद कर लाता था। कबाड़ वाले को मैंने अपनी योजना बताई थी कि मेरे पास नई पुस्तकें खरीदने के लिए धन नहीं है और आपके पास कबाड़ के भाव में अच्छी पुस्तकें भी आती हैं, मैं उनको खरीद कर निःशुल्क लाइब्रेरी चलाता हूँ,स्कूल से आने के बाद दो घंटा बैठता हूँ जो पुस्तकें लेने आते हैं उनका नाम कापी में लिखकर पुस्तकें देता हूँ। तो वो कबाड़ वाला भी अच्छे हृदय का था, मुझे लागत भाव में पुस्तकें दे दिया करता था, कभी कभी दो-चार पुस्तकें ही निकलती तो पैसा भी नहीं लेता । आज भी मैं शास्त्रीय ग्रंथ पढ़ाने के लिए किसी से धन नहीं लेता । कोई पंक्तिशः शास्त्र पढ़ने आए तो उसका स्वागत है, मैं निःशुल्क पढाऊँगा (मुझे जल्दी से जल्दी ज्योतिष सीखा दीजिए ताकि मैं रुपया कमा सकूँ ऐसे लोग दूर रहें) । एक दो लोगों ने गुरुदक्षिणा के रूप में कुछ धन भेज दिया था उनका प्रयोग सामाजिक कार्यों में ही हुआ। मेरे कमाई का अधिकांश हिस्सा अपने स्वाध्याय के लिए पुस्तकें खरीदने और गरीब छात्रों को प्रतिवर्ष कुछ पुस्तकें वितरण करने में खर्च होता है।
अब आइए चिकित्सा पर/Man ki baat
मैं गरीब ब्राह्मण परिवार का एक सामान्य भारतीय हूँ । पढ़ने के लिए बहुत ज्यादा परिश्रम किया और अपार संघर्ष किया । कहीं नौकरी नहीं मिली है, अपनी आजीविका के लिए सशुल्क ज्योतिषीय परामर्श देता हूँ। हाँलाकि मैंने ऐसी व्यवस्था बनाई है, कि जो मेरा शुल्क दे सकें वो तो मेरे ज्ञान का लाभ लें ही पर जिनका सामर्थ्य कम है वो भी लाभ ले सकें जो निःशुल्क सुविधा चाहते हैं उनको भी मेरे ज्ञान का लाभ हो ।
फिर भी मेरे मन में इस बात का बहुत क्षोभ रहता था कि मैं ज्योतिषशास्त्र जैसे परम पुनीत विद्या के द्वारा लोगों की सेवा करने के लिए शुल्क लेता हूँ । मैंने इसकी चर्चा गुरुजी से की, मैंने उनको अपनी स्थिति बताई शुल्क न लूँ तो मेरा जीवन न चले, शुल्क लेता हूँ तो मेरे संस्कार मानसिक रुप से मुझे ही प्रताड़ित करते हैं। गुरुजी ने कहा की हर जीव अपने जीविकोपार्जन के लिए कुछ न कुछ करता है। पहली बात तो तुम इस कार्य को शुल्क लेने के बाद भी सेवाभाव से करो । अपना धन बढ़ाने की भावना मत रखो, ईमानदारी से सत्य सत्य फलादेश करो, धोखे में रखकर अनावश्यक खर्चीले अनुष्ठान और रत्न आदि बताकर धन बढ़ाने का लोभ कभी न करना । मैंने कहा गुरुजी आपके दिए हुए संस्कार से यह गुण मुझमें है आगे भी इसको बनाए रखूँगा । गुरुजी ने फिर कहा दूसरा कार्य ये करो कि कोई ऐसी विद्या पढ़ो जिसका प्रयोग तुम समाज सेवा के लिए निःशुल्क कर सको । मुझे यह विचार बड़ा अच्छा लगा । बहुत विचार करके मैंने यथासंभव नाडीविज्ञान, प्राकृतिक चिकित्सा,आयुर्वेद चिकित्सा तथा होमियोपैथिक चिकित्सा का अध्ययन किया आज भी अध्ययन अनवरत कर ही रहा हूँ और इसके माध्यम से निःशुल्क जनसेवा लगातार जारी है। कई लोगों को इससे जबरदस्त लाभ हुआ है। इसके अलावा भी मैंने निर्णय लिया की ज्योतिषशास्त्र के अलावा अन्य जो भी विद्याएँ मुझे आती हैं उसकी सेवा समाज के लिए निःशुल्क ही उपलब्ध रहेंगे । स्थायी आजीविका प्राप्ति के बाद मैं ज्योतिषशास्त्र की सेवा भी निःशुल्क कर दूँगा । जो लोग प्रसन्न होकर स्वेच्छा से धन देना चाहते हैं, उनसे मैं धन तो नहीं लेता कुछ दवाएँ ले लेता हूँ जिसका वितरण ऐसे लोगों में किया जाता है जिनको दवा की आवश्यकता तो है पर दवा खरीदने के लिए धन नहीं है।
क्या विडम्बना है/Man ki baat –
लाखों अरबों रुपए चाँद और मंगल पर मानव जीवन विकसित करने पर खर्च किया जा रहा है और मजा तो यहाँ है कि दूसरी तरफ अकूत संपदा पृथ्वी के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने के लिए भी खर्च किया जाता है। अभी तत्काल का बक्सवाहा जंगल का उदाहरण देखिए, हीरों के लिए तीनलाख पेड़ कटेंगे, अब बताइए मानव जीवन के लिए पेड़ों की आवश्यकता है या हीरों की ??? वो हीरे किसे मिलेंगे कौन उनको पाकर अमीर बनेगा और अमीर बनके क्या करेगा ??? जो लोग बक्सवाहा क्षेत्र में रहते हैं उनके जीवन का क्या होगा ? तीन लाख पेड़ कटने से जो प्राकृतिक संतुलन बिगड़ेगा उसकी भरपाई कैसे और कब होगी ??? कौन है जो पेड़ों को काटने की अनुमति दे रहा है?? प्राकृतिक जंगलों के विनाश करने का अधिकार किसको और क्यों है ??? सब विचारणीय है ।
भारतीय जीवन की और लौटें……
भारतीय दर्शन को पढ़ें, सीखें और अपनाएँ…..
आत्मनिर्भर बनें……
सच्चे भारतीय बनें…….
भारत का गौरव बढ़ाएँ…….
वाह वाह… गुरु जी… बहुत प्रेरणादायक… सादर प्रणाम 🌹🙏🌹
वाह वाह… गुरु जी… बहुत प्रेरणादायक… सादर प्रणाम 🌹🙏🌹
वाह वाह… गुरु जी… बहुत प्रेरणादायक… सादर प्रणाम 🌹🙏🌹
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