इस इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले आइए जानते हैं तिथि क्या है? आखिर किस बला का नाम तिथि रखा गया? इसकी आवश्यकता क्या है? इसका वैज्ञानिक महत्व क्या है ? सर्वप्रथम तिथि नामक तत्व को समझने का प्रयास करते हैं ।
आकाश के सभी पिंड एक दीर्घवृताकार पथ में सतत भ्रमणशील हैं । अपने इसी दीर्घवृत्ताकार पथ में भ्रमण करते हुए पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और पृथ्वी के सबसे नजदीक स्थित ग्रह चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है । पृथ्वी पर सबसे ज्यादा प्रभाव चंद्रमा का पड़ता है क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी के सबसे ज्यादा नजदीक है ।
इसलिए वैज्ञानिकों ने भी अंतरिक्ष पर अपना शोध कार्य चंद्रमा से प्रारंभ किया, और हमारे ऋषि मुनि तो चंद्रमा की गति स्थिति आदि का विशद् विश्लेषण सिद्धांत, संहिता, फलित, आयुर्वेद आदि ग्रंथों में अनेकशः कर चुके हैं । पृथ्वी और चंद्रमा के घूर्णन का सामंजस्य अथवा इन दोनों का सापेक्ष अध्ययन तिथि के नाम से जाना जाता है ।
चंद्रमा अपने पथ पर 27 दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करता है इसे एक चांद्रमास कहा जाता है; और पृथ्वी जब अपने अक्ष पर 30° अंश चलती है तब उसे सौर मास कहा जाता है । सौरमास इसलिए कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। सूर्य हमें भ्रमणशील नजर आता है । भारत में ग्रह गणना की पद्धति भू्केन्द्रिक रही है, इसलिए पृथ्वी द्वारा 30° अंश चलने के काल को एक सौर महीना कहा जाता है । 30° चलने पर एक महीना मानने का भी कारण है- क्योंकि पृथ्वी का संपूर्ण भ्रमण पथ 360° डिग्री का है यदि उसे 12 से भाग दिया जाए (360°÷12=30°) तो 30° ही प्राप्त होते हैं ।
अब आते हैं अपने प्रश्न पर पृथ्वी 27 नक्षत्रों का भ्रमण करने में लगभग 365 दिन लगाती है, जबकि चंद्रमा 27 नक्षत्रों का भ्रमण लगभग 27 दिनों में पूरी कर लेता है इसलिए पृथ्वी के सापेक्ष चंद्रमा की गति का अध्ययन अनिवार्य है ।
हमारे सारे धार्मिक कृत्य तिथि आधारित होने से धर्मशास्त्र, ज्योतिष और हमारे दैनिक जीवन में तिथि का बहुत महत्व है। तिथि की वैज्ञानिकता क्या है ? आप जानते होंगे की पूर्णिमा के आस-पास समुद्र में हाई टाइड आता है और अमावस्या में लो टाइड रहता है । मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग पूर्णिमा के समय बहुत ज्यादा विचलित रहते हैं। यह सब बातें तिथि की वैज्ञानिकता दर्शाती हैं। चन्द्रमा की कलाओं के घटने बढ़ने के चक्र को जानने समझने के लिए भी तिथि ज्ञान परमावश्यक है। एक महीना 30 दिनों का होता है और सौर मास तथा चांद्र मास साथ मिलाकर चलने के लिए तिथि की व्यवस्था बनाई गई।
360° को यदि 30 से भाग दिया जाए(360°÷30=12) तो 12° अंश प्राप्त होंगे । इसलिए 12° अंशों के बराबर एक तिथि होती है। चंद्रमा जब पृथ्वी से 12° अंश दूर चली जाती है तो प्रतिपदा, 24° दूर जाने पर द्वितीया, 36° दूर जाने पर तृतीय इसी प्रकार 180° दूर जाने पर पूर्णिमा व 360° डिग्री दूर रहने पर अमावस्या तिथि होती है। इस प्रकार 15-15 दिनों का शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष 30 दिनों का 1 महीना पूरा होता है ।
पहले ही बताया जा चुका है कि ग्रहों का जो भ्रमण पथ है वो वृत्ताकार नहीं है बल्कि दीर्घ-वृत्ताकार है। चंद्रमा का भ्रमण पथ भी दीर्घवृत्ताकार है इसलिए चंद्रमा और पृथ्वी की दूरी दीर्घवृत्त के सभी बिन्दुओं पर समान नहीं रहती है (देखें चित्र) । जिन बिन्दुओं पर चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होता है वहां चन्द्रमा की गति तेज होती है इसलिए उसे 12° चलने में अपेक्षाकृत कम समय लगता है।
ज्यों ज्यों चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता जाता है उसकी गति कम होती जाती है और इस दौरान उसे 12° चलने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है। चंद्रमा की इस प्रकार गति कम या ज्यादा होने के कारण तिथियों के मान में घट-बढ़ होती है। कभी 12 डिग्री चलने में उसे 24 घंटा लगता है कभी 23 घंटा लगता है तो कभी कभी 30 घंटा तक जाता है इसी आधार से पंचांग में तिथिवृद्धि और तिथिक्षय दर्शाया रहता है।
- पं. ब्रजेश पाठक “ज्यौतिषाचार्य”